भारत का नया संसद भवन देश की एकता का प्रतीक है. यह देश की समृद्ध कला और शिल्प विरासत का एक प्रमाण है. शानदार वास्तुकला के बीच, शिल्प दीर्घा गैलरी में लगे चरखे का अलग महत्व है. इसे कलाकार शैली ज्योति ने बनाया है. इसे लेकर शैली कहती हैं, “यह चरखे के प्रति एक श्रद्धांजलि है.” दरअसल, नए संसद भवन में जो भी कलाकारी की गई है वो किसी न किसी चीज का प्रतीक है. ये एग्जिबिशन दस्तकारी हाट समिति की संस्थापक जया जेटली ने लगाया है.
अजरख का उपयोग किया गया है
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक इस चरखे में ब्लॉक प्रिंटिंग के पारंपरिक शिल्प, विशेष रूप से अजरख का उपयोग किया गया है. इसके अलावा ये चरखे के प्रतीक के साथ आत्मनिर्भरता के सार का प्रतीक है और हमारी कड़ी मेहनत से हासिल की गई स्वतंत्रता और महत्व की याद दिलाता है. गुरुग्राम की रहने वाली शैली ने इसे संरक्षित करने के मकसद से बनाया है. साथ ही उनके मुताबिक ये चरखा भारत को आत्मनिर्भर बनाने में एकता और व्यापक भागीदारी के बारे में बताता है.
शैली कहती हैं, “मुझे एक ऐसे कलाकार के रूप में पहचाना जाता है जो हमारी विरासत अजरख ट्रेडिशन को दिखाती है. मैं शिल्प और डिजाइन की मदद से टेक्सटाइल आर्ट का एक नया माध्यम देती हूं. नए संसद भवन इस कलाकृति बनाकर मैं सम्मानित महसूस कर रही हूं.”
प्रकृति और अजरख का है गजब संगम
गौरतलब है कि अजरख, प्राकृतिक रंगों के साथ रिवर्स ब्लॉक प्रिंटिंग की एक प्रतिष्ठित तकनीक है. इसकी जड़ें गुजरात के अजरखपुर, राजस्थान और सिंध में हैं, और इसमें नीले, लाल, सफेद और काले रंगों में प्रिंटिंग होती है. रंगाई प्रक्रिया, जिसमें कई दिन लगते हैं, में प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाना और सूरज, नदी, जानवरों, पेड़ों और मिट्टी का उपयोग करना शामिल होता है. अजरख पैटर्न को बनाने वाले इस प्रोसेस में करीब 20 कदम होते हैं. इसमें कपड़े का पहले ट्रीटमेंट होता हैं, फिर प्रिंटिंग, सुखना, रंगाई, फिर से सुखाना, रीप्रिंटिंग, और डाई करना शामिल होता है.
4500 साल पुरानी है ये शिल्प
इसे बनाने के लिए शैली ने चरखे को सबसे पहले एक आत्मनिर्भरता की प्रतिमा के रूप में देखा. जिसके बाद उन्होंने अलग-अलग रंग और पैटर्न में करीब 30 से ज्यादा स्लाइडों को डिजिटल रूप से देखा और इसका रफ स्केच बनाया है. शैली के पास छपाई और रंगाई के लिए छह कारीगर थे, शुद्ध सोने के धागे की जरदोजी कढ़ाई और मिरर वर्क करने के लिए अलग से तीन लोग. आखिर में शैली कहती हैं, “शिल्पकारों के साथ काम करना 4,500 साल पुराने शिल्प और उसकी तकनीक की स्थिरता का एक विचार है. कला के माध्यम से आधुनिक भारत में इसे संरक्षित करना बहुत जरूरी है.”