National Technology Day 2022: जब भारत ने दुनिया को दिखाया न्यूक्लियर पावर का दम, वह मिशन जिसका पता अमेरिका भी न लगा सका

1998 में, अटल बिहारी वाजपेयी दोबारा सत्ता में आए और भारत को परमाणु देश बनाने के सपने पर काम किया. 11 मई 1998 को भारत ने पोखरण में पहला सफल परमाणु परीक्षण किया. यह प्रोजेक्ट इतने गुप्त ढंग से किया गया कि अमेरिका तक को इसकी कानों-कान खबर नहीं हुई.

National Technology Day 2022 (Photo: Twitter)
निशा डागर तंवर
  • नई दिल्ली ,
  • 11 मई 2022,
  • अपडेटेड 12:33 PM IST
  • 11 मई को मनाया जाता है National Technology Day
  • साल 1999 से हुई शुरूआत क्योंकि इसी दिन हुआ था परमाणु परीक्षण

भारत में हर साल 11 मई को राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस (National Technology Day 2022) के रूप में मनाया जाता है. साल 1998 में इसी दिन भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण किए थे. यह दिन साइंस और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में इंजीनियर्स और वैज्ञानिकों की उपलब्धियों का भी स्मरण कराता है. इस साल, भारत अपना 31वां राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस मना रहा है.

इस दिन की घोषणा तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने की थी. तब से, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र से जुड़े लोगों को उनके काम के पुरस्कार देकर इस दिन को चिह्नित किया जाता है. 

कैसे शुरू हुआ परमाणु शक्ति बनने का सफर 

भारत को 1962 के युद्ध में हराने के दो साल बाद, चीन ने 16 अक्टूबर 1964 को अपना पहला परमाणु परीक्षण, 16 किलोटन का बम विस्फोट किया और विशेष परमाणु-सशस्त्र स्टेट क्लब में प्रवेश करने वाला पांचवां देश बन गया. इससे भारत पर दबाव बढ़ गया क्योंकि अब चीन भारत पर कभी भी हमला कर सकता था. 

पर उस समय एक व्यक्ति को पता था कि इस स्थिति में क्या करना चाहिए. तत्कालीन राज्यसभा सांसद और भारतीय जनसंघ (बाद में भारतीय जनता पार्टी) के नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने चीन के परमाणु परीक्षण किए जाने के कुछ दिनों बाद संसद में कहा था कि परमाणु बम का जवाब परमाणु बम है, और कुछ नहीं. हालांकि, उस समय उनकी बात पर ज्यादा गौर नहीं किया गया. 

भारत ने पहली बार 1974 में तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में परमाणु शक्ति पर काम किया. गांधी ने 1974 में बुद्ध पूर्णिमा पर पोखरण- I परीक्षण किया था. इस मिशन को 'स्माइलिंग बुद्धा' नाम दिया गया था. और पश्चिमी देशों को शांत करने और उनसे प्रतिबंधों के खतरे से बचने के लिए इस परीक्षण को "शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोट" कहा गया. 

हर बार रोके गए भारत के कदम 

1974 में हुआ परमाणु टेस्ट भारत को अन्य परमाणु शक्तियों के बराबर लाने में काफी नहीं था. इसके बाद अगले दो दशकों में कई प्रधानमंत्रियों ने परमाणु अनुसंधान को पुनर्जीवित करने की कोशिश की. खासकर पीवी नरसिम्हा राव ने. पर अमेरिका की नजर लगातार भारत पर रही और वे बार-बार भारत को चेतावनी देते रहे.  

1996 में, अटल बिहारी वाजपेयी सत्ता में आए और भारत को परमाणु शक्ति बनाने के अपने सपने को पूरा करने की कोशिश की. वाजपेयी ने अपने निजी सचिव शक्ति सिन्हा को मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार और रक्षा अनुसंधान विकास संगठन (डीआरडीओ) के सचिव, डॉ एपीजे अब्दुल कलाम से मीटिंग के लिए कहा.

पर इससे पहले कि योजना कोई आकार ले पातीं, वाजपेयी की सरकार केवल 13 दिनों में गिर गई. और प्रोजेक्ट एक बार फिर रुक गया. लेकिन 1974 के बाद से चीन ने पाकिस्तान को परमाणु तकनीक देना शुरू कर दिया था, जिसके बाद भारत के लिए परमाणु टेस्ट करना जरूरी हो गया था. 

पोखरण- II की शुरुआत 

मार्च 1998 में भारतीय जनता पार्टी सत्ता में वापस आई और अटल बिहारी वाजपेयी एक बार फिर भारत के प्रधान मंत्री बने. 8 अप्रैल को, परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) के प्रमुख आर चिदंबरम और DRDO प्रमुख एपीजे अब्दुल कलाम को तलब किया गया और प्रोजेक्ट पर काम शुरू हुआ. 

वाजपेयी और उनके प्रमुख सचिव ब्रजेश मिश्रा ने पूरे ऑपरेशन को प्रधानमंत्री कार्यालय से नियंत्रित किया. ऑपरेशन इतनी गोपनीयता से किया गया था कि तत्कालीन गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी के अलावा किसी को भी इसके बारे में पता नहीं था. 

यहां तक ​​कि रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस को भी 09 मई को परीक्षण के बारे में बताया गया और तीनों सेना प्रमुखों और विदेश सचिव को अगले तीन दिनों में सूचित किया गया. सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति ने 11 मई को यह जानकारी साझा की. वैज्ञानिक और इंजीनियर मई 1998 में कलाम और चिदंबरम के साथ पोखरण पहुंचने लगे.

टीम ने अमेरिकी जासूसी उपग्रहों से बचने के लिए रात में काम किया. अपनी पहचान छिपाने के लिए कलाम और उनके सभी टीम मेम्बर्स ने सेना की वर्दी पहनी थी. 11 मई, 1998 को दोपहर बाद 3:45 पर, भारत ने तीन उपकरणों का परीक्षण किया - थर्मोन्यूक्लियर डिवाइस (शक्ति I), विखंडन उपकरण (शक्ति II), और एक सब-किलोटन डिवाइस (शक्ति III).

इसके बाद, 13 मई को, भारत ने और सब-किलोटन डिवाइस - शक्ति IV और V में विस्फोट किया. 

दुनिया को दिखा भारत का दम 

ये परमाणु टेस्ट इतनी कुशलता से हुआ कि अमेरिकी विदेश मंत्री स्ट्रोब टैलबोट को इसके बारे में सीएनएन से पता चला. फर इसके बाद पश्चिमी देशों में खलबली मच गई. और अमेरिका सहित कई देशों ने भारत के खिलाफ प्रतिबंध लगाए. अमेरिका ने आर्थिक प्रतिबंध लगाए, जबकि कुछ यूरोपीय देशों और जापान ने सहायता रोक दी. 

वहीं, पाकिस्तान ने दो सप्ताह बाद अपने स्वयं के परमाणु विस्फोट करके जवाब दिया. वाजपेयी ने क्लिंटन को एक पत्र लिखा और चीन का नाम लिए बिना कहा कि भारत की सीमा एक परमाणु हथियार वाले देश के साथ हैं, एक ऐसा देश जिसने 1962 में भारत पर सशस्त्र आक्रमण किया था. हालांकि उस देश के साथ हमारे संबंधों में पिछले एक दशक में सुधार हुआ है, लेकिन फिर भी अविश्वास का माहौल बना हुआ है. 

देश में विपक्ष ने भी वाजपेयी की सरकार की आलोचना की. पर उनके पास सबके सवालों को जवाब था. उन्होंने कहा, "मैं 1974 में सदन में था, जब इंदिरा गांधी के नेतृत्व में परमाणु परीक्षण किए गए थे. हमने विपक्ष होते हुए भी इसका स्वागत किया था, क्योंकि यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए किया गया था. उस समय क्या खतरा था? क्या हमें खुद को तभी तैयार करना चाहिए जब हम खतरे में हों? अगर हम अच्छी तरह से तैयार हैं, तो भविष्य में किसी भी खतरे से निपटा जा सकता है."

बाद के वर्षों से, अन्य देशों ने भी परमाणु परीक्षण में भारत की सफलता को स्वीकार किया है. और 11 मई को इसी सफलता की याद में National Technology Day मनाया जाता है. 


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