National Flag Day: तिरंगे का सफर... वर्षों के प्रयास के बाद आज ही के दिन देश को मिला था अपना झंडा, जानिए महत्व और इतिहास

आजादी के कुछ दिन पहले ही 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा में मुद्दे को उठाया गया और विचार विमर्श के लिए बैठक आयोजित की गई. और आखिर में 22 जुलाई 1947 को देश को अपना राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा मिला. इस ध्वज को गांधी जी के कहने पर स्वतंत्रता सेनानी पिंगली वेंकैया ने 5 सालों में डिजाइन किया था.

Tricolor History (Photo-PTI)
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 22 जुलाई 2024,
  • अपडेटेड 4:32 PM IST

साल 1906 से 1947 के बीच भारत अपनी आजादी की लड़ाई लड़ रहा था और इसी बीच देश को सशक्त बनाने के कई प्रयास भी किए जा रहे थे.  देश से जुड़े कई अहम मुद्दों में एक अहम मुद्दा देश का तिरंगा भी था. जिस तिरंगे को आज हम देखते हैं वह हमेशा से ऐसा बिल्कुल नहीं था. वर्ष 1906 से 1947 के बीच तिरंगे को अपनाए जाने से पहले कई बदलाव किए गए. तिरंगे का रंग, रूप , लंबाई, चौड़ाई , और उसमें बना प्रतीक चिह्न काफी विवाद और चर्चा का विषय बन चुका था. काफी बहस और चर्चा के बाद आज ही के दिन 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने  पिंगली वेंकैया द्वारा डिजाइन किए गए तिरंगे को  राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया था. लेकिन यह सफर इतना आसान नहीं था. तिरंगे के रूप के पीछे गांधी जी की एक अहम भूमिका रही है जिसे ठुकराया नहीं जा सकता. आइए जानते है तिरंगे  के सफर , संघर्ष , और इससे जुड़े नियमों के बारे में.

तिरंगे का महत्व

भारत में तिरंगा का अर्थ है तीन रंगों से बना हुआ ध्वज जो हमारे देश के लिए  खास अहमियत रखता है. तिरंगा भारत की आन, बान और शान होने के साथ देश के लोगों के दिलों में एक खास जगह बनाए हुए है .तिरंगे से छेड़छाड़ देश की शान में गुस्ताखी से कम नहीं है. भारतीय राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा भारत के लिए गए अंग्रेजों के अत्याचार और देश के लिए  किए गए  बलिदान का  प्रतीक होने के साथ अलग-अलग धर्मों के मिलजुल कर एक साथ एक ही देश में रहने का प्रमाण भी है. तिरंगे के तीन रंगों को काफी सोच समझकर चुना गया है और हर रंग देश को एक संदेश देता है जो राष्ट्रीय एकता और शांति  को दर्शाता है. देश का राष्ट्रीय ध्वज सिर्फ एक कपड़ा नहीं है यह भारत की ताकत का प्रतीक और यहां के लोगों के लिए प्रेरणा है जिसका अनादर कभी भी बर्दाश्त नहीं किया जा सकता.

तिरंगे के रंग का महत्व

तिरंगे के रंग सौंदर्य के लिए नहीं बनाए गए हैं और ना ही किसी धर्म से जुड़े हैं. तिरंगे में इस्तेमाल हुआ हर  एक रंग अपने आप में देश के लिए एक संदेश है जो भारत को मजबूत और सशक्त दिखाने का काम करता है. हर रंग में एक गहरा संदेश छुपा है जो भारतीय सभ्यता को दर्शाता है. हर रंग का इस्तेमाल बराबर मात्रा में किया गया है जिससे यह साफ होता है की भारत में इन रंगों की मान्यता को एक स्तर पर रखा और देखा जाता है.

तिरंगे का केसरिया रंग  साहस, बलिदान, और शक्ति का प्रतीक है जो देश के वीर जवानों  के बलिदान की याद दिलाता है. सफेद रंग शांति और सच्चाई का प्रतीक है जो सशक्त भारत का नींव का आधार है. तिरंगे का हरा रंग वृद्धि, समृद्धि और हरियाली का प्रतीक है. हरा रंग अकसर प्रकृति और उर्वरता से जुड़ा होता है, जो भारत के लोगों को पोषण देने वाली भूमि के महत्व को उजागर करता है.

भारत को कैसे मिला अपना तिरंगा ?

भारत के राष्ट्रीय ध्वज को चुनना कोई आसान काम नहीं था यह देश की जिम्मेदारी थी जिसे सही रूप से पूरा करना बेहद जरूरी था. यह भारत के लोगों की भावनाओं और इच्छाओं से जुड़ा हुआ था. राष्ट्रीय ध्वज का मुद्दा तो आजादी से पहले से उठ चुका था और इसी के साथ  देश में पहला ध्वज   7 अगस्त 1906 को फहराया गया था लेकिन  समय के साथ राष्ट्रीय ध्वज में कई बदलाव भी  किए गए. देश की आजादी के बाद राष्ट्रीय ध्वज कैसा दिखेगा यह एक  गंभीर विषय था और इसका निर्णय अब भी अधूरा था. राष्ट्रीय ध्वज को रूप तय करने के लिए 6 जून,1947  को राजेन्द्र प्रसाद द्वारा संचालित  ध्वज समिति का गठन किया गया. इस समिति में  के एम मुंशी, अबुल कलाम आज़ाद और  बाबा साहिब अंबेडकर जैसे दिग्गज नेता भी समिति में शामिल थे.

इस समिति ने जिस झंडे को अपनाया वह वही झंडा था जिसे 1931 में कांग्रेस ने मान्यता दी थी. लेकिन समिति चाहती थी की ध्वज के बीच में  चरखे की जगह अशोक चक्र हो. यह सलाह पूर्व भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष तैयबजी के  पोते और झंडा समिति की  संविधान सभा के उप सचिवालय बदर-उद-दीन एच. एफ. तैयबजी ने दिया था. लेकिन डॉ. राजेंद्र प्रसाद चाहते थे की निर्णय लेने से पहले इस पर गांधी जी की सलाह ली जाए. तैयबजी की पत्नी ने इस ध्वज का एक नमूना बनाकर जब गांधी जी को पहुंचाया गया तो वे बेहद खुश हुए और ध्वज समिति ने चरखे के स्थान पर चक्र को अपना लिया.

तिरंगे से जुड़े नियम

देश में 'फ्लैग कोड ऑफ इंडिया 'कानून के अंदर तिरंगे को फहराने के नियम दिए गए हैं और इन नियमों को तोड़ने पर जेल भी हो सकती है. तिरंगे को फहराने की कुछ जरूरी बाते हैं जिन्हें ध्यान में रखना तिरंगे के सम्मान के लिए बहुत जरूरी है. उन नियमों में से कुछ अहम नियम है. तिरंगा फहराते वक्त तिरंगा दाहिने तरफ हो. किसी भी स्थिति में तिरंगा जमीन पर न लगे. तिरंगे का उपयोग सजावट के रूप में न हो. तिरंगा हमेशा कॉटन, सिल्क या फिर खादी का ही हो. तिरंगे का साइज 3:2 होती है लेकिन अशोक चक्र को माप तय नहीं है. लेकिन 24 तिल्लियां होना जरूरी है. झंडे पर कुछ भी बना या लिखा नहीं जा सकता. किसी भी दूसरे झंडे को राष्ट्रीय झंडे से ऊंचा या ऊपर नहीं लगा सकते और न ही बराबर रख सकते हैं.

 

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