कई प्राइवेट अस्पतालों को पीछे छोड़ ग्रेटर नोएडा का जिम्स बना यूपी का नंबर वन अस्पताल, कोरोना में सबसे ज्यादा मरीजों का इलाज करने के लिए मिला अवार्ड

जिम्स के डायरेक्टर ब्रिगेडियर राकेश गुप्ता बताते हैं कि शुरुआत में उनके पास बेहद कम रिसोर्स थे लेकिन हमने मिनिमम रिसोर्सेज से मैक्सिमम पेशेंट का इलाज किया. मरीजों को मानसिक रूप से तनाव मुक्त रखने के लिए योगा और मैडिटेशन भी करवाया.

जिम्स बना यूपी का नंबर वन अस्पताल
मनीष चौरसिया
  • नोएडा ,
  • 07 जनवरी 2022,
  • अपडेटेड 9:14 PM IST
  • जिम्स में मरीजों को मानसिक रूप से तनाव मुक्त रखने के लिए योगा और मैडिटेशन भी करवाया गया.
  • जिम्स ने कोविड-19 के दौरान कम रिसोर्सेज मैं ज्यादा मरीजों का सफलतापूर्वक इलाज किया. 

देश में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान अस्पतालों और डॉक्टरों पर काफी बोझ था. एक तरफ जहां अस्पतालों में मरीजों की संकया बढ़ती जा रही थी, वहीं डॉक्टर्स की तमाम कोशिशों के बावजूद लाखों लोगों ने जान गंवाई. ऐसे में नोएडा का एक सरकारी अस्पताल ऐसा भी रहा जहां कोरोना महामारी के सबसे मुश्किल दौर में 5000 से ज्यादा लोगों का इलाज किया गया. साथ ही जहां मृत्यु दर भी सबसे कम रही. 

हाल ही में ग्रेटर नोएडा के जिम्स अस्पताल को उत्तर प्रदेश सरकार ने सम्मानित किया. जिम्स को 4 कैटेगरी में अवार्ड दिया गया. इन अवॉर्ड की दौड़ में पूरे यूपी के 60 से ज्यादा सरकारी और प्राइवेट अस्पताल शामिल थे. जिम्स अस्पताल को जिन 4 कैटेगरी में ये अवार्ड दिया गया वो हैं; सबसे ज्यादा मरीजों के इलाज के लिए, इलाज में हुए नए प्रयोग के लिए, कोविड पर सबसे ज्यादा रिसर्च और उनके पब्लिकेशन के लिए और ओवरऑल केटेगरी. 

मिनिमम रिसोर्सेज से मैक्सिमम पेशेंट का इलाज

जिम्स के डायरेक्टर ब्रिगेडियर राकेश गुप्ता बताते हैं कि शुरुआत में उनके पास बेहद कम रिसोर्स थे लेकिन हमने मिनिमम रिसोर्सेज से मैक्सिमम पेशेंट का इलाज किया. मरीजों को मानसिक रूप से तनाव मुक्त रखने के लिए योगा और मैडिटेशन भी करवाया. शुरू के 6 महीने सिर्फ सरकारी अस्पताल में इलाज हुआ. राकेश गुप्ता ने बताया, "सबसे बड़ी बात यह थी कि कोविड नई बीमारी थी कोई प्रोटोकॉल नहीं था, हमने खुद अपने प्रोटोकोल तैयार किए. पहली बार जब हमारा स्टाफ पॉजिटिव हुआ तो बहुत विरोध हुआ लेकिन हमने उनको भी मोटिवेट किया. एक ऑक्सीजन सिलेंडर से 3 लोगों को ऑक्सीजन दिया. पेशेंट के लिए व्हाट्सएप पर हीरो ग्रुप बनाया. 

जिम्स बना यूपी का नंबर वन अस्पताल

100 कोविड संक्रमित महिलाओं की डिलीवरी करवाई

एक सरकारी अस्पताल का इस मुकाम पर पहुंचना इतना आसान नहीं था, यह एक टीम वर्क था और टीम वर्क में टीम के 11 मेंबर के पास बताने के लिए बहुत कुछ था उन्होंने बताया कि शुरुआती चैलेंज किस तरह के थे. डॉ रश्मि उपाध्याय बताती हैं की मरीजों का इलाज करने के दौरान उनको भी कोविड हो गया था. उनका 1 साल का बेटा घर पर था ऐसे में उनके सामने भी बहुत सारी मुश्किलें थी. उसके बावजूद वह दिन में घर पर आराम करती थीं और शाम में मरीजों का इलाज करने अस्पताल पहुंच जाती थीं. डॉक्टर रश्मि बताती हैं कि उन महिला कोविड मरीजों का इलाज करना सबसे मुश्किल था जो प्रेग्नेंट थी. हमने 100 कोविड-19 संक्रमित महिलाओं की डिलीवरी करवाई थी, जिनमें सिर्फ दो बच्चे संक्रमित हुए थे वह भी बाद में ठीक हो गए थे. 

 डॉ सौरभ श्रीवास्तव जिम्स में सीएमएस हैं. दूसरी लहर के दौरान वो और उनका पूरा परिवार,  उनके माता-पिता कोविड पॉजिटिव हो गए थे. डॉ सौरभ अपने पूरे परिवार के साथ अस्पताल में एडमिट थे लेकिन अस्पताल में रहते हुए भी उन्होंने मरीजों का इलाज किया. इसका नतीजा यह हुआ कि जब स्टाफ के दूसरे 35 लोग एक साथ पॉजिटिव हुए तो उन्होंने भी घर ना जाकर अस्पताल में ही रहकर अपना इलाज करवाया. साथ ही अपने इलाज के दौरान दूसरे मरीजों का भी इलाज किया. 

गूंगी बहरी महिला की देखरेख के लिए पूरे स्टाफ को अलग से इंस्ट्रक्शन दिए गए

डॉक्टर सुरेश गुप्ता जोकि जिम्स में मैनेजमेंट और स्टोर इंचार्ज हैं. वो बताते हैं कोविड के वक़्त हाउस कीपिंग और अटेंडेंट का स्टाफ नहीं बढ़ा पाए. ऐसे में मरीजों का इलाज और उनकी देखभाल दोनों ही एक बड़ा चैलेंज थे. दूसरा बड़ा चैलेंज रेमेडेसीवीर को ब्लैक सेल से बचाना और सही आदमी तक पहुंचाना सबसे मुश्किल काम था. डॉ राहुल उस वक्त के कई किस्से याद करते हुए बताते हैं कि जब होम आइसोलेशन की सुविधा नहीं थी तब एक 10 साल का बच्चा पॉजिटिव आया. बच्चा रात 2 बजे उठकर रोने लगा उसे दूध चाहिए था. मेस में दूध नहीं था. आखिर में ड्यूटी पर मौजूद एक डॉक्टर अपने घर गया और दूध लाकर बच्चे को पिलाया. इसी तरह एक गूंगी बहरी महिला भी कोविड पॉजिटिव मिली जिसकी देखरेख के लिए पूरे स्टाफ को अलग से इंस्ट्रक्शन दिए गए. इस तरह जिम्स ने कोविड-19 के दौरान कम रिसोर्सेज मैं ज्यादा मरीजों का सफलतापूर्वक इलाज किया. 

 

 

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