Morarji Desai को भारत और पाकिस्तान दोनों का मिल चुका है सर्वोच्च सम्मान, इंदिरा गांधी से हमेशा ठनी रही, जानें कैसे दो बार बनते-बनते रह गए थे पीएम

24 मार्च 1977 को जनता पार्टी की सरकार बनी. मोरारजी देसाई पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री बनाए गए. हालांकि जनता पार्टी में गुटबाजी के चलते वह ज्यादा दिनों तक पीएम की कुर्सी पर नहीं रहे. 15 जुलाई 1979 को मोरारजी देसाई को इस्तीफा देना पड़ गया.

मोरारजी देसाई (फाइल फोटो)
मिथिलेश कुमार सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 10 अप्रैल 2023,
  • अपडेटेड 10:02 AM IST
  • तत्कालीन पीएम जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद मोरारजी प्रधानमंत्री पद के थे मजबूत दावेदार 
  • भारत रत्न और पाकिस्तान का सर्वोच्‍च सम्‍मान निशान-ए-पाकिस्‍तान से हो चुके हैं सम्मानित

Moraji Desai Death Anniversary: मोरारजी देसाई को देश के चौथे प्रधानमंत्री बनने से पहले भी दो बार पीएम की कुर्सी पर बैठने का मौका मिला था लेकिन दोनों बार किस्मत ने साथ नहीं दिया. आइए गैर-कांग्रेसी सरकार के पहले प्रधानमंत्री बने मोरारजी देसाई के बारे में जानते हैं.

गुजरात के भदेली गांव में हुआ था जन्म
मोरारजी देसाई का जन्म गुजरात के भदेली गांव में 29 फरवरी, 1896 को हुआ था. उनका निधन 10 अप्रैल 1995 को हो गया. मोरारजी देसाई देश के एकलौते प्रधानमंत्री हैं, जिन्हें भारत और पाकिस्तान दोनों ने ही अपने सर्वोच्च सम्मान से नवाजा है. उन्हें भारत रत्न और पाकिस्तान का सर्वोच्‍च सम्‍मान निशान-ए-पाकिस्‍तान मिल चुका है. 

गांधीवादी विचारधारा के थे पक्के समर्थक 
मोरारजी देसाई ने 1930 में ब्रिटिश सरकार की नौकरी छोड़ दी और स्वतंत्रता संग्राम के सिपाही बन गए. मोरारजी देसाई गांधीवादी विचारधारा के पक्के समर्थक थे. उन्होंने अनुशासन और ईमानदारी से कभी समझौता नहीं किया. वह मुंह पर ही खरी बात करने वाले लोगों में थे. इसीलिए उन्हें सख्त समझ लिया जाता था. 1931 में वह गुजरात प्रदेश की कांग्रेस कमेटी के सचिव बन गए. उन्होंने अखिल भारतीय युवा कांग्रेस की शाखा स्थापित की और सरदार पटेल के निर्देश पर उसके अध्यक्ष बन गए. मोरारजी देसाई को 1952 में बंबई का मुख्यमंत्री बनाया गया था.

सबसे मजबूत दावेदार थे
मोरारजी देसाई बहुत काबिल नेता थे. 1964 में तत्कालीन पीएम जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद वो प्रधानमंत्री पद के सबसे मजबूत दावेदार थे. हालांकि वे कांग्रेस के अंदर चल रही गुटबाजी के बीच अपने साथ ज्यादा सदस्यों को नहीं जोड़ पाए. ऐसे में पीएम की कुर्सी पर लाल बहादुर शास्त्री बैठ गए. 1966 में लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद एक बार फिर प्रधानमंत्री पद खाली हो गया. मोरारजी और इंदिरा गांधी में पीएम बनने को लेकर जोरदार टक्कर थी. मोरारजी अपने को कांग्रेस का बड़ा नेता समझते थे. वह इंदिरा गांधी को गूंगी गुड़िया कहा करते थे. कई अन्य नेता भी इंदिरा का विरोध कर रहे थे. इसके बावजूद  इंदिरा गांधी पीएम बन गईं और मोरारजी का विरोध किनारे रह गया.

उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री पद से करना पड़ा संतोष
इंदिरा गांधी के पीएम बनने पर मोरारजी दोसाई को उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री बनाया गया. हालांकि वे इस बात से खिन्न रहते थे कि सीनियर होने के बाद भी इंदिरा गांधी को क्यों प्रधानमंत्री बनाया गया. इंदिरा से उनकी कभी नहीं बनी. वो उनके काम में लगातार रुकावट भी पैदा करते रहे. नवम्बर 1969 में जब कांग्रेस का विभाजन हुआ और इंदिरा गांधी ने नई कांग्रेस बनाई तो देसाई इंदिरा के खिलाफ खेमे वाली कांग्रेस-ओ में थे.

जयप्रकाश नारायण का समर्थन से बने पीएम
1975 में मोरारजी देसाई जनता पार्टी में शामिल हो गए. मार्च 1977 में जब लोकसभा के चुनाव हुए तो जनता पार्टी को स्पष्ट बहुमत प्राप्त हो गया लेकिन उनके लिए प्रधानमंत्री बनना इतना आसान नहीं था क्योंकि चौधरी चरण सिंह और जगजीवन राम भी प्रधानमंत्री पद के दावेदार थे. ऐसे समय में जयप्रकाश नारायण का समर्थन काम आया और मोरारजी प्रधानमंत्री बने. 1977 से लेकर 1979 तक मोरारजी देसाई कार्यकाल रहा. चौधरी चरण सिंह के साथ मतभेदों के चलते उन्हें प्रधानमंत्री पद छोड़ना पड़ा था.


 

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