Prashant Kishor: कहानी राजनेताओं को चुनाव जिताने वाले शख़्स की जिसकी भविष्यवाणी हमेशा सच होती है

प्रशांत किशोर का चुनावी सफर साल 2014 में शुरू हुआ था. इस चुनाव के मद्देनजर प्रशांत किशोर ने चुनाव ​अभियान की रणनीति बनाने वाली कंपनी सिटिज़न्स फॉर अकाउंटेबल गवर्नेंस यानी सीएजी बनाई. आज प्रशांत किशोर लगभग सभी चुनावों में अहम रोल अदा करते हैं.

prashant kishor
नाज़िया नाज़
  • नई दिल्ली,
  • 27 अप्रैल 2022,
  • अपडेटेड 11:50 AM IST

पेशेवर चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर एक बार फिर से चर्चा में हैं. इस बार चर्चा थी कि प्रशांत किशोर कांग्रेस में एंट्री कर सकते हैं, लेकिन बाद में प्रशांत किशोर ने  कांग्रेस ज्वाइन करने से मना कर दिया. पिछले साल भी प्रशांत किशोर के काग्रेंस का दामन थामने की चर्चाओं ने जोर पकड़ा था. ये वही प्रशांत किशोर हैं जो कहते हैं कि मैं ना टीवी देखता हूं ना ही अखबार पढ़ता हूं, प्रशांत ने यभी कहा है कि बीते एक दशक में उन्होंने लैपटॉप तक का इस्तेमाल नहीं किया है. लेकिन अक्सर सुर्खियों में छाए रहते हैं, इनके ऊपर अखबार और चैनल की टॉप हेडलाइन बनती हैं. बता दें कि ट्विटर पर प्रशांत किशोर के करीब पाँच लाख फॉलोवर हैं,  फॉलोअर होने के बावजूद प्रशांत किशोर ने तीन सालों में महज  86 ट्वीट किए हैं.  

चुनावों में अपना जादू दिखाने वाले प्रशांत किशोर बिहार के बक्सर जिले में पले बढ़े हैं. इनका जन्म रोहतास के कोनार गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. प्रशांत किशोर के पिता श्रीकांत पांडे बिहार सरकार में डॉक्टर हैं.  मां यूपी के बलिया जिले की हैं. प्रशांत की पत्नी का नाम जाह्नवी दास है. जाह्नवी पेशे से डॉक्टर हैं. जाह्नवी दास और प्रशांत किशोर का एक बेटा भी है. 

प्रशांत किशोर की स्कूल की पढ़ाई लिखाई बक्सर में ही हुई. स्कूली पढ़ाई लिखाई के बाद प्रशांत  इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने हैदराबाद चले गए. वहां से प्रशांत ने पब्लिक हेल्थ में पोस्ट ग्रेजुएशन पूरा किया.  फिर ट्रेंड पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट के तौर पर संयुक्त राष्ट्र में काम करने लगे. प्रशांत पहली बार आंध्र प्रदेश में पोस्टेड हुए. बाद में पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम  के लिए प्रशांत का ट्रांसफर कर दिया गया था. यहां पर प्रशांत ने दो साल काम किया बाद में  उन्हें दुबारा संयुक्त राष्ट्र के भारतीय कार्यालय बुला लिया गया.  दो साल बाद  प्रशांत किशोर को यूएन के संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में बुलाया गया. 
 
आज चुनावी मैनेजर के नाम से मशहूर प्रशांत किशोर सियासत के बॉक्स ऑफिस के पीछे से कलाकारी दिखाने में एकदम फिट बैठते हैं . प्रशांत का ये चुनावी सफर 2014 में शुरू हुआ था. तब देश में आम चुनाव होने वाले थे. चुनाव के मद्देनजर प्रशांत किशोर ने राजनीतिक पार्टियों के लिए चुनाव ​अभियान की रणनीति बनाने वाली कंपनी सिटिज़न्स फॉर अकाउंटेबल गवर्नेंस यानी सीएजी बनाई. ये कपंनी पार्टियों के लिए प्रचार करती थी. उस पीएम मोदी ने अपनी पार्टी के प्रचार के लिए प्रशात किशोर की मदद ली. बता दें कि चाय पर चर्चा, रन फॉर यूनिटी और मंथन जैसे कई सोशल मीडिया प्रोग्राम प्रशांत किशोर ने ही तैयार किए थे. 

इन चुनावों में दिखा चुके हैं अपना जादू 

चुनावी रणनीतिकार के तौर पर प्रशांत किशोर ने  2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को जीत दिलाई , वहीं प्रशांत कुमार की रणनीति में ही बिहार में  नीतीश कुमार-लालू गठबंधन की जीत हुई थी  इन सब में पश्चिम बंगाल 2021 में  ममता बनर्जी की जीत भी अहम है.

इसके अलावा प्रशांत की रणनीति में पंजाब के कैप्टन अमरिंदर सिंह, आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल, आंध्र प्रदेश में जगन रेड्डी और तमिलनाडु में डीएमके नेता एमके स्टालिन का भी जिक्र आता है. प्रशांत किशोर ने इन नेताओं के साथ भी काम किया और उन्हें कामयाबी दिलाई. दूसरी तरफ प्रशांत किशोर ने साल 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में राहुल और अखिलेश को साथ खड़ा किया लेकिन उनका ये प्रयोग नाकामयाब रहा. 

कैसे काम करती है प्रशांत किशोर की पार्टी

प्रशांत किशोर की कंपनी आईपैक (इंडियन पॉलीटिकल एक्शन कमेटी) में चुनावों के समय 4,000  लोग काम करते हैं. और पूरी टीम पार्टी  में पूरी तरह से घुस जाती है. प्रशांत किशोर कहते हैं कि  '' हमारी टीम किसी भी पार्टी की ताकत बढ़ाने के फैक्टर पर काम करती है. जिस पार्टी के लिए काम करते हैं उसके लिए बेहतर प्रदर्शन करना ही हमारा मकसद होता है. हमें ये पता नहीं कि ये कितना कारगर होता है. 

 

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