रतन टाटा...वो नाम जो किसी परिचय का मोहताज नहीं है. जिस ऊंचाई पर आज हम रतन टाटा को देख रहे हैं उसके लिए रतन टाटा ने न जाने कितने पापड़ बेले हैं. कई बार फेल्योर हाथ लगी लेकिन जिद और जुनून ने सफलता की बुलंदियों पर पहुंचा दिया. रतन टाटा ने ही कहा था कि जिंदगी में उतार चढ़ाव का होना बहुत जरूरी है क्योंकि ईसीजी में सीधी लाइन का मतलब होता है डेथ.
रतन टाटा की पूरी जिंदगी है मोटिवेशन
रतन टाटा की पूरी जिंदगी ही लोगों के लिए मोटिवेशन है. आप उनकी जिंदगी के किसी भी दौर को याद करें या कहानियां पढ़ेंगे तो एक अलग ऊर्जा मिलेगी. चाहे वह टाटा ग्रुप में आने के बाद लगातार फेल्योर हो या फिर स्टूडेंट लाइफ में अपने दम पर पढ़ाई के लिए अमेरिका के रेस्टोरेंट में बर्तन धोने का काम. कहा जाए तो मोटिवेशन के लिए रतन टाटा का नाम काफी है तो यह गलत नहीं होगा.
आंखों के सामने बिखर गए थे सपने
वैसे तो टाटा कंपनी वर्षों से गाड़ियां बना रही थी लेकिन 1998 में रतन टाटा ने कार लॉन्च करने का सपना देखा. ये रतन टाटा का ड्रीम प्रोजेक्ट था. रतन टाटा ने पूरी तरह देश में बने इंडिका कार लॉन्च की. लेकिन, एक साल के अंदर ही ये फ्लॉप हो गई. रतना टाटा का सपना उनकी आंखों के सामने बिखर रहा था. इन्वेस्टर्स को बहुत नुकसान हुआ. उन्हें कुछ लोगों ने सुझाव दिए कि कार कंपनी बेच दें. उन्हें यह सुझाव ठीक लगा और वे कार कंपनी बेचने का प्रस्ताव लेकर फोर्ड कंपनी के पास गए.
फोर्ड के चेयरमैन के व्यवहार से लगा धक्का
वो कहते हैं ना कि जब कुछ बड़ा होना होता है तो उससे पहले बुरे वक्त का एक दौर चलता है. रतन टाटा और फोर्ड कंपनी के अधिकारियों के बीच तीन घंटे की मीटिंग चली. इसमें फोर्ड के चेयरमैन बिल फोर्ड का व्यवहार काफी रूखा था. उन्होंने रतन टाटा को यहां तक कह दिया कि अगर तुम्हें कार बनानी नहीं आती तो तुमने इस बिजनेस में इतने पैसे क्यों डाले. ये कंपनी खरीदकर हम तुमपर बहुत बड़ा एहसान कर रहे हैं. इस तरह के व्यवहार से रतन टाटा को बहुत बड़ा झटका लगा. उन्होंने बैठक में काफी अपमानित महसूस किया. रतन टाटा ने डील छोड़ी और अपनी टीम के साथ वापस लौट आए और पूरा ध्यान टाटा मोटर्स पर लगा दिया.
शब्द वही थे बस हालात बदले हुए थे
यहां से रतन टाटा की किस्मत बदलने वाली थी. सालों की रिसर्च के बाद रतन टाटा ने इंडिका का नया वर्जन लॉन्च किया. शुरुआती झटके के बाद ये कारोबार धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा. कुछ समय बाद ये बेहद मुनाफे का व्यवसाय साबित हुआ. वहीं, फोर्ड कंपनी जगुआर और लैंड रोवर की वजह से काफी घाटा झेल रही थी. 2008 आते आते कंपनी दिवालिया होने के कगार पर आ गई. टाटा ने दोनों को खरीदने का प्रस्ताव रखा जिसे बिल फोर्ड ने स्वीकार कर लिया. बिल फोर्ड टाटा के मुख्यालय आए और रतन टाटा से कहा कि आप हमारी कंपनी खरीदकर हम पर बहुत बड़ा एहसान कर रहे हैं. शब्द कुछ उसी तरह के थे बस हालात बदले हुए थे. रतन टाटा ने कहा है मैं फैसले पहले लेता हूं, उसे बाद में सही साबित करता हूं. ऐसा उन्होंने कर दिखाया.
रतन टाटा की तरह अगर आपने भी जिद पाला और ऐसा ही जुनून आपके सिर पर सवार रहा तो यकीन मानिये वो दिन दूर नहीं जब आप भी सफलता की बुलंदियों पर होंगे.