Juvenile Justice Act में हों बदलाव! NCPCR ने तैयार की ड्राफ्ट गाइडलाइन, कहा- बच्चे की रिपोर्ट में हो कुछ जरूरी बातें शामिल

Juvenile Justice Act: जुवेनाइल जस्टिस एक्ट को बच्चों के लिए और मजबूत करने की मांग चल रही है. इसके लिए नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स ने ड्राफ्ट गाइडलाइन भी तैयार की है.

juvenile justice act
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 05 जनवरी 2023,
  • अपडेटेड 6:58 PM IST
  • कुछ दिशानिर्देश हैं जरूरी 
  • जुवेनाइल बोर्ड करेगा बच्चे की सजा निर्धारित 

भारत में बच्चों के प्रोटेक्शन के लिए जुवेनाइल जस्टिस एक्ट (Juvenile Justice Act) बनाया गया है. इसके तहत नाबालिग द्वारा किए गए अपराध की सजा तय की जाती है. साथ ही ऐसे मामलो के लिए कोर्ट भी अलग होते है. जेजे एक्ट में 18 साल के कम उम्र के बच्चे को बच्चा ही माना गया है. जिसके तहत नाबालिग अपराधियों की अधिकतम सजा तीन वर्ष दी जा सकती है. इस दौरान उन्हें सुधार और देख-भाल के लिए अलग बाल गृह में रखा जाता है. हालांकि, किसी जघन्य अपराध में बच्चे का ट्रायल एक वयस्क के रूप में किया जा सकता है. लेकिन बच्चों के प्रोटेक्शन के लिए इसमें पिछले कुछ समय से बदलाव की मांग चल रही है. इसके लिए नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (National Commission for Protection of Child Rights) ने ड्राफ्ट गाइडलाइन भी तैयार की है.

कुछ दिशानिर्देश हैं जरूरी 

जुवेनाइल एक्ट में कहा गया है कि 16-18 साल की उम्र के एक बच्चे पर अगर "जघन्य अपराध" करने का आरोप लगाया गया है तो कोर्ट में उसकी पेशी एक वयस्क के रूप में की जा सकती है. यानि कोर्ट इसपर विचार कर सकता है. और सजा भी उसी आधार पर तय की जा सकती है. लेकिन NCPCR ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए इसमें बदलाव की मांग की है. उन्होंने इसका ड्राफ्ट तैयार करते हुए कहा है कि ऐसे मामलों में बच्चों की रिपोर्ट तैयार करते हुए कुछ बेहद जरूरी बातों का ख्याल रखा जाए. ड्राफ्ट गाइडलाइन पिछले साल सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद बनाई गई थी. अब इसी कड़ी में इसपर टिप्पणियों के लिए एनसीपीसीआर ने इस मसौदे को पब्लिक डोमेन में रखा गया है. लोगों से इस ड्राफ्ट पर 20 जनवरी तक प्रतिक्रिया मांगी गई है.

क्या है जुवेनाइल जस्टिस एक्ट?

गौरतलब है कि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, 2015 के एक स्पेशल सेक्शन में इसके बारे में बात की गई है. इसमें कहा गया है अगर किसी बच्चे ने कोई जघन्य अपराध किया है, और वह 16 साल की उम्र से ज्यादा का है. तो ऐसे मामलों में बोर्ड उसी तरह फैसला ले सकता है. 

अब ड्राफ्ट गाइडलाइन में कहा गया है कि ऐसे मामलों में बच्चे की मानसिक और शारीरिक क्षमता, अपराध के परिणामों को समझने की क्षमता और जिन परिस्थितियों में उसने वह अपराध किया है, उसके संबंध में एक प्राइमरी अससेमेंट तैयार किया जाए. उसी के हिसाब से फिर कोई भी आदेश पारित किया जाए. ड्राफ्ट में कहा गया है कि रिपोर्ट में बच्चे से जुड़ी सभी बातें शामिल होनी चाहिए. जैसे उसका सामाजिक-जनसांख्यिकीय विवरण, मनोवैज्ञानिकों और अन्य विशेषज्ञों द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया का विवरण आदि. 

जुवेनाइल बोर्ड करेगा निर्धारित 

गौरतलब है कि जेजे एक्ट में कहा गया है कि जघन्य अपराधों के मामले में शुरुआत में होने वाला सभी मूल्यांकन जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के समक्ष बच्चे की पहली ट्रायल तारीख से तीन महीने की अवधि के भीतर निपटाया जाना चाहिए. ऐसे में बोर्ड तब एक आदेश पारित करेगा कि बच्चे के एक वयस्क के रूप में परीक्षण की आवश्यकता है या नहीं. इस तरह के अपराधों में जुवेनाइल कोर्ट से चल रहे मामले कोटी ट्रांसफर करने का आदेश दिया जा सकता है. बाल न्यायालय यह तय कर सकता है कि अमुक बच्चे को वयस्क के रूप में या केवल एक जुवेनाइल के रूप में परीक्षण की आवश्यकता है या नहीं और उसी के आधार पर उचित आदेश पारित कर सकता है.


 

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