सड़क पर भीख मांगने वाले इन भिखारियों को मिली उम्मीद की किरण, अब सबकी लगेगी नौकरी

पेटिंग की ट्रेनिंग ले रहे कुशवाहा ने बताया कि “इस शहर ने मुझे भीख मांगने के लिए मजबूर किया, मुझे उम्मीद है कि यह प्रशिक्षण मेरी जिंदगी को बदल देगा. कुशवाहा दिल्ली काम की तलाश में आए थे. उन्होंने शुरूआत में एक दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम मांगने गया, वहां पर मेरा आई कार्ड मांगा गया. जो कि मेरे पास नहीं था.

व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लेते बेघर लोग
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 13 दिसंबर 2021,
  • अपडेटेड 12:54 PM IST
  • दिल्ली के सभी भिखारियों को नौकरी दिलाएगी दिल्ली सरकार
  • पायलट परियोजना के तहत शुरू की मुहिम

दिल्ली सरकार ने पिछले महीने शहर के सभी भिखारियों के लिए एक परियोजना की शुरूआत की थी. अब दिल्ली की गलियां और चौराहों पर इस योजना का असर साफ नज़र आ रहा है. कल तक जो भिखारी सड़कों पर भीख मांगते नज़र आया करते थे वो आज सड़कों की दिवारों पर पेंटिंग करने की ट्रेनिंग लेते दिखाई दे रहे हैं. ट्रेनिंग के दौरान इन भिखारियों को सड़कों पर पेटिंग करने के लिए ब्रश, रोलर, सैंडपेपर और उनके इस्तेमाल  के बारे में बताया जा रहा है. ये ट्रेनिंग दिल्ली सरकार की पायलट परियोजना का हिस्सा है. 

भिखारियों को दी जा रही जॉब की ट्रेनिंग

मानव विकास संस्थान के सहयोग से एक सर्वेक्षण के बाद  इस परियोजना की शुरूआत की गई थी. सर्वेक्षण में, दिल्ली में लगभग 20,719 को PEAB के रूप में पहचाना गया.  जिनमें से 53% (10,987) पुरुष थे, और 46% (9,541) महिलाएं थीं, एक प्रतिशत (191) ट्रांसजेंडर थे. PEAB की सबसे ज्यादा संख्या पूर्वी दिल्ली जिले (2,797) में थी. इस परियोजना के तहत महिलाओं को खाद्य प्रसंस्करण में प्रशिक्षित किया जाना है, अभी उनका प्रशिक्षण शुरू नहीं हुआ है, लेकिन पुरुषों को अभी से ही उत्तरी दिल्ली के रोशनारा रोड पर एक सरकारी रैन बसेरा होम में हाउस पेंटिंग में प्रशिक्षित किया जा रहा है.  उन्हें एक पेंटिंग किट और प्रशिक्षण का प्रमाण पत्र भी जारी किया जाएगा. 

काम ना मिलने की वजह से मांगना पड़ा भीख

पेटिंग की ट्रेनिंग ले रहे कुशवाहा ने बताया कि “इस शहर ने मुझे भीख मांगने के लिए मजबूर किया, मुझे उम्मीद है कि यह प्रशिक्षण मेरी जिंदगी को बदल देगा. कुशवाहा दिल्ली काम की तलाश में आए थे. उन्होंने शुरूआत में एक दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम मांगने गया, वहां पर मेरा आई कार्ड मांगा गया. जो कि मेरे पास नहीं था. आखिर में हालात से तंग आ कर मैं भिखारियों के एक समुह में शामिल हो गया.  कुशवाहा कहते हैं कि भिखारी बनने के लिए मुझे अपनी दाढ़ी बढ़ानी पड़ी. ताकि मैं उम्र में बड़ा दिखुं. 

युवाओं में दिख रहा जोश  

ट्रेनिंग में शामिल 62 साल के रमेश सिंह बताते हैं कि वो 17 साल पहले हरियाणा के रोहतक से दिल्ली आए थे. रमेश की आपबीती भी काफी दर्दनाक है. वो कहते हैं कि दिल्ली का श्रम चौक ऐसी जगह है जहां पर गांव के कम पढ़े-लिखे लोग काम की तलाश में आते हैं, और काम ना मिलने की वजह से भीख मांगने को मजबूर हो जाते हैं. एशियन पेंट्स के उनके ट्रेनर बताते हैं कि 37 साल के नीरज कुमार काम सीखने के लिए सबसे ज्यादा उत्सुक हैं. हांलाकि वो ट्रेनर के ज्यादातर सवालों का जवाब नहीं दे रहे.


लंच ब्रेक के दौरान नीरज कुमार अपनी कहानी बताते हुए कहते हैं कि 13 साल की उम्र में उनके पिता ने नीरज की मां को मार डाला, पिता की गिरफ्तारी के बाद नीरज अपने घर से भाग कर दिल्ली आ गए. उन्हें ढाबे पर काम भी मिला. लेकिन धीरे-धीरे उन्हें ये एहसास होने लगा कि उन्हें एक बंधुआ मजदूर बनाया जा रहा है. एक दिन वो ढाबे का कामकाज छोड़ कर भाग गए. अब ये योजना से मुझे बहुत उम्मीद है. 

पूरी दिल्ली के भिखारियों को काम दिलाना है मकसद

दिल्ली सरकार के समाज कल्याण विभाग की विशेष सचिव और निदेशक रश्मि सिंह का कहना है कि सरकार की योजना उन्हें (भिखारियों को) लंबे समय तक संभालने की है. “हम अब दिल्ली के सभी जिलों में परियोजना शुरू कर रहे हैं. हमारा उद्देश्य शहर भर में भीख मांगने के काम में लगे सभी व्यक्तियों को प्रशिक्षित करना, उन्हें प्रशिक्षित करना और उन्हें रोजगार खोजने में मदद करना है.

 

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