Bhairon Singh Shekhawat Story: राजस्थान के उस मुख्यमंत्री की कहानी, जो सियासत के अजातशत्रु थे, जिनको लोग बाबोसा के नाम से जानते हैं

Rajasthan Election 2023: लोगों में बाबोसा के नाम से मशहूर भैरोंसिंह शेखावत 3 बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बने. पहली बार उन्होंने 22 जून 1977 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. जबकि आखिरी बार 4 दिसंबर 1993 को मुख्यमंत्री बने थे. साल 2002 से 2007 तक बाबोसा देश के उपराष्ट्रपति भी रहे.

राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे भैरोंसिंह शेखावत का सियासी सफर
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 07 नवंबर 2023,
  • अपडेटेड 2:07 PM IST

राजस्थान का वो मुख्यमंत्री मंत्री, जो सूबे की सियासत का अजातशत्रु था. विरोधी भी उसकी सियासत के कायल थे. उस लीडर का नाम भैरोंसिंह शेखावत था. शेखावत चुनाव लड़ने के लिए पत्नी से 10 रुपए का नोट लेकर घर से निकले थे और जीत हासिल कर लौटे. सियासत में आने से पहले वो पुलिस की नौकरी करते थे. लेकिन एक बार सिनेमाघर में मारपीट हो गई और उनकी नौकरी चली गई. चलिए आपको बाबोसा के नाम से मशहूर भैरोंसिंह शेखावत के किस्से बताते हैं.

मारपीट के चलते गई पुलिस की नौकरी-
भैरोंसिंह का जन्म 23 अक्टूबर 1923 को जपयुर रियासत के खाचरियावास में हुआ था. उनको पुलिस में नौकरी भी मिल गई थी. लेकिन फिर उनको नौकरी छोड़नी पड़ी. साल 1947 की बात है, सीकर में हरदयाल टॉकीज के मालिक रियासत के पुरोहित थे. एक दिन 4-5 पुलिसवाले सिनेमा देखने पहुंचे. वहां सिनेमा हॉल के मैनेजर से इनका झगड़ा हो गया. एक पुलिसवाले मैनेजर को थप्पड़ मार दिया. इसकी शिकायत रावराजा कल्याण सिंह तक पहुंची. इसके बाद सीकर के एसपी जय सिंह को तलब किया गया. फिर पांचों पुलिसवालों को तलब किया गया. उनकी क्लास लगी. इसके बाद पांचों पुलिसवालों को इस्तीफा देना पड़ा. इन पुलिसवालों में भैरों सिंह शेखावत भी थे.

कैसे हुई सियासत की शुरुआत-
पुलिस की नौकरी छूटने के बाद भैरोंसिंह शेखावत खेती करने लगे. 10 भाई-बहनों में एक भाई बिशन सिंह संघ से जुड़े थे. साल 1951 में बिशन सिंह स्कूल टीचर बन गए. एक दिन उनके घर पर लाल कृष्ण आडवाणी आए. आडवाणी उस समय राजस्थान में जनसंघ का काम देखते थे. लालकृष्ण आडवाणी दाता-रामगढ़ सीट से बिशन सिंह को चुनाव लड़ाना चाहते थे. लेकिन उन्होंने नौकरी का हवाला देकर चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया. लेकिन भैरोंसिंह को चुनाव लड़ाने को कह दिया.

चुनाव लड़ने के लिए पत्नी ने दिए 10 रुपए-
भैरोंसिंह के चुनाव लड़ना फाइनल हो गया. उनको सीकर जाना था. पत्नी सूरज कुंवर ने 10 रुपए का नोट दिया. इस नोट को लेकर शेखावत अपने सियासी सफर पर चल निकले. दाता रामगढ़ में त्रिकोणीय मुकाबला था. जब साल 1952 विधानसभा के नतीजे आए तो भैरोंसिंह शेखावत विधायक बन गए थे. जबकि दूसरे नंबर पर कांग्रेस के विद्याधर थे. इसके बाद शेखावत लगातार 3 बार चुनाव जीते. लेकिन हर बार अलग-अलग सीटों से विधायक चुने गए.

विरोधी उम्मीदवार के घर पहुंच गए शेखावत-
भैरों सिंह शेखावत साल 1972 में गांधीनगर सीट से चुनाव मैदान में उतरे थे. उनके खिलाफ कांग्रेस के जनार्दन सिंह गहलोत थे. शेखावत विरोधी उम्मीदवार जनार्दन सिंह के घर पहुंच गए. जब शेखावत घर से जाने लगे तो उन्होंने जनार्दन से बोले- घबड़ाओ मत थें. चुनाव थेईं जीत स्यो. जब चुनाव के नतीजे आए तो ऐसा ही हुआ. भैरोंसिंह 5167 वोटों से चुनाव हार गए थे. इसके बाद साल 1975 में इमरजेंसी लगी और शेखावत जेल भेजे गए. पौने दो साल बाद जेल से छूटे और सियासत में नया आयाम छुआ.

कैसे मुख्यमंत्री बने भैरोंसिंह शेखावत-
साल 1977 में राजस्थान में विधानसभा के चुनाव हुए. 200 सीटों वाले सूबे में जनता पार्टी को 152 सीटों पर जीत मिली थी. अब बारी मुख्यमंत्री बनने की आई. मुख्यमंत्री के लिए 3 दावेदार थे. जिसमें मास्टर आदित्येंद्र, भैरोंसिंह और तीसरा धड़ा जनसंघ का था. सीएम चेहरे के लिए चुनाव हुए. मास्टर को 42 वोट मिले. जबकि भैरोंसिंह को 110 वोट. इस तरह से बाबोसा मुख्यमंत्री बन गए.
बाबोसा 3 बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बने. पहली बार 22 जून 1977 से 16 फरवरी 1980 तक 2 साल 239 दिन तक मुख्यमंत्री रहे. दूसरी बार 2 साल 286 दिन तक मुख्यमंत्री रहे. इस बार वो 4 मार्च 1990 से 15 दिसंबर 1992 तक सीएम रहे. बाबोसा तीसरी बार 4 दिसंबर 1993 को मुख्यमंत्री बने और 1 दिसंबर 1998 तक इस पद पर रहे. इस बार वो 4 साल 362 दिन तक सीएम की कुर्सी पर रहे.

उपराष्ट्रपति बने भैरोंसिंह शेखावत-
भैरोंसिंह शेखावत साल 2002 में देश के उपराष्ट्रपति बने. उपराष्ट्रपति के चुनाव में उन्होंने सुशील कुमार शिंदे को हराया था. विपक्षी दल को 750 में से 149 वोट मिले थे. साल 2007 में भैरोंसिंह ने निर्दलीय राष्ट्रपति का चुनाव लड़ा. लेकिन प्रतिभा देवीसिंह पाटिल ने उनको हरा दिया.

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