SCO Summit Pakistan: भारत के विदेश मंत्री एस.जयशंकर (Subrahmanyam Jaishankar) शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन (SCO Summit) की सम्मिट में शामिल होने के लिए पाकिस्तान जाने वाले हैं. विदेश मंत्री जयशंकर इस मीटिंग के लिए 15-16 अक्तूबर को पाकिस्तान में रहेंगे.
पाकिस्तान ने अगस्त में एससीओ समिट (SCO Summit Pakistan) में शामिल होने के लिए भारत और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को आमंत्रित किया था. शंघाई समिट को लेकर विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा- मैं एससीओ के एक अच्छे सदस्य होने के नाते पाकिस्तान जा रहा हूं.
विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा, 'मैं इस महीने के बीच में एससीओं मीटिंग के लिए पाकिस्तान जा रहा हूं. मैं वहां इंडिया-पाकिस्तान के संबंधों पर चर्चा करने नहीं जा रहा हूं. मैं एक विनम्र और सभ्य व्यक्ति हूं. मैं उसी हिसाब से व्यवहार करूंगा'.
विदेश मंत्री शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन के लिए पाकिस्तान जाने वाले हैं. एक दशक के बाद कोई भारतीय विदेश मंत्री पाकिस्तान जा रहा है. आइए जानते हैं एससीओ क्या है और भारत के लिए क्यों बेहद बेहद जरूरी है.
SCO क्या है?
शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन एक इंटरनेशनल संगठन है. इस ऑर्गेनाइजेशन में कुल 10 मेंबर हैं. इसकी स्थापना तो साल 2001 में हुई थी लेकिन इसका इतिहास 1991 से जुड़ा हुआ है. साल 1991 में सोवियत यूनियन टूटा और उससे 15 अलग देश बने.
तब इस इलाके में सुरक्षा की चिंता पैदा हुई. तब इलाके की सुरक्षा और बिजनेस को लेकर 1996 में एक ग्रुप बना. इस ग्रुप को शंघाई फाइव का नाम दिया गया. तब इस संगठन में रूस, कजाखस्तान, किर्गिस्तान, चीन और तजाकिस्तान थे.
कौन-कौन से देश हैं शामिल?
औपचारिक तौर पर शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन की स्थापना 15 जून 2001 को हुई. एससीओ एक इंटर-गर्वमेंटल इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन है. इस संगठन में 5 मेंबर पहले से थे. इस ग्रुप के छठवें सदस्य के रूप में उज्बेकिस्तान शामिल हुआ.
शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन में बाद में कई देश जुड़े. भारत और पाकिस्तान 2017 में संगठन के सदस्य हैं. इरान और बेलारूस भी एससीओ के मेंबर हैं. ईरान 2023 में इसका हिस्सा बना. वहीं हाल ही में 2024 में बेलारूस शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन का नया मेंबर बना है. अफगानिस्तान और मंगोलिया को ऑब्जर्वर का स्टे्टस दिया दिया है.
क्या हैं इसके काम?
पूरी दुनिया की 40 फीसदी आबादी एससीओ देशों में रहती है. पूरी दुनिया की जीडीपी में एससीओ देशों की हिस्सेदारी लगभग 20 फीसदी है. ये ऑर्गेनाइजेशन सेंट्रल एशिया के सिक्योरिटी और इकॉनोमिक मुद्दों पर चर्चा करते हैं. इस ग्रुप पर रूस और चीन का ज्यादा प्रभाव है.
दोनों देशों ने हाल ही एक-दूसरे के साथ दोस्ती के हाथ बढ़ाए हैं. इसके बावजूद एससीओ ग्रुप में डोमिनेशन को लेकर चीन और रूस अपनी ओर से जोर लगाते रहते हैं. चीन इस ग्रुप के जरिए कजाखस्तान जैसे देशों से तेल और गैस खरीदने की कोशिश कर रहा है. हाल के सालों में चीन की इकॉनोमिक स्ट्रेंथ बढ़ी है.
भारत के लिए क्यों है जरूरी?
साल 2017 में भारत शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन का मेंबर बना. एससीओ के जरिए इंडिया सेंट्रल एशियाई देशों के साथ अच्छे संबंध को बनाना चाहता है. 1991 में इस संगठन के गठन के बाद से भारत के इन देशों के साथ रिश्ते कुछ खास अच्छे नहीं रहे हैं.
इसके अलावा ये संगठन इन देशों के साथ संवाद करने का भी एक जरिया बनता है जिससे एक जैसे सुरक्षा मुद्दों पर चर्चा की जा सके. उदाहरण के लिए, एससीओ में एक रीजनल एंटी टेरिरस्ट स्ट्रक्चर (RATS) है.
इसके तहत आतंकवाद को रोकने के लिए काउंटर टेरिरज्म एक्सरसाइज की तैयारी की जाती है. साथ ही सभी देश एक-दूसरे के साथ जरूरी जानकारी शेयर करते हैं. इसमें आतंकवाद के अलावा ड्रग ट्रैफिकिंग भी शामिल है. एससीओ भारत के लिए एक मंच है जहां इंडिया सुरक्षा और आतंकवाद के मुद्दे को उठा सकता है.