अपने नाती पोतों को देखकर तरस आता है, कैसी दुनिया में वो सांस ले रहे हैं..साइकिल रैली में छलका बुजुर्गों का दर्द

रैली में सबसे आगे की कतार में तैनात अशोक कुमार कौशिक एनटीपीसी से एक अफसर के पद से रिटायर हुए हैं. 62 साल के अशोक कुमार कहते हैं कि वह हर रोज 40 किलोमीटर साइकिल चलाते हैं. ये उनके रोजमर्रा का हिस्सा है. अशोक कुमार कहते हैं कि आज आप पर्यावरण, प्रदूषण, हवा और पेड़ को लेकर कितनी भी बात कर लीजिए कई लोग आपकी बातों को संजीदा तरीके से नहीं लेते.

साइकिल रैली में छलका बुजुर्गों का दर्द
मनीष चौरसिया
  • नई दिल्ली,
  • 26 मार्च 2022,
  • अपडेटेड 7:06 PM IST
  • साइकिल रैली में छलका बुजुर्गों का दर्द
  • नोएडा के लोग दिल्ली वालों से बेहतर मानते हैं ये बुजुर्ग

हाल ही में जारी हुई आईक्यू एयर की रिपोर्ट में दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों की लिस्ट में दिल्ली टॉप पर है. दिल्ली से सटा नोएडा इस लिस्ट के सातवें पायदान पर है. दिल्ली और नोएडा में हर साल पॉल्यूशन कंट्रोल के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च होते हैं हालांकि उसके बाद भी नतीजे सबके सामने है. नोएडा में आज विभिन्न संगठनों ने मिलकर एक साइकिल रैली का आयोजन किया. रैली में स्कूली बच्चे और युवक तो पहुंचे ही थे, लेकिन इस रैली में कुछ बुजुर्ग सबके आकर्षण का केंद्र बने हुए थे.  ये बुजुर्ग तपती धूप में भी उत्साह के साथ अपनी साइकिल लेकर कतार में सबसे आगे मौजूद थे हालांकि जब इन बुजुर्गों से बात की तो एहसास हुआ कि पर्यावरण को लेकर इनके अंदर कितना दर्द छुपा है.

नाती पोतों के लिए बुरा लगता है
रैली में सबसे आगे की कतार में तैनात अशोक कुमार कौशिक एनटीपीसी से एक अफसर के पद से रिटायर हुए हैं. 62 साल के अशोक कुमार कहते हैं कि वह हर रोज 40 किलोमीटर साइकिल चलाते हैं. ये उनके रोजमर्रा का हिस्सा है. अशोक कुमार कहते हैं कि आज आप पर्यावरण, प्रदूषण, हवा और पेड़ को लेकर कितनी भी बात कर लीजिए कई लोग आपकी बातों को संजीदा तरीके से नहीं लेते. घर में भी कई लोग ऐसे हैं जो ऐसी बातों को हवा में उड़ा देते हैं, लेकिन जब मैं अपने नाती पोतों को देखता हूं तो तरस आता है. दिवाली के बाद बच्चे स्कूल नहीं जा पाते प्रदूषण के चलते स्कूलों में छुट्टी करनी पड़ती है लेकिन उसके बाद भी लोग नहीं सुधरते. कोई बड़ी बात नहीं कि दिल्ली एनसीआर के 3 शहर प्रदूषण के मामले में टॉप टेन में है. कभी-कभी यह सोचकर बहुत टीस होती है कि काश हम अपने बच्चों को आने वाली पीढ़ी को सांस लेने लायक हवा दे पाते.

हम और कर भी क्या सकते हैं
49 साल के द्रिगपाल सिंह दिल्ली में एक मंत्रालय में काम करते हैं. द्रिगपाल कहते हैं कि वह हर रोज 50 किलोमीटर से ज्यादा साइकिल चलाते हैं. वो कहते हैं कि हमारे जीवन में साइकिल का महत्व हमेशा से रहा पिताजी को साइकिल चलाते देखा और खुद भी बचपन से साइकिल से पढ़ाई के लिए आवाजाही की लेकिन आजकल की जनरेशन को साइकिल से कोई लगाव नहीं है. द्रिगपाल कहते हैं कि साइकिल का साथ हमेशा बनाए  रखने की एक वजह यह भी थी कि वह अपने आसपास की हवा को शुद्ध रखना चाहते थे. हर साल वह कई पेड़ लगाते हैं लेकिन उसके बावजूद जब शहर का नंबर सबसे प्रदूषित शहरों की लिस्ट में आता है तो बहुत बुरा लगता है मैं समझता हूं कि ये सिर्फ  सरकार या अथॉरिटी की अकेले की जिम्मेदारी नहीं हो सकती जनता को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी. मैं अकेला साइकिल चलाने के अलावा और कर भी क्या सकता हूं.

नोएडा के लोग दिल्ली वालों से हैं बेहतर
63 साल के ज्ञानेंद्र सिंह  रिटायर हो चुके हैं. ज्ञानेंद्र कहते हैं कि वह इस पूरी साइकिल यात्रा में साथ रहेंगे . ज्ञानेंद्र सिंह कहते हैं उन्हें बचपन से ही पेड़ पौधों का बहुत शौक था हरियाली तो नोएडा में भी बहुत है लेकिन पता नहीं क्यों यहां की हवा इतनी खराब रहती है, वो ये भी मानते हैं कि नोएडा के लोग दिल्ली वालों से कहीं ज्यादा जागरूक, समझदार हैं. इसीलिए प्रदूषण के मामले में नोएडा की स्थिति कम से कम दिल्ली से तो बेहतर ही है. हालांकि सबको मिलकर शहर की पहचान बदलने के लिए मेहनत करनी होगी.


 

Read more!

RECOMMENDED