गांव में लोगों का सपना होता है कि उनके बच्चे पढ़-लिख कर अच्छी नौकरी करें. खासकर कि पारंपरिक किसान अपने बच्चों को खेती से दूर कर रहे हैं. इसकी वजह है खेती में लगने वाली मेहनत के मुकाबले मुनाफा न मिलना. लेकिन आज हम आपको मिलवा रहे हैं एक ऐसे शख्स से जिन्होंने यह साबित किया है कि किसान होना गर्व की बात है और नए-नए इनोवेटिव तरीके अपनाकर किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.
यह कहानी है राजस्थान में पिलानी के पास एक गांव के रहने वाले मुकेश मांजू की. मुकेश के बारे में सबसे दिलचस्प बात है कि किसान होने से कुछ साल पहले तक वह एक NSG (नेशनल सिक्योरिटी गार्ड) कमांडर हुआ करते थे. साल 2018 में सर्विस से वॉलंटरी रिटायरमेंट लेने के बाद उन्होंने जैविक खेती शुरू की. GNT Digital ने मुकेश मांजू से उनके इस सफर के बारे में विस्तार से बात की.
किसान के प्रति बदलना था नजरिया
मुकेश मांजू ने बताया कि उनका परिवार शुरू से ही खेती से जुड़ा हुआ है. उनके परिवार के पास अच्छी जमीन है और उन्होंने अपने पिताजी और दादा को बचपन से खेती करते हुए देखा. हालांकि, परिवार की इच्छा थी कि वह पढ़े-लिखें और अच्छी नौकरी करें. मुकेश की स्कूली पढ़ाई पिलानी से हुई और इसके बाद वह जयपुर चले गए. यहां कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने भारतीय सेना में अपनी जगह बनाई और वहां से National Security Guard Service में चले गए.
साल 2018 में रिटायरमेंट लेने से पहले वह जयपुर एयरपोर्ट पर पोस्टेड थे. मुकेश कहते हैं कि बचपन में जब स्कूल में उनसे कोई पूछता था कि उनके पिता क्या करते हैं तो वह यह बताने में झिझकते थे कि उनके पिता किसान हैं. क्योंकि किसानी और खेती-बाड़ी को लोग शिक्षा और समृद्धि से जोड़कर नहीं देखते थे. मुकेश के मन में यह बात हमेशा से थी कि वह इस नजरिए को बदलकर रहेंगे. और इसलिए ही उन्होंने रिटायरमेंट लेने से पहले ही अपनी प्लानिंग शुरू कर दी थी.
बागवानी पर किया फोकस
मुकेश ने GNT Digital को बताया कि उन्होंने साल 2012-13 से ही अपने पिता के साथ मिलकर खेती में बदलाव की शुरुआत कर दी थी. मुकेश के पिता ने उनसे कहा था कि अगर वह पारंपरिक खेती से हटकर कुछ करना चाहते हैं तो बिना किसी झिझक के कर सकते हैं. इसलिए मुकेश ने काफी रिसर्च करने के बाद कुछ फलों के बाग लगाने का फैसला किया.
उन्होंने बताया कि राजस्थान में उनके इलाके में कई ऐसे फल खेतों में कीनू, नींबू, बेर, खेजड़ी, खजूर और ऑलिव जैसे पेड़ लगाए. उनका कहना है कि फलों को जैविक तरीकों से उगाना आसान है जबकि सब्जियों में पूरी तरह से जैविक खेती करना बहुत मुश्किल हो जाता है. उन्होंने धीरे-धीरे अपने खेतों के कुछ हिस्सों में बाग डेवलप किए. मुकेश ने बताया कि उन्हें राज्य सरकार की कुछ स्कीम्स से भी बहुत फायदा मिला. जैसे खजूर के सैपलिंग उन्हें सब्सिडी पर मिले.
दो की दून से सौ की सवाई चोखी
मुकेश बताते हैं कि जब वह खेती से जुड़ने लगे तो उन्हें अपना दादाजी की कही बात याद आई कि दो की दून से सौ की सवाई चोखी. इसका मतलब है कि आपकी कमाई के जरिए ज्यादा से ज्यादा होने चाहिए ताकि एक जगह से नुकसान हो तो दूसरी जगह से भरपाई हो जाए. इसलिए उन्होंने बागवानी के साथ-साथ, और कई चीजों पर काम शुरू किया.
आज उनके पास साहिवाल और गिर जैसी देसी नस्लों की गाय हैं. उनके पास दो घोड़ी भी हैं. साथ ही, कुछ हिस्से में वह मुर्गी पालन करते हैं. उन्होंने अपने खेतों में बारिश का पानी इकट्ठा करने के लिए एक तालाब बनवाया. साथ ही, इस तालाब में उन्होंने कुछ मछलियां डाल दीं जिससे उन्हें फायदा हो रहा है. अपने मुख्य फलों के अलावा, वह इंटरक्रॉपिंग करके मौसमी फल-सब्जी जैसे तरबूज और हल्दी आदि की भी फसल ले लेते हैं.
खड़ा किया बिजनेस का अनोखा मॉडल
बहुत से लोग जैविक खेती करते हैं लेकिन उन्हें उनकी मेहनत के मुताबिक मार्केट नहीं मिल पाता है. इस पर मुकेश बताते हैं कि उनके फार्म की मार्केटिंग में उनकी लोकेशन ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई. उनका फार्म BITS Pilani से चंद किलोमीटर दूर स्थित है. ऐसे में, उन्होंने यहां के छात्रों और फैकल्टी के बीच अपने फार्म की मार्केटिंग की.
साथ ही, उन्होंने कहा कि जब उनके बागों में थोड़े-थोड़े फल आए तो उन्होंने लोगों को बांटना शुरू कर दिया ताकि उन्हें जैविक फलों का स्वाद पता चले. इससे उनके ग्राहक पहले से बन गए. इसके अलावा, उनके फार्म के आज 225 प्रीमियम सदस्य हैं. ये सदस्य उन्हें हर साल हजार रुपए मेंबरशिप फीस देते हैं जिससे लगभग सवा दो लाख रुपए की कमाई हो जाती है. इस मेंबरशिप के तहत, ये लोग कभी भी उनके फार्म का दौरा कर सकते हैं. यहां आकर कभी भी कोई भी फल खरीद सकते हैं.
इसके अलावा, उनके प्रीमियम ग्राहक उनके फार्म में आकर अपना पेड़ चुन सकते हैं. जिसके सारे फल उनके लिए रिजर्व हो जाते हैं और वे कभी भी आकर अपने फल तोड़कर ले जा सकते हैं और उस समय के मार्केट रेट के हिसाब से भुगतान कर सकते हैं.
किसानों के लिए सलाह
मुकेश मांजू का कहना है कि उनका एग्रो-टुरिज्म भी आगे बढ़ रहा है. लोग उनके फार्म पर आकर रुकते हैं, खाना खाते हैं और यहीं से अलग-अलग चीजें खरीदकर ले जाते हैं. उनका कहना है कि पिछले 10 सालों में उनके खेतों से कमाई दस गुना बढ़ गई है. पारंपरिक तरीके से खेती करके उन्हें इतनी कमाई नहीं होती थी. लेकिन आज इन सभी एक्टिविटीज से वह सालाना 25 लाख रुपए तक कमा लेते हैं.
अंत में, मुकेश अपने किसान भाइयों को सलाह देते हैं कि हर एक किसान को अपने खेतों के कुछ हिस्से में बाग लगाना चाहिए. बाग में अपने इलाके के लोकल फल लगाएं. इससे उनकी कमाई में काफी फर्क पड़ता है क्योंकि बाग एक बार की इंवेस्टमेंट है और बाद में बिना किसी लागत के यह आपको कमाई देता है. इसके अलावा, वह किसानों को एग्रो-टुरिज्म पर काम करने की सलाह देते हैं.