Rahul Gandhi Dojo yatra: राहुल गांधी बने निंजा! बच्चों को सिखा रहे हैं जिउ-जित्सु और आइकिडो मार्शल आर्ट तकनीक, जानें क्या है ये

डोजो केवल मार्शल आर्ट सीखने की जगह नहीं है. यहां, मन की शांति, शरीर का लचीलापन और बैलेंस सिखाया जाता है. इसमें बताया जाता है कि बिना किसी हथियार के बड़े से बड़े और मजबूत से मजबूत व्यक्ति को आसानी से हराया जा सकता है. 

Martial arts Practice (Representative Image/Unsplash)
अपूर्वा सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 30 अगस्त 2024,
  • अपडेटेड 10:25 AM IST
  • आइकिडो में नहीं होता किसी को हराना 
  • आत्म-अनुशासन सिखाती हैं ये आर्ट

जापान के पहाड़ों के बीच बसे एक छोटे, शांत गांव में, एक इमारत है जिसे डोजो (Dojo) के नाम से जाना जाता है. लकड़ी के फर्श और तातामी मैट वाली यह साधारण संरचना सिर्फ ट्रेनिंग की जगह से कहीं ज्यादा है. इस जगह पर हर तरह के लोग जिउ-जित्सु (Jiu-Jitsu) और आइकिडो (Aikido) की प्राचीन कलाएं सीखने आते हैं. जापान की ये मार्शल आर्ट इसलिए भी फेमस है क्योंकि इनमें हथियारों का इस्तेमाल नहीं होता है, बल्कि मन और शरीर की एनर्जी पर फोकस किया जाता है. 

दरअसल, कांग्रेस नेता और सांसद राहुल गांधी ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर मार्शल आर्ट का वीडियो पोस्ट किया है. इसमें राहुल गांधी बच्चों को मार्शल आर्ट सिखाते नजर आ रहे हैं. दुश्मनों को कैसे मात देनी है, वह इसमें बताते नजर आ रहे हैं.

जेंटल आर्ट है जिउ-जित्सु
डोजो सिर्फ लड़ने का तरीका सीखने की जगह नहीं है, बल्कि यह मन की शक्ति, आत्म-अनुशासन और सामंजस्य की खोज करना सिखाती है. जिउ-जित्सु को अक्सर जेंटल आर्ट यानी कोमल कला कहा जाता है. इसमें प्रतिद्वंद्वी की एनर्जी का इस्तेमाल उन्हीं के खिलाफ किया जाता है. बल का सामना बल से करने के बजाय, जिउ-जित्सु प्रतिद्वंद्वी की ऊर्जा को पुनर्निर्देशित करना सिखाता है. इसमें जॉइंट लॉक, होल्ड और थ्रो जैसी तकनीकों का उपयोग किया जाता है. यह एक छोटे या कमजोर व्यक्ति को भी एक बड़े, मजबूत प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ खुद का बचाव करना सिखाती है. 

इस मार्शल आर्ट में अपने प्रतिद्वंद्वी का सामना करते हुए उसे पराजित करने की कोशिश करने के बजाय, शांत रहना, हमले की दिशा को महसूस करना और उसे बेअसर करने के लिए सही समय पर एक्शन लेना सिखाया जाता है. जिउ-जित्सु की तकनीकें विनम्रता और सम्मान सिखाती हैं. 

आइकिडो में नहीं होता किसी को हराना 
आइकिडो भी डोजो में सिखाई जाने वाली एक और मार्शल आर्ट है. 20वीं सदी की शुरुआत में मोरीही उशीबा ने इसे विकसित किया था. आइकिडो का लक्ष्य किसी प्रतिद्वंद्वी को हराना नहीं होता है, बल्कि खुद को और हमलावर दोनों को बचाना होता है. इसमें बिना किसी नुकसान के लड़ाई को जीतना सिखाया जाता है. 

आइकिडो में, व्यक्ति हमले की ऊर्जा के साथ घुलना-मिलना सीखता है. अगर कोई प्रतिद्वंद्वी हमला करने की कोशिश करता है, तो आइकिडो हमलावर की स्थिति को बेअसर करने के लिए एक तरफ कदम बढ़ा सकता है और एक सॉफ्ट  थ्रो या पिन का उपयोग कर सकता है. ये एक डांस की तरह ही होता है जिसके लिए समय, संतुलन और समन्वय की गहरी समझ होनी चाहिए.

आइकिडो में, प्रतिद्वंद्वी को दुश्मन की तरह नहीं, बल्कि डांस में एक साथी के रूप में देखते हैं. इसमें लक्ष्य जीतना नहीं होता है, बल्कि स्थिति को शांत करना होता है. 

बिना हथियारों के कैसे कोई जीत सकता है 
जिउ-जित्सु और आइकिडो दोनों के सबसे आकर्षक पहलुओं में से एक यह है कि इसमें एनर्जी का उपयोग कैसे किया जाता है. पावर या हथियारों पर निर्भर रहने वाली दूसरी मार्शल आर्ट के इतर, ये आर्ट आपकी और आपके प्रतिद्वंद्वी दोनों की एनर्जी को समझने और उसमें हेरफेर करने पर फोकस करती है. 

उदाहरण के लिए, जिउ-जित्सु में, जब कोई प्रतिद्वंद्वी पकड़ता है या धक्का देता है, तो व्यक्ति सीधे प्रतिरोध नहीं करता है. इसके बजाय, वे बल की दिशा को महसूस करते हैं और इसे पुनर्निर्देशित करने के तरीके से आगे बढ़ते हैं. 

आइकिडो में भी एनर्जी को ट्रांसफर करना काफी सिंपल है. अभ्यासकर्ता हमलावर की एनर्जी के साथ घुलना-मिलना सीखते हैं, उनके खिलाफ कोई एक्शन लेने के बजाय उनके साथ सामंजस्य बिठाते हैं. इससे एक ऐसी स्थिति बनती है जहां हमलावर की शक्ति बिना किसी सीधे टकराव के बेअसर हो जाती है. 

डोजो क्या केवल एक ट्रेनिंग की जगह है?
कई छात्रों के लिए, डोजो सिर्फ मार्शल आर्ट सीखने की जगह से कहीं ज्यादा है. यहां लोग आकर अपने व्यक्तित्व का विकास करते हैं. ट्रेनिंग के जरिए सीखा गया अनुशासन, ध्यान और सम्मान चरित्र को आकार देने और आत्मविश्वास बनाने में मदद करता है. 


 

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