सुप्रीम कोर्ट ने 1 अगस्त को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों को मिलने वाले आरक्षण के उप-वर्गीकरण का फैसला सुनाया. इस फैसले का किसी ने स्वागत किया, जबकि कुछ ने इसकी आलोचना की. लेकिन इस फैसले के फुटनोट्स में एक नाम मौजूद था जिसके समुदाय का जीवन इस वाद-विवाद से इतर अपने सपने को एक कदम करीब पा रहा था. यह नाम था रविचंद्रन बाथरन (Ravichandran Bathran) का.
बाथरन ने अनुसूचित जातियों के बीच होने वाले भेदभाव पर एक रिसर्च पेपर लिखा था. इसी रिसर्च पेपर का सुप्रीम कोर्ट के फैसले में जिक्र भी किया गया. 'द मैनी ओमिशन्स ऑफ अ कॉन्सेप्ट: डिस्क्रिमिनेशन अमंग्स शेड्यूल कास्ट्स' (The many omissions of a concept: Discrimination amongst Scheduled Castes) के शिर्षक से रिसर्च पेपर लिखने वाले बाथरन तमिलनाडु के नीलगिरी जिले के कोटागिरी शहर में रहते हैं.
पीएचडी करने के अलावा बाथरन दक्षिण अफ्रीका की यूनिवर्सिटी ऑफ साउथैम्पटन में पोस्ट-डॉक्टोरल फेलो रह चुके हैं. वह हैदराबाद की ईएफएलयू (English and Foreign Languages University) से एक पीएचडी कर चुके हैं. वह असिस्टेंट प्रोफेसर भी रह चुके हैं लेकिन फिलहाल वह सेप्टिक टैंक साफ करने वाली एक कंपनी चला रहे हैं.
क्यों खोली सेप्टिक टैंक साफ करने की कंपनी?
सेप्टिक टैंक की सफाई का बीड़ा उठाने से पहले बाथरन मद्रास यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर थे. वह दलित कैमरा नाम का एक यूट्यूब चैनल भी चलाते थे, लेकिन यह उनके लिए पर्याप्त नहीं था. दरअसल बाथरन अरुंथथियार समुदाय से आते हैं, जिसे जाति व्यवस्था पर चलने वाले समाज में टॉयलेट साफ करने का काम दिया गया है. बाथरन ने महसूस किया कि इस व्यवस्था में उनके समुदाय का लगातार शोषण हो रहा है.
इंडियन एक्सप्रेस की ओर से प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, बाथरन कहते हैं, "मैंने महसूस किया कि कई लोग अरुणथथियारों को काम पर रखते हैं और उनकी कमर तोड़ने वाले काम से पैसे बनाते हैं. मंने सोचा कि क्यों न एक कंपनी शुरू की जाए."
बाथरन ने पहले इस काम को मशीन से करना चाहा लेकिन जल्द ही उन्होंने पाया कि इस काम को करने के लिए अभी तक उपयुक्त मशीनें नहीं बनी हैं. इसके बाद जब टैंक में उतरकर उसे साफ करने की बात आई तो बाथरन ने अपने हाथों से मैला ढोना बेहतर समझा. रिपोर्ट बाथरन के हवाले से कहती है, "अगर किसी को टैंक में उतरना है, तो मेरे कर्मचारी नहीं उतरेंगे. यह काम मैं खुद करता हूं."
इस काम के लिए बाथरन को अब लोग 'सेप्टिक टैंक भाई' कहकर पुकारते हैं. 'भाई' इसलिए क्योंकि 2022 में उन्होंने इस्लाम कबूल लिया था और अपना नाम बदलकर रईस मोहम्मद रख लिया था. रईस अब साफ-सफाई करने वाले कर्मचारियों को 30,000 रुपए और ड्राइवरों को 40,000 रुपए देते हैं. साथ ही उन्होंने सभी कर्मचारियों के लिए 15,000 रुपए के प्रीमियम वाला मेडिकल इंश्योरेंस भी करवाया है. इस तरह अपनी कंपनी से रईस कई जिन्दगियों को प्रभावित कर रहे हैं.
कोर्ट के फैसले पर क्या कहा?
बाथरन उर्फ रईस मोहम्मद को उम्मीद है कि आरक्षण के उद्देश्य से अनुसूचित जातियों के उप-वर्गीकरण से तमिलनाडु के सबसे पिछड़े समुदायों में से एक अरुंथथियार को लाभ होगा.
बाथरन अपने पेपर में कहते हैं, "सभी नीची जातियों को 'दलित' की श्रेणी में रख देने से स्वच्छता के मुद्दे से निपटने में मदद नहीं मिलती. दलितों के नामकरण की सार्वभौमिक अपील उप-जाति की राजनीति को ध्यान में नहीं रख सकी, और समय के साथ दलित की श्रेणी मध्यवर्गीय एससी का पर्याय बन गई."
बाथरन का कहना है कि इस उप-वर्गीकरण के बाद उनके समुदाय के सदस्य तमिलनाडु के अलावा अन्य राज्यों में बड़े एससी कोटा के भीतर आरक्षण का लाभ उठा सकेंगे. साथ ही लोग दलितों के बीच होने वाले अत्याचार पर भी बात करना शुरू करेंगे. वह कहते हैं, “यह एक ऐतिहासिक फैसला है. यह क्रांतिकारी है क्योंकि मेरा मानना है कि यह जाति व्यवस्था में सबसे अछूत जातियों पर होने वाले अत्याचार पर चर्चा शुरू करेगा.”