कहते हैं कि अगर आप कोई बदलाव दुनिया में देखना चाहते हैं तो इसकी शुरूआत खुद से करें. उत्तर प्रदेश के दिलीप त्रिपाठी भी कुछ ऐसा ही कर रहे हैं. सिद्धार्थनगर जिले के हसुड़ी औसानपुर गांव के रहने वाले दिलीप का सपना था कि लोग उनके गांव को पिछड़ेपन के लिए नहीं बल्कि तरक्की के लिए जानें.
इसके लिए प्रशासन को दोष देने की बजाय उन्होंने खुद काम की शुरूआत की. सबसे पहले अपने ही गांव को गोद लिया और फिर इलेक्शन जीतकर गांव के प्रधान (सरपंच) बने. साल 2015 में पहली बार गांव के प्रधान का पद संभाल कर उन्होंने काम शुरू किया था. आज यह गांव सुविधाओं के मामले में कई शहरों को पीछे छोड़ सकता है. अपने काम के दम पर अब दूसरी बार भी दिलीप ने ही ग्राम प्रधान का इलेक्शन जीता है.
देश का मॉडल विलेज है यह डिजिटल गांव
दिलीप बताते हैं कि एक समय था जब उनके गांव को नाम इंटरनेट पर दर्ज भी नहीं था. पर आज उनका गांव की देशभर के लिए मॉडल गांव है. उन्होंने अपने गांव की जीआईएस मैपिंग (GIS Mapping) कराई और अन्य सभी मूलभत सुविधाओं पर ध्यान दिया. सबसे पहले उन्होंने गांव में साफ-सफाई और सूरक्षा पर फोकस किया.
इसके बाद शिक्षा के लिए गांव के सरकारी स्कुल को हाई-टेक बनाया. गांव का स्कूल अब डिजिटल क्लासरूम, कंप्यूटर लैब, वाटर प्यूरीफायर, खेल सुविधाएं, हर क्लासरूम में सीसीटीवी, म्यूजिक क्लास, रेन हार्वेस्टिंग सिस्टम से लैस है। और ऊपर के तीन कमरे वातानुकूलित हैं.
वह बताते हैं कि गांव में एक सामान्य सेवा केंद्र है जहां ग्रामीणों को सभी ऑनलाइन सेवाएं प्रदान की जाती हैं. एक बैंक सेवा केंद्र भी काम कर रहा है. साथ ही, गांव में एक ओपन जिम है, बच्चों के लिए एक पार्क और एक हर्बल औषधीय पार्क भी है. आप बस नाम लें और हर सुविधा इस गांव में मिलेगी.
महिलाओं के सम्मान में बना 'पिंक विलेज'
दिलीप कहते हैं कि गांव के लोगों को महिलाओं का सम्मान करने के प्रति जागरूक करने के लिए गांव के सभी घरों को गुलाबी रंग से रंगवाया हुआ है. इसलिए इस गांव को सब पिंक विलेज के नाम से भी जानते हैं. इसके अलावा गांव में एक योग केंद्र, 45 सोलर स्ट्रीट लाइट, हर घर की भूमिगत नाली, हर घर में शौचालय और एक गेस्ट हाउस भी है.
महिलाओं के लिए एक सार्वजनिक शौचालय भी है. गांव में एक श्मशान केंद्र भी है. पीने के शुद्ध पानी की आपूर्ति के लिए एक आरओ प्लांट है. गांव में घर-घर से कूड़ा उठाने की सुविधा उपलब्ध है. किसानों के लिए कृषि उपकरणों का एक बैंक हैय इसके अलावा 25 मवेशी शेड और आठ बकरी शेड हैं.
दिलीप ने अपनी स्वर्गीय मां की याद में एक मिनी अस्पताल भी गांव में बनवाया है और इसका पूरा खर्च उन्होंने खुद उठाया है. दिलीप का कहना है कि पहले लोग कभी नहीं जानते थे कि एक ग्राम प्रधान इतना काम कर सकता है. वह अब गांव में ही गांव वालों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने पर ध्यान दे रहे हैं ताकि लोगों का पलायन रुके और गांव आत्मनिर्भर बन जाए.
मिले हैं कई सम्मान
उन्होंने आगे बताया कि इस साल उन्हें गांव में काम के लिए पंचायती राज मंत्रालय भारत सरकार का सर्वोच्च पुरस्कार नाना जी देश मुख राष्ट्रीय गौरव ग्राम सभा तीसरी बार मिला है. इससे पहले उन्हें यह पुरस्कार साल 2018 और 2019 में भी मिला है. इसके अलवा उन्हें पंडित दीनदयाल उपाध्याय पंचायत सशक्तिकरण पुरस्कार भी कई बार मिला है.
हालांकि, दिलीप के लिए सबसे बड़ी उपलब्धि यही है कि कभी पिछड़े गांवों का सूची में दर्ज उनका गांव आज देशभर में स्मार्ट गांव के रूप में जाना जा रहा है. उनके गांववाले उनके काम से खुश हैं और सभी उनका साथ दे रहे हैं.