कई ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी और देश की आजादी का गवाह रहा मुंबई का आजाद मैदान (Azad Maidan) पर एक और इतिहास बनने जा रहा है. जी हां, यहीं पर 5 दिसंबर 2024 की शाम 5 बजे देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे. समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित देश की कई नामचीन हस्तियां शामिल होंगी.
शपथ ग्रहण समारोह को लेकर आजाद मैदान सज-धजकर तैयार है. आइए जानते हैं महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) की सभा से लेकर सचिन तेंदुलकर-विनोद कांबली (Sachin Tendulkar-Vinod Kambli) की 664 रनों की ऐतिहासिक पारी तक का गवाह बने आजाद मैदान की कहानी.
आजाद मैदान को पहले जाना जाता था इस नाम से
आजाद मैदान छत्रपति शिवाजी टर्मिनस स्टेशन के पास स्थित है. यह मैदान त्रिकोणीय आकार में 25 एकड़ में फैला हुआ है. आजाद मैदान ने बंबई को मुंबई में बदलते हुए देखा है. आजाद मैदान को पहले बॉम्बे जिमखाना मैदान के नाम से जाना जाता था. बाद में इसका नाम बदलकर आजाद मैदान कर दिया गया था क्योंकि इसने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
इस मैदान पर देश की आजादी को लेकर कई आंदोलन हुए हैं. आजाद मैदान के बाहर ही 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को समर्पित अमर जवान ज्योति स्मारक स्थित है. देश की आजादी के दौरान महात्मा गांधी ने कई सभाएं आजाद मैदान पर की थी. आजाद मैदान दर्जनों क्रिकेट मैच, किसान आंदोलन और धार्मिक आंदोलन का भी गवाह रहा है.
पुलिस लाठीचार्ज कर निकाल देती थी बाहर
1930 के दशक में लगभग हर दूसरे दिन आजाद मैदान में एक राजनीतिक प्रदर्शन होता था. कांग्रेस के स्वयंसेवक आकर विशाल मैदान में इकट्ठा होते थे, नारे लगाते थे, झंडों के साथ विरोध प्रदर्शन करते थे और लगभग हर दूसरे दिन पुलिस उन पर लाठीचार्ज कर उन्हें मैदान से बाहर निकाल देती थी.
सविनय अवज्ञा आंदोलन का रहा था केंद्र
आजाद मैदान साल 1930 में बंबई के सविनय अवज्ञा आंदोलन का केंद्र रहा था. अंग्रेजों ने जब महात्मा गांधी को मई 1930 में गिरफ्तार किया था, तो पूरी बंबई में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया था. आजाद मैदान सहित कई जगहों पर सामूहिक रैलियां निकाली गई थीं. महात्मा गांधी को जब अंग्रेजों ने 25 जनवरी 1931 रिहाई किया तो वह शहर की यात्रा पर निकले. हजारों लोगों ने उनका जोरदार स्वागत किया.
जब बापू को रद्द करनी पड़ी थी सभा
आजाद मैदान में 26 जनवरी 1931 को एक सार्वजनिक सभा बुलाई गई, क्योंकि यह पूर्ण स्वराज की घोषणा के बाद पहला साल था. सार्वजनिक सभा में दो लाख से अधिक श्रमिक, महिलाएं और छात्र शामिल हुए. बापू जब भाषण देने के लिए मंच पर पहुंचे तो उन्हें देखने और सुनने के लिए भीड़ उमड़ पड़ी. इसके बाद भीड़ इतनी बढ़ गई कि भगदड़ मच गई और सभा रद्द करनी पड़ी.
देशभक्ति का जोश था चरम पर
मार्च 1931 में महात्मा गांधी बंबई वापस लौटे और गांधी मैदान में एक और सार्वजनिक बैठक आयोजित की गई. चाक-चौबंद सुरक्षा के बावजूद जैसे ही बापू ने बोलना शुरू किया भीड़ का उत्साह इतना बढ़ गया कि फिर सभा रद्द कर दी गई. उस समय बंबई सहित पूरे देश के लोगों में देशभक्ति का जोश अपने चरम पर था. इस दौरान आजाद मैदान में कई बड़े नेताओं देश को आजादी दिलाने के लिए अपनी रणनीति बनाई. इस तरह आजाद मैदान पूरे स्वतंत्रता संग्राम के दौरान सक्रियता का एक महत्वपूर्ण केंद्र बना रहा.
बॉम्बे जिमखाना क्लब हाउस
आजाद मैदान तीन प्रतिष्ठित इमारतों छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस, एस्प्लेनेड कोर्ट यानी किला कोर्ट और बृहन्मुंबई नगर निगम के मुख्यालय के पास है. आजाद मैदान के दक्षिणी छोर पर बॉम्बे जिमखाना क्लब हाउस 1875 में बनाया गया था. इस मैदान के सामने बॉम्बे जिमखाना है, जिसे दिसंबर 1933 में भारत के पहले टेस्ट मैच की मेजबानी करने का गौरव प्राप्त था. उस मैच में टीम की कप्तानी कर्नल सीके नायडू ने की थी.
जब सचिन-कांबली ने खेली थी ऐतिहासिक पारी
मुंबई के आजाद मैदान पर साल 1988 में 23-25 फरवरी के दौरान हैरिस शील्ड का सेमीफाइनल मुकाबला खेला गया था. उस मुकाबले में सचिन तेंदुलकर और विनोद कांबली ने शारदाश्रम विद्यामंदिर टीम की ओर से सेंट जेवियर हाईस्कूल के खिलाफ नाबाद 664 रनों की ऐतिहासिक साझेदारी की थी. उस भागीदारी के दौरान सचिन 326 रन और विनोद कांबली 349 रन पर नाबाद रहे थे.
उस समय क्रिकेट के किसी भी आयु वर्ग में किसी विकेट के लिए यह सबसे बड़ी पार्टनरशिप थी. आपको मालूम हो कि आजाद मैदान में 22 क्रिकेट पिच हैं. इस मैदान की क्रिकेट पिचों ने कई अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटरों को जन्म दिया है. इसी मैदान पर 20 नवंबर 2013 को पृथ्वी शॉ ने 546 रनों की पारी खेली थी. सरफराज खान ने साल 2009 में आजाद मैदान में हैरिस शील्ड मैच में 439 रन बनाए थे. आजाद मैदान साल भर कई क्रिकेट मैचों की मेजबानी करता है. इसमें इंटर-स्कूल और क्लब मैच शामिल हैं.
स्वतंत्रता सेनानियों का लगा रहता था मजमा
देश के जाने माने उद्योगपति रतन टाटा का घर तत्कालीन बंबई में आजाद मैदान के पास था. रतन टाटा बताते थे कि वे अपने घर की बालकनी से अक्सर आजाद मैदान की हलचलों की देखते थे. जहां अक्सर स्वतंत्रता सेनानियों का मजमा लगा हुआ होता, नेता आते, भाषणबाजी होती और साथ ही साथ होता अंग्रेज सिपाहियों से इनका टकराव. रतन टाटा के अनुसार वे कई बार अपने घर से आजाद मैदान में लाठीचार्ज, दंगा और हिंसा की तस्वीरें देखा करते थे.