प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 17वीं लोकसभा के समाप्त होने के 24 घंटे के अंदर लोकसभा चुनाव 2024 के लिए बीजेपी के अभियान की शुरुआत करने जा रहे हैं. इसके लिए पीएम मोदी शनिवार को एमपी के झाबुआ में होंगे. यहां वे कई हजार करोड़ की परियोजनाओं की सौगात के साथ जनजातीय सम्मेलन को संबोधित करेंगे. आज हम आपको बताएंगे कि इस बार 400 पार का लक्ष्य लेकर लोकसभा चुनाव लड़ने वाली बीजेपी ने आदिवासी बहुल झाबुआ को ही पीएम मोदी की रैली के लिए क्यों चुना और इस रैली से कैसे पीएम मोदी न केवल एमपी बल्कि पड़ोसी राज्यों गुजरात और राजस्थान के जनजाति वर्ग को भी साधने की कोशिश करेंगे.
झाबुआ क्यों है खास
पीएम मोदी दोपहर करीब 12:10 पर झाबुआ पहुंचेंगे और यहां करीब 2 घंटे रहेंगे. परियोजनाओं के लोकार्पण के बाद पीएम जनजातीय सम्मेलन को संबोधित करेंगे. बीजेपी ने एमपी, गुजरात और राजस्थान से जनजातीय समुदाय के करीब 1 लाख लोगों को लाने का लक्ष्य रखा है. दरअसल, झाबुआ की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि यह गुजरात और राजस्थान से लगा हुआ जिला है. झाबुआ तो आदिवासी बहुल है ही लेकिन यहां रैली कर प्रधानमंत्री मोदी गुजरात के करीब दर्जन भर और राजस्थान के आधा दर्जन आदिवासी बहुल जिलों को साधेंगे.
झाबुआ की रैली इतनी महत्वूर्ण क्यों
झाबुआ में पीएम मोदी की रैली के पीछे बीजेपी का मकसद तीन राज्यों में लोकसभा की अनुसूचित जनजाति सीटों पर फोकस करना है. एमपी में 29 लोकसभा सीटें हैं, जिसमें से 6 सीट (बैतूल, धार, खरगोन, मंडला, रतलाम-झाबुआ और शहडोल) अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. इसके अलावा राजस्थान में 3 तो वहीं गुजरात में 4 सीटें एसटी वर्ग के लिए आरक्षित हैं.
झाबुआ से पीएम मोदी आदिवासी वर्ग को संबोधित करते हुए उनकी सरकार में आदिवासी वर्ग के लिए जो योजनाएं शुरू की हैं उसका बखान करेंगे. इसे इन सभी एसटी रिजर्व सीटों पर बीजेपी की ओर से लाइव दिखाया जाएगा. बात अगर रतलाम-झाबुआ संसदीय सीट की करें तो यहां अब तक जितने भी लोकसभा चुनाव हुए हैं, उनमें से 90 फीसदी चुनाव कांग्रेस पार्टी ने जीते हैं. इसलिए कांग्रेस के इस मजबूत गढ़ को भेदने के लिए पीएम मोदी को झाबुआ लाया जा रहा है.
आदिवासी वोटरों पर क्यों है बीजेपी की नजर
हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने प्रचंड जीत तो हासिल की लेकिन इसके बावजूद आदिवासी अंचलों में बीजेपी वो जादू नहीं दिखा पाई. प्रदेश की 47 एसटी सीटों में से बीजेपी ने 24 सीट जीती तो वहीं 22 सीट कांग्रेस के पास गई. यानी आदिवासी बहुल सीटों पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर रही और इसलिए बीजेपी आदिवासी वर्ग को साधने की कवायद में जुटी है. ताकि इसका लाभ इस साल होने वाले लोकसभा चुनाव मिल सके.
(रवीश पाल सिंह की रिपोर्ट)