कहीं सीनियर्स ने टीम बनाकर जूनियर्स को संभाला.. तो कभी दोस्तों ने मिलकर एक दूसरे को संभाला...पढ़िए यूक्रेन से लौटे भारतीय छात्रों के हौसले की कहानी

यूक्रेन से आए आशीष डबास बताते हैं कि वे 1 हफ्ते से निकले हुए हैं. उन्हें 3 दिन बॉर्डर क्रॉस करने लग गए, वे कहते हैं कि इस दौरान कई लोग बीमार हुए. इंडियन एम्बेसी के वर्कर्स कम अवेलेबल थे. हमारे साथ कई जूनियर बच्चे थे, वो परेशान हो रहे थे उनके घरवाले परेशान हो रहे थे. हमने 4 लोगों ने मिलकर खुद एक टीम बनाई. हमारी यूनिवर्सिटी बॉर्डर से 30 km दूर है. हमने अपने आपसे बस की और सभी जूनियर्स को लेकर सुचेवा बॉर्डर पहुंच गए.

Indians from Ukraine
मनीष चौरसिया
  • नई दिल्ली,
  • 04 मार्च 2022,
  • अपडेटेड 11:22 AM IST
  • सीनियर्स ने संभाला सभी जूनियर्स को
  • यूक्रेन से छात्रों को लेकर एक फ्लाइट दिल्ली एयरपोर्ट पहुंची है

यूक्रेन से भारतीय छात्रों को निकालने की मुहिम लगातार जारी है. गुरुवार रात लगभग 10:45 बजे यूक्रेन से छात्रों को लेकर एक फ्लाइट दिल्ली एयरपोर्ट पहुंची है. जहां फ्लाइट से उतरे छात्रों के मासूम चेहरे अपनों को देख कर खिल उठे. वहीं परिवार वालों की आंखों से भी आंसू निकलने लगे. इस पूरे समय सभी एक दूसरे का हौसला बढ़ाये हुए थे. कहीं सीनियर्स ने टीम बनाकर जूनियर्स को संभाला है तो कहीं दोस्तों ने मिलकर एक दूसरे का संभाला.

सीनियर्स ने संभाला सभी जूनियर्स को 

यूक्रेन से आए आशीष डबास बताते हैं कि वे 1 हफ्ते से निकले हुए हैं. उन्हें 3 दिन बॉर्डर क्रॉस करने लग गए, वे कहते हैं, “इस दौरान कई लोग बीमार हुए. इंडियन एम्बेसी के वर्कर्स कम अवेलेबल थे. हमारे साथ कई जूनियर बच्चे थे, वो परेशान हो रहे थे उनके घरवाले परेशान हो रहे थे. हमने 4 लोगों ने मिलकर खुद एक टीम बनाई. हमारी यूनिवर्सिटी बॉर्डर से 30 km दूर है. हमने अपने आपसे बस की और सभी जूनियर्स को लेकर सुचेवा बॉर्डर पहुंच गए. रास्ते में कई बच्चों की तबीयत खराब भी हुई लेकिन हम उन्हें हिम्मत बढ़ाते रहे. बॉर्डर पर जब हम पहुंचे तो वहां वहां 3-4 हज़ार बच्चे थे चारो तरफ आपाधापी थी. हमारी आंखों के सामने अरेबियन और नाइजीरियन की मारपीट हुई थी. लेकिन हमने किसी से लड़ाई नहीं की. आज हम सब सुरक्षित वापस आ गए हैं.”

'पहले दादी नानी से लड़ाई की कहानी सुनती थी अब बेटी से सुनूंगी '

वहीं, एक और लड़की इशिता भावुक होकर बताती है कि वहां लगातार बर्फबारी हो रही थी. कपड़े नहीं थे.. खाना नहीं था.  वो चार दिन बॉर्डर पर रहे. इशिता के घरवाले भी उन्हें देखके काफी भावुक हो रहे थे. इशिता की मां कहती हैं, “अभी भी मेरे हाथ कांप रहे हैं यकीन नहीं हो रहा कि बेटी मेरे सामने हैं. मैं नानी दादी से लड़ाई की कहानी सुनती थी अब बेटी से सुनूंगी.”

'यूपी के दो लड़के.. अब दोस्ती और गहरी हो गई'
 
इसके साथ, रजत तिवारी और रविन्द्र शुक्ला दो दोस्त हैं जो एक ही शहर यूपी के बहराइच के रहने वाले हैं. यूक्रेन में भी एक ही यूनिवर्सिटी में पढ़ते हैं. उन्होंने बताया, “यूनिवर्सिटी के पीछे बम फटा लेकिन हम एक दूसरे को मुश्किल वक़्त में संभाले रहे, एक दूसरे के मां- बाप- भाई बनकर रहे.” रविन्द्र कहते हैं कि जब 3 दिन घरवालों से बात नहीं हुई तो लगा घर वापस नहीं जा पाएंगे.” अब दोनो की दोस्ती और पक्की हो गई है.


 

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