शायद ही कोई होगा जिसने सिंधुताई सपकाल का नाम नहीं सुना होगा. हजारों अनाथ बच्चों के लिए वह उनकी ‘माई’ हैं तो अन्य लोगों के लिए एक ऐसी मिसाल जिसका कोई जवाब नहीं है. दुःख की बात है कि आज सिंधुताई हमारे बीच नहीं रही हैं.
4 जनवरी 2021 को सिंधुताई का निधन हो गया. लेकिन दुनिया से जाने के बाद भी सिंधुताई कभी हमारे बीच से नहीं जा सकती हैं. इसका कारण है उनका काम जो उन्होंने हमारे समाज और अनाथ बच्चों के लिए किया है. उन्होंने इंसानियत, हौसले और जज़्बे की ऐसी मिसाल पेश की है जिसे सदियों तक इस देश में याद रखा जाएगा.
12 साल की उम्र में हुई शादी:
महाराष्ट्र के वर्धा में सिंधुताई एक बहुत ही गरीब परिवार में जन्मी थीं. सिंधुताई पढ़ना चाहती थीं लेकिन उस जमाने में लड़कियों के पढ़ने से ज्यादा जरुरी उनकी जल्दी शादी करना माना जाता था. हालांकि सिंधुताई के पिता ने कोशिश की कि उनकी बेटी थोड़ी-बहुत पढ़ पाए. लेकिन उनकी मां इसके खिलाफ थीं.
फिर ही पशुओं को चराने के बहाने सिंधुताई स्कूल चली जाती थीं. लेकिन फिर 12 साल की उम्र में उनकी शादी कर दी गई. सिंधुताई के पति उनसे उम्र में 20 साल बड़े थे और जैसा कि अक्सर भारतीय समाज में होता है कि महिलाओ को अपने घर में भी सम्मान नहीं मिलता है. वैसा ही सिंधुताई के साथ हुआ.
सिंधुताई लगभग 20 साल की होंगी, जब वह चौथी बार प्रेग्नेंट थीं. और उस हालत में एक रात उनके पति ने उनके साथ मार-पीट की और उन्हें घर से बाहर निकाल दिया. वह रात सिंधुताई ने जैसे-तैसे एक तबेले में गुजारी और अपनी बेटी को वहीं पर जन्म दिया.
रेलवे स्टेशन पर मांगी भीख:
सिंधुताई को जब उनके पति ने घर से निकल दिया और उनकी मां ने भी उन्हें अपने घर में रखने से मना कर दिया तो वह रेलवे स्टेशन आदि पर भीख मांगने लगी. उनकी बच्ची बहुत ज्यादा छोटी थी और उसकी सुरक्षा को लेकर वह हमेशा परेशान रहती थीं.
कभी उनकी रात शमशान में गुजरती तो कभी किसी गाय-भैंस के तबेले में. इस दौरान रेलवे स्टेशन पर भीख मांगने वाले दूसरे बच्चों को भी वह जानने लगी थीं. धीरे-धीरे सिंधुताई इन सब बच्चों की मां बन गईं. उन्होंने मजदूरी की, दिन-रात काम किया और अनाथ बच्चों के लिए एक आश्रम शुरू किया ताकि उन्हें एक अच्छी ज़िंदगी दे सकें.
‘माई’ बनकर पाले हजारों अनाथ बच्चे:
1970 में अमरावती में दूसरे नेक लोगों की मदद से उन्होंने अपना पहला आश्रम शुरू किया. इसके बाद उन्होंने अपना संगठन शुरू किया जिसके तहत वह सभी अनाथ बच्चों को अपने आश्रम में लाकर उनकी देखभाल करने लगीं. देखते ही देखते वह हजारों बच्चों की मां और दादी-नानी बन गईं.
उनके द्वारा पाले गए बहुत से बच्चे आज डॉक्टर, इंजीनियर और शिक्षक हैं. उन्होंने न सिर्फ बच्चों को पाला बल्कि उन्हें पढ़ाया-लिखाया और उनकी शादियां भी की. सिंधुताई के मन में ममता का भाव इस कदर था कि वह सिर्फ आवाज़ सुनकर अपने बच्चों को पहचान लेती थीं कि कौन बात कर रहा है.
मिला पद्म श्री:
सिंधुताई के सामने लाख मुसीबत आई लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. बल्कि हमेशा चुनौतियों का सामना किया और जीत हासिल की. उनके काम के लिए उन्हें देश-दुनिया में जाना जाता है. अपने जीवन काल में उन्हें लगभग 300 अवॉर्ड मिले, जिनमें नारी शक्ति अवॉर्ड और देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म श्री भी शामिल है.
उनके काम से प्रेरित होकर एक मराठी फिल्म भी बनाई गई. सिंधुताई के इस तरह अचानक चले जाने से आज हर कोई दुःख में है. प्रधानमंत्री नरेंद मोदी ने भी उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है. प्रधानमंत्री ने ट्वीट करते हुए लिखा कि समाज में अपने नेक काम के लिए सिंधुताई को हमेशा याद रखा जाएगा.