मुजफ्फपुर के Red light Area की महिलाओं ने शुरू किया Startup, 'खोइछा' बनाकर सुहागनों के दे रहीं खुशियां, जानिए बदनाम गलियों में कैसे पनप रहा हुनर

Khoichha: मुजफ्फरपुर के रेड लाइन एरिया की महिलाओं ने जुगनू रेडीमेड गारमेंट ने नाम से स्टार्टअप शुरू किया है जिसमें महिलाएं सुहागनों के लिए 'खोइछा' बनाती है. इस कार्य में करीब 20 महिलाएं अपने हुनर का एक नया रुप दे रही हैं. इस खोइछा को बिहार ही नहीं, बल्कि अन्य राज्य में खूब पंसद किया जा रहा है.

खोइछा को बिहार ही नहीं, बल्कि अन्य राज्यों में भी किया जा रहा है पंसद
gnttv.com
  • मुजफ्फरपुर,
  • 02 अगस्त 2023,
  • अपडेटेड 9:10 PM IST
  • महिलाओं को मिला आत्म-सम्मान से जीने का रास्ता
  • दुल्हनों के लिए खोइंछा बना रही महिलाएं

मुजफ्फरपुर के चर्चित रेड लाइट एरिया के वंचित समाज से आने वाली महिलाएं वैसे तो खुद किसी घर की दुल्हन नहीं बन सकीं, लेकिन इनके द्वारा बनाई जाने खोइछा दुल्हनों की पहली पसंद बनते जा रहें हैं. जिन महिलाओं को परम्पराओं के नाम पर सामाजिक व्यवस्था से अलग-थलग किया जाता है, वही महिलायें बिहार की संस्कृति का हिस्सा खोइछा को डिजाइनर रूप देकर लोक-परम्पराओं को आधुनिक समाज से जोड़ने के प्रयास कर रही हैं. 

रेड लाइट इलाके की महिलाओं ने अपना एक समूह 'जुगनू रेडीमेड गारमेंट' बनाकर है जिसमें वह डिजाइनर खोइछा और महिलाओं का पसंदीदा सामान बना रही हैं. जुगनू में काम करने वाली शमीमा जैनब, मरियम, काजल, शगुफ्ता समेत 20 महिलाएं और लड़कियां सेल्फ हेल्फ ग्रुप के नाम से कपड़ो के कतरन से खोईछा बना रही है. उनका कहना है कि अब पहनावा बदल गया है मगर हमारी लोक परम्पराएं नहीं बदलीं.

बढ़ रही है खोइछा की डिमांड

आज भी घर से निकलते समय मां बेटियों को खोइछा भर कर देती हैं. बाजार में ऑनलाइन पोटली तो बिकती है, लेकिन वह बहुत मंहगी हैं. उन्होंने कहा कि हम सभी महिलाओं ने मिलकर प्लान बनाया कि हम खोइंछा को डिजाइनर रूप दे सकते हैं. शुरुआत में बड़े कपड़े की सिलाई के बाद बचे कपड़ों के कतरन से हमने इसे बनाना शुरू किया था जिससे लोगों ने खूब पसंद किया. अब यहां बने खोइंछे की मांग आसपास के जिलों में होने लगी है.

क्या होता है खोइछा

खोइचा वैवाहित महिलाओं को दिया जाता है. विवाहित बेटियां बेटी या बहू के मायके, ससुराल से जाने-आने के समय इस खोइंछा में धान, दूब, पान, सुपारी, चावल, हल्दी के गांठ के साथ बड़ों का आशीर्वाद भी भरकर मिल रहा है. इससे काफी शुंभ माना जाता है. 

जुगनू संस्था ने बदली महिलाओं की किस्मत

वंचित बेटियों के लिए काम कर रही संस्था जुगनू की संस्थापक नसीमा खातून का कहना है कि इस समाज की महिलाओं के लिए समाज का नजरिया अलग होता है. बेटियों को रोजगार मुहैया कराने के लिए जब उन्हें बुटिक के काम से जोड़ा गया, तो महिलाओं ने खुद से खोइछा बनाने की पहल की. महिलाएं कहती हैं कि हमारा आंचल खाली रह गया तो क्या हुआ, समाज की हर बेटी का आंचल सुख समृद्धि से भरा रहे, इसी कामना के साथ वह इसे बनाती हैं.

आत्म-सम्मान से जीने का मिला रास्ता

नसीमा ने बताया कि कपड़ों के कतरन से हमलोग अलग अलग चीजें बनाते हैं. खोइछा और पोटली भी हमलोग उसी से बनाते हैं और मार्केट में इसकी काफी डिमांड होती है. अमेजन जैसी ऑनलाइन वेबसाइट पर इसकी कीमत हजार के आस पास होती है, लेकिन इसकी लागत कीमत काफी कम है. आज कल की दुल्हन फैशन के लिए शादी में नेट वाला साड़ी पहनती है. नेट वाली साड़ी में पल्लू में खोइछा देने में काफी दिक्कत होती है, इसीलिए हमलोगो ने अलग से ऐसा खोइछा बनाने का सोचा जिसमें खोइछा के अलावा पैसे आसानी से रख सकें. मुजफ्फरपुर के चतुर्भुज स्थान जोहरा गली में जिला प्रशासन की सहयोग से जुगनू रेडीमेड गारमेण्ट में 20 महिलाएं अभी काम कर रही है. हमलोगों का सपना है कि भविष्य में इसे फैक्ट्री बनाया जाएं.

 

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