मिसाल है लोगों के लिए पादरी रेजी का घर….होम स्वीट होम में रहते हैं 32 बच्चे, सभी हैं Fighters

2009 में रेजी ने अपनी पत्नी मिनी रेजी थॉमस के साथ ब्लेस फाउंडेशन की शुरुआत की. उस समय उनके साथ उनके केवल चार बच्चे रह रहे थे - तीन लड़के और एक लड़की. उन बच्चों ने अपने माता-पिता को खो दिया था और ओल्डर एचआईवी रोगियों की देखभाल करने वाले एक संगठन ने उन बच्चों को पादरी को सौंप दिया था.

पादरी रेजी की कहानी (प्रतीकात्मक तस्वीर)
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 30 दिसंबर 2021,
  • अपडेटेड 10:24 AM IST
  • 2009 से की रेजी ने ब्लेस फाउंडेशन की शुरुआत
  • स्कूल भी जाते हैं बच्चे

मुंबई के पनवेल में एक घर में करीब तीन दर्जन बच्चे रहते हैं. ये कोई नॉर्मल बच्चे नहीं हैं, ये सभी फाइटर्ज हैं.  अगर आप उनसे पूछेंगे कि उनके माता-पिता कौन हैं तो वे कहेंगे पापा रेजी और मिनी मम्मी. पिछले 36 वर्षों से मुंबई में बसे पादरी रेजी थॉमस 2009 से 32 एचआईवी पॉजिटिव बच्चों के मार्गदर्शक और अभिभावक हैं. ये सभी एक साथ उनके घर जिसे ब्लेस फाउंडेशन नाम  से जाना जाता है, में रहते हैं. 

कैसे हुई रेजी की यात्रा शुरू?

एचआईवी पॉजिटिव बच्चों के साथ रेजी की यात्रा 2008 में नवी मुंबई के डीवाई पाटिल अस्पताल में एक दुखद घटना के बाद शुरू हुई. रेजी बताते हैं, “मैं उस समय एक संगठन के तहत समाज सेवा कर रहा था. एक दिन, मेडिकल कॉलेज ने मुझे अस्पताल जाने और नेपाल की एक 12 साल की बच्ची के लिए प्रार्थना करने को कहा. वह हड्डियों के एक बैग की तरह लग रही थी. मझे लगा कि उसे टीबी है, लेकिन बाद में पता चला कि उसे एड्स है और वह जी नहीं पाएगी.”

12 साल की उस बच्ची ने रेजी से एक अनुरोध किया कि वह नूडल्स का स्वाद लेना चाहती थी. आस-पास की दुकानों की तलाशी ली, लेकिन रेजी को कुछ नहीं मिला. रेजी ने उस 12 साल की बच्ची से वादा किया कि वह अगले दिन कुछ लाएंगे. लेकिन अगले दिन बच्ची का निधन हो गया था. उस दिन होने एचआईवी संक्रमित बच्चों के लिए हर संभव कोशिश करने का फैसला किया. रेजी कहते हैं, "बड़े रोगियों के लिए कई केयर होम हैं, लेकिन बच्चों के लिए कुछ नहीं है. 

2009 से की रेजी ने ब्लेस फाउंडेशन की शुरुआत

2009 में रेजी ने अपनी पत्नी मिनी रेजी थॉमस के साथ ब्लेस फाउंडेशन की शुरुआत की. उस समय उनके साथ उनके केवल चार बच्चे रह रहे थे - तीन लड़के और एक लड़की. उन बच्चों ने अपने माता-पिता को खो दिया था और ओल्डर एचआईवी रोगियों की देखभाल करने वाले एक संगठन ने उन बच्चों को पादरी को सौंप दिया था. 

उनके दोस्तों और कुछ अच्छे लोगों ने  भी उनकी मदद की जैसे; भोजन, बिस्तर और अन्य आवश्यक चीजें देनी शुरू की. जैसे-जैसे बच्चों की संख्या बढ़ती गई, रेजी ने केवल लड़कों को ही लेने का फैसला किया.  लड़कियां दूसरे संगठनों में जाती हैं.

2012 तक, ब्लेस फाउंडेशन के पास ज्यादा फंड नहीं था, इसलिए आर्थिक तंगी के कारण रेजी ने केवल तीन बच्चों को ही स्कूल भेजा. 2012 में, स्कूल के फिर से खुलने से एक दिन पहले, मनु पुन्नूज़ ने भोजन और जरूरी सामान देने वाले संगठन का दौरा किया. उनके तरफ से उन्हें 21 हजार रुपये का चेक मिला. रेजी कहते हैं, "मैं उसके सामने टूट गया. यह वाकई चमत्कार था. वह अभी भी ब्लेस फाउंडेशन के एक महत्वपूर्ण सहयोगी हैं.”

स्कूल भी जाते हैं बच्चे 

चार से 18 साल के 32 बच्चे अब स्कूल जाते हैं. उनके 18 साल के होने के बाद, ब्लेस फाउंडेशन के बच्चों को कहीं और भेज दिया जाता है, या फाउंडेशन उन्हें नौकरी दिलाने में मदद करता है. इनमें से ज्यादातर ने अपने माता-पिता को एचआईवी से खो दिया है. कुछ बच्चों की मां जिंदा हैं. इन बच्चों में आठ बच्चे जॉब करते हैं.

समाज और कलंक

दरअसल, एचआईवी को समाज में एक कलंक के रूप में  देखा जाता है. इसका कारण एड्स के प्रति जागरूकता की कमी है. बच्चे अक्सर इस कलंक को आत्मसात कर लेते हैं और अपने मन में ही खुद की एक नेगेटिव इमेज बना लेते हैं. रेजी कहते हैं, “मुंबई में, जब हम बाहर जाते हैं तो मैं या मेरी पत्नी उनमें से एक को साथ ले जाते हैं. जब भी मैं केरल जाता हूं, मैं बच्चों में से एक को अपने साथ ले जाता हूं. लोग शुरुआत में बातचीत करने में झिझकते थे, लेकिन जब उन्होंने हमारे परिवार को संक्रमित बच्चों के साथ रहते और खेलते देखा, तो उनका पूर्वाग्रह टूट गया.”

घर में रहने वाले जॉय जबसे डेढ़ साल के हैं तब से ब्लेस फाउंडेशन में रह रहे हैं. उनकी मां, एक सेक्स वर्कर हैं, उन्होंने जॉय को सड़क पर छोड़ दिया था. 11 साल के जॉय कहते हैं, “लाइफ इज फुल ऑफ जॉय. मुझे यहां रहना पसंद ह.। वे मेरी अच्छी तरह से देखभाल करते हैं.

ये भी पढ़ें

 

Read more!

RECOMMENDED