National Civil Service Day: अंग्रेजों के जमाने में इंग्लैंड में होता था सिविल सर्विस का एग्जाम, ये थे भारत के पहले 10 IAS अफसर

भारत में सिविल सर्विसेज का बहुत ज्यादा महत्व है. हर साल लाखों बच्चे इसके लिए परीक्षा देते हैं लेकिन कुछ ही पास कर पाते हैं. और जो पास करके बतौर IAS, IPS या किसी और विभाग में नियुक्ति लेते हैं उनकी जिम्मेदारी काफी बढ़ जाती हैं.

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gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 21 अप्रैल 2023,
  • अपडेटेड 2:29 PM IST
  • साल 1863 में पहली बार एक भारतीय बना IAS
  • सत्येंद्रनाथ टैगोर थे पहले आईएएस अफसर

भारत में सिविल सर्विसेज का इतिहास बहुत पुराना है. यह अंग्रेजों के जमाने से जुड़ा है. उस जमाने में इंडियन सिविस सर्विसेज को इंपीरियल सिविल सर्विसेज कहा जाता था. हालांकि, समय के साथ इसका नाम बदलकर Indian Civil Services हो गया. ब्रिटिश भारत में प्रशासनिक सेवाओं में ऊंचे पदों पर ज्यादातर ब्रिटिश होते थे. भारतीयों के लिए परीक्षा पास करना बहुत मुश्किल था और तो और उस समय परीक्षा इंग्लैंड में होती थी. साथ ही, अंग्रेज पेपर बहुत कठिन सेट करते थे ताकि अगर कोई भारतीय परीक्षा देना चाहे तो भी पास न कर पाए. 

हालांकि, साल 1863 में ब्रिटिशर्स का घमंड टूट गया. क्योंकि इस साल की परीक्षा एक भारतीय ने भी पास की थी. भारत के पहले भारतीय आईएएस अफसर थे सत्येंद्रनाथ टैगोर. जी हां, कवि रबिंद्रनाथ टैगोर के भाई और वह ब्रह्म समाज के सदस्य भी थे. आजादी से पहले भारत में सत्येंद्रनाथ के बाद और भी कई भारतीय आईएएस बने. और आज हम आपको बता रहे हैं देश के पहले 10 आईएएस अफसरों के बारे में. 

1. सत्येंद्रनाथ टैगोर
सत्येंद्रनाथ टैगोर एक स्कॉलर और भारतीय सिविल सर्विस में शामिल होने वाले पहले भारतीय थे. वह एक लेखक, संगीतकार और भाषाविद् थे और उन्होंने भारतीय महिलाओं के उत्थान में महत्वपूर्ण योगदान दिया. 1862 में सत्येंद्रनाथ लंदन गए और यहां उन्होंने भारतीय सिविल सेवा में शामिल होने के लिए अंग्रेजों के साथ प्रतिस्पर्धा की. अपने प्रशिक्षण के बाद वह नवंबर 1864 में पहले भारतीय अधिकारी के रूप में भारत लौटे.  उन्होंने बंबई में शुरुआत की और फिर अहमदाबाद में बतौर सहायक मजिस्ट्रेट और कलेक्टर सिविल सेवक के रूप में अपना करियर शुरू किया. 

2. रोमेश चंदर दत्त
सर रोमेश चंदर दत्त का जन्म 13 अगस्त, 1848 को कलकत्ता में एक ऐसे परिवार में हुआ था जो पहले से ही अपनी शैक्षणिक और साहित्यिक उपलब्धियों के लिए प्रसिद्ध था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा कलकत्ता और जिलों के बंगाली स्कूलों में हुई. उन्होंने 1866 में प्रेसीडेंसी कॉलेज से कलकत्ता विश्वविद्यालय की पहली आर्ट परीक्षा उत्तीर्ण की और छात्रवृत्ति हासिल की. साल 1868 में वह इंग्लैंड के लिए रवाना हुए और वहां भारतीय सिविल सर्विस की परीक्षा पास की. दत्त ने 1871 में भारतीय सिविल सेवा में एक उत्कृष्ट करियर शुरू किया. वह उड़ीसा के आयुक्त के रूप में सेवा करते हुए 49 वर्ष की अपेक्षाकृत कम उम्र में 1897 में भारतीय सिविल सेवा से सेवानिवृत्त हुए.

3. बिहारी लाल गुप्ता
बिहारी लाल गुप्ता भारतीय सिविल सेवा के सदस्य और राजनीतिज्ञ थे. बिहारी लाल गुप्ता का जन्म कलकत्ता में हुआ था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा हेयर स्कूल और प्रेसीडेंसी कॉलेज, कलकत्ता में हुई. वे अपने बचपन के मित्रों आर.सी. उच्च अध्ययन के लिए दत्त और सुरेंद्रनाथ बनर्जी इंग्लैंड गए. इंग्लैंड में, उन्होंने यूनिवर्सिटी कॉलेज, लंदन में प्रवेश लिया. वह 1869 में भारतीय सिविल सेवा में शामिल होने वाले तीसरे भारतीय बने. 

4. सुरेंद्रनाथ बनर्जी
सुरेंद्रनाथ बनर्जी ने देश की आजादी में प्रभावशाली भूमिका निभाई. एक प्रतिष्ठित प्रोफेसर के रूप में करियर शुरू करने से लेकर कांग्रेस के माध्यम से राजनीति में कदम रखने तक, उनका प्रभाव काफी ज्यादा रहा. 
कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने सिविल सेवा के लिए लक्ष्य रखा. वह भारतीय सिविल सेवा परीक्ष देने के लिए 1868 में बिहारी लाल गुप्ता और रोमेश चंदर दत्त के साथ इंग्लैंड की यात्रा की. उन्होंने परीक्षा पास कर ली लेकिन सही उम्र पर विवाद के कारण पोस्टिंग नहीं मिली. हालांकि, बाद में 1871 में उन्हें पहली पोस्टिंग सिलहट में सहायक दंडाधिकारी के रूप में मिली. लेकिन कुछ समय बाद उन्हें कुछ कारणों से बर्खास्त कर दिया गया था और इसके बाद वह शिक्षा क्षेत्र से जुड़ गए. 

5. आनंदराम बरुवा
अनुंदोरम बरूआ (1850-1889) एक भारतीय वकील और संस्कृत के विद्वान थे. वह असम राज्य से पहले स्नातक और पहले भारतीय सिविल सेवा अधिकारी दोनों थे. वह भारत में जिला मजिस्ट्रेट का पद पाने वाले पहले भारतीय थे. 

6. कृष्ण गोविंदा गुप्ता
सर कृष्ण गोविंदा गुप्ता (28 फरवरी 1851 - 20 मार्च 1926) एक प्रसिद्ध ब्रिटिश भारतीय सिविल सेवक थे. वह भारतीय सिविल सेवा के छठे भारतीय सदस्य थे. इसके अलावा, वह एक बैरिस्टर भी थे. साथ ही, गुप्ता 19वीं शताब्दी के एक प्रमुख बंगाली समाज सुधारक और प्रमुख ब्रह्म समाज शख्सियत भी थे. 

7. ब्रजेंद्रनाथ डे
ब्रजेंद्रनाथ डे (23 दिसंबर 1852 - 20 सितंबर 1932) भारतीय सिविल सेवा के सातवें भारतीय सदस्य थे. डे पढ़ने में बहुत अच्छे थे. उन्होंने कलकत्ता यूनिवर्सिटी से मास्टर्स में सिल्वर मेडल जीता. बाद में, वह उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड गए. इंग्लैंड में, उन्होंने ओपन कॉम्पिटिटिव सर्विसेज परीक्षा में शामिल होने के लिए यूनिवर्सिटी कॉलेज, लंदन में प्रवेश लिया. सफलतापूर्वक परीक्षा देने के बाद, वह 1873 में भारतीय सिविल सेवा में शामिल हुए. डे कुल 360 उम्मीदवारों में से चुने गए 35 सफल छात्रों के बैच में 17वें स्थान पर रहे. 

8. महाराजधिराज सर रामेश्वर सिंह बहादुर 
रामेश्वर सिंह ठाकुर (16 जनवरी 1860 - 3 जुलाई 1929) 1898 में अपनी मृत्यु तक मिथिला क्षेत्र में दरभंगा के महाराजा थे. वह अपने बड़े भाई महाराजा सर लक्ष्मेश्वर सिंह की मृत्यु पर महाराज बने, जिनकी मृत्यु बिना किसी संतान के हुई थी. उन्हें 1878 में भारतीय सिविल सेवा में नियुक्त किया गया था, और वह दरभंगा, छपरा और भागलपुर में क्रमिक रूप से सहायक मजिस्ट्रेट के रूप में कार्यरत थे. उन्हें दीवानी अदालतों में उपस्थिति से छूट दी गई थी और 1885 में उन्हें बंगाल विधान परिषद का सदस्य नियुक्त किया गया था. वे लेफ्टिनेंट गवर्नर की कार्यकारी परिषद में नियुक्त होने वाले पहले भारतीय थे. 

9. पेरुंगवुर राजगोपालाचारी 
दीवान बहादुर सर पेरुंगवुर राजगोपालाचारी (18 मार्च 1862 - 1 दिसंबर 1927) एक भारतीय प्रशासक थे. वह दिसंबर 1896 से अगस्त 1901 तक कोचीन राज्य के दीवान (प्रधान मंत्री) और 1906 से 1914 तक त्रावणकोर में थे. राजगोपालाचारी का जन्म मद्रास में हुआ था और उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज और मद्रास लॉ कॉलेज में शिक्षा प्राप्त की. वह 3 मई 1886 को न्यायिक विभाग भारतीय सिविल सेवा में शामिल हुए और दिसंबर 1887 में उन्हें डिप्टी कलेक्टर नियुक्त किया गया. 2 मई 1890 से दिसंबर 1896 तक, उन्होंने मद्रास प्रांत में सहायक कलेक्टर और मजिस्ट्रेट के रूप में कार्य किया.

10. बसंत कुमार मलिक
सर बसंत कुमार मलिक (2 अगस्त 1868 - 1 अक्टूबर 1931) एक भारतीय सिविल सेवक और न्यायाधीश थे. मलिक का जन्म कलकत्ता में हुआ था. उन्होंने इंग्लैंड में, यूनिवर्सिटी कॉलेज स्कूल और किंग्स कॉलेज, कैम्ब्रिज में शिक्षा प्राप्त की और 1887 में भारतीय सिविल सेवा में शामिल हुए. 1890 में उन्हें सहायक मजिस्ट्रेट और कलेक्टर के रूप में बंगाल में तैनात किया गया था. बाद में, उन्हें एक जिला और सत्र न्यायाधीश नियुक्त किया गया. इसके बाद अलग-अलग जगह नियुक्तियों के बाद वह अप्रैल 1928 में बिहार और उड़ीसा की कार्यकारी परिषद के एक अस्थायी सदस्य बने और जुलाई 1929 में उन्हें भारतीय परिषद में नियुक्त किया गया. वह भारतीय सिविल सेवा के पहले भारतीय सदस्य थे, जो परिषद में शामिल हुए थे. उन्होंने राष्ट्र संघ की कई समितियों में भारत का प्रतिनिधित्व किया. 

 

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