Nalanda University History: भारत का 1600 साल पुराना संस्थान, जहां पढ़ाते थे आर्यभट्ट जैसे शिक्षक, जानिए नालंदा विश्वविद्यालय के बसने, उजड़ने की पूरी कहानी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज नालंदा यूनिवर्सिटी (Nalanda University) में एक नए कैंपस का उद्घाटन किया. उद्घाटन से पहले पीएम मोदी ने विश्वविद्यालय का प्राचीन कैंपस भी देखा, जो अब ऐतिहासिक धरोहर में तब्दील हो चुका है.

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  • नई दिल्ली,
  • 19 जून 2024,
  • अपडेटेड 4:47 PM IST
  • किसने की थी नालंदा यूनिवर्सिटी की स्थापना
  • तीन महीने तक जलती रही थी लाइब्रेरी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज नालंदा यूनिवर्सिटी (Nalanda University) में एक नए कैंपस का उद्घाटन किया. उद्घाटन से पहले पीएम मोदी ने विश्वविद्यालय का प्राचीन कैंपस भी देखा, जो अब ऐतिहासिक धरोहर में तब्दील हो चुका है. नालंदा यूनिवर्सिटी का इतिहास, शिक्षा के प्रति भारतीय दृष्टिकोण और इसकी समृद्धि को दर्शाता है.

किसने की थी नालंदा यूनिवर्सिटी की स्थापना
प्राचीन मगध साम्राज्य (आधुनिक बिहार) में स्थित नालंदा यूनिवर्सिटी की स्थापना 5वीं शताब्दी ई. में हुई थी. नालंदा पाटलिपुत्र (अब का पटना) के करीब स्थित था. दुनिया के पहले आवासीय विश्वविद्यालय के रूप में प्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय ने चीन, कोरिया, जापान, तिब्बत, मंगोलिया, श्रीलंका और दक्षिण पूर्व एशिया सहित दुनिया भर के विद्वानों को आकर्षित किया.

पाल राजवंश में फला-फूला नालंदा
नालंदा में चिकित्सा, आयुर्वेद, बौद्ध धर्म, गणित, व्याकरण, खगोल विज्ञान और भारतीय दर्शन जैसे विषय पढ़ाए जाते थे. यह विश्वविद्यालय 8वीं और 9वीं शताब्दी के दौरान पाल राजवंश के संरक्षण में खूब फला-फूला और इसे अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिली. दिलचस्प बात यह है कि भारतीय गणित के प्रणेता और शून्य के आविष्कारक आर्यभट्ट छठी शताब्दी ईस्वी के दौरान नालंदा के प्रतिष्ठित शिक्षकों में से एक थे.

नालंदा यूनिवर्सिटी का इतिहास

मुश्किल से मिलता था एडमिशन
उस दौरान इसमें एडमिशन लेना भी बेहद कठिन था. यहां दाखिला पाने के लिए छात्रों को कठिन साक्षात्कार देना पड़ता था और जिन्हें इसमें एडमिशन मिलता उन्हें धर्मपाल और सिलभद्रा जैसे प्रसिद्ध बौद्ध गुरुओं से शिक्षा लेने का अवसर मिलता था. विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी में नौ मिलियन हस्तलिखित ताड़ के पत्ते की पांडुलिपियां थीं, जो इसे बौद्ध ज्ञान का दुनिया का सबसे समृद्ध भंडार बनाती थी.

तीन महीने तक जलती रही थी लाइब्रेरी
1190 के दशक में तुर्की शासक बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय में आग लगवा दी थी. विनाशकारी आग तीन महीने तक भड़कती रही, जिससे वहां का सबकुछ नष्ट हो गया. अभिलेखों के अनुसार नालंदा विश्वविद्यालय को आक्रमणकारियों ने तीन बार नष्ट किया था, लेकिन केवल दो बार ही इसको पुनर्निर्मित किया गया.

साल 2016 में नालंदा के खंडहरों को संयुक्त राष्ट्र विरासत स्थल घोषित किया गया था, इसके बाद विश्वविद्यालय का निर्माण कार्य 2017 में शुरू किया गया. यूनिवर्सिटी का नया कैंपस नालंदा के प्राचीन खंडहरों के पास बनाया गया है. इस नए कैंपस की स्थापना नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम, 2010 के माध्यम से की गई है.

नालंदा विश्वविद्यालय के नए कैंपस की खासियत
राजगीर के अंतरराष्ट्रीय नालंदा विश्वविद्यालय के नए कैंपस में कुल 24 बड़ी इमारतें हैं. यह विश्वविद्यालय 455 एकड़ में फैला हुआ है. परिसर में 40 कक्षाओं वाले दो शैक्षणिक ब्लॉक हैं, जिनकी कुल बैठने की क्षमता लगभग 1900 है. इसमें 300 सीटों की क्षमता वाले दो हॉल हैं. आर्किटेक्ट बीबी जोशी ने नालंदा विश्वविद्यालय के प्रारूप को डिजाइन किया है.

 

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