राजस्थान हाई कोर्ट (Rajasthan High Court) ने एक ऐसा फैसला दिया है जिसके बाद राज्य की हर महिला 180 दिन का मातृत्व अवकाश (Maternity Leave) ले सकेगी. चाहे वह सरकारी क्षेत्र में काम करती हो या प्राइवेट सेक्टर में. हाई कोर्ट ने एक आदेश में राज्य और केंद्र सरकार को कहा है कि प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाली सभी महिलाओं को 180 दिन की मेटर्निटी लीव दी जाए.
चाहे वे महिलाएं असंगठित क्षेत्र में ही क्यों न काम करती हों. अदालत ने कहा कि मेटर्निटी लीव हर महिला का मौलिक अधिकार है. यह आदेश न्यायमूर्ति अनूप ढंढ की एक-सदस्यीय पीठ ने दिया. अदालत राजस्थान राज्य सड़क परिवहन निगम (RSRTC) की कर्मचारी मीनाक्षी चौधरी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी.
क्या था मामला
यह मामला 2016 का था. मीनाक्षी ने फरवरी 2016 में निगम से 180 दिन की मेटर्निटी लीव मांगी थी लेकिन उन्हें 90 दिन के लिए ही छुट्टी दी गई. मीनाक्षी ने इसके विरोध में जून 2016 में अदालत का रुख किया. यहां रोडवेज का कहना था कि वह एक स्वायत्त संस्था है इसलिए उसपर राजस्थान सर्विस नियम 1951 लागू नहीं होते. ऐसे में वह 90 दिन की मेटर्निटी लीव को ही मंजूरी दे सकता है.
इस पर अदालत ने आदेश दिया कि मेटर्निटी लीव एक लाभ नहीं बल्कि एक अधिकार है. ऐसे में अगर कोई भी महिला सेवा में है तो संस्थान के लिए जरूरी है कि वह उसे बच्चे के जन्म की सुविधा के लिए हर जरूरी चीज मुहैया करवाए. अदालत ने राजस्थान सड़क परिवहन निगम से कहा कि या तो मीनाक्षी को 180 दिन की मेटर्निटी लीव दी जाए, या बाकी के 90 दिन की सैलरी का भुगतान किया जाए.
अदालत ने कहा, "मातृत्व से जुड़े लाभ सिर्फ वैधानिक अधिकारों या नियोक्ता और कर्मचारी के बीच हुए समझौतों से नहीं मिलते. बल्कि जब एक महिला बच्चे को जन्म देने का फैसला करती है तो यह उसकी पहचान और गरिमा का एक मौलिक और अभिन्न पहलू बन जाता है. बच्चे को जन्म देने की आजादी एक मौलिक अधिकार है जिसकी गारंटी अनुच्छेद 21 देता है. बच्चे को जन्म न देने का विकल्प भी इसी अधिकार का हिस्सा है."
क्या कहता है मेटर्निटी बेनेफिट एक्ट
भारत में महिलाओं को मेटर्निटी लीव मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 (Maternity Benefits Act, 1961) के तहत दी जाती है. यह कानून कामकाजी महिलाओं को उनके मातृत्व के दौरान लाभ की शर्तें स्पष्ट करता है. इस अधिनियम के तहत काम से अनुपस्थिति के दौरान नवजात बच्चे की देखभाल के लिए उनकी सैलरी का भुगतान किया जाता है.
यह कानून हर उस कंपनी पर लागू होता है जिसमें 10 से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं. मातृत्व संशोधन विधेयक, 2017 के तहत इस कानून में बदलाव भी किए गए हैं. इन्हीं बदलावों के बाद महिलाओं को 180 दिन का अवकाश दिया जाता है. मीनाक्षी के मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने पाया कि कई संस्थान 2017 के संशोधनों का पालन नहीं कर रहे थे.
साथ ही अदालत ने केंद्र और राज्य सरकारों को आदेश दिया है कि वे सभी सरकारी, गैर-सरकारी और निजी संस्थानों में 2017 के संशोधन के तहत नियम बनवाएं.