डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम देश का वो नाम है जो देश के हर बच्चे और बड़े के दिल और जहन में है. 'मिसाइल मैन ऑफ इंडिया' और 'पीपुल्स प्रेसिडेंट' के नाम से मशहूर डॉ. कलाम की जिंदगी आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करती है. हर साल 27 अक्टूबर को प्रख्यात वैज्ञानिक और भारत के 11वें राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की आठवीं पुण्यतिथि मनाई जाती है. भारत के स्पेस और मिलिट्री प्रोग्राम में उनका योगदान आज भी याद किया जाता है. साथ ही शिक्षा के प्रति उनके जुनून ने देश के युवाओं पर एक अमिट छाप छोड़ी है.
पांच बहनों में सबसे छोटे थे अब्दुल कलाम
अवुल पाकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के छोटे से शहर रामेश्वरम में हुआ था. पांच भाई-बहनों में सबसे छोटे अब्दुल कलाम में शुरुआत से ही सीखने की लालसा थी.
उनके पिता, जैनुलाब्दीन, एक नाव के मालिक और मस्जिद के इमाम थे और उनकी मां, अशिअम्मा, एक गृहिणी थीं.
परिवार के आर्थिक तौर मजबूत न होते हुए भी युवा कलाम के सपने बहुत बड़े थे. छोटी उम्र से ही अब्दुल कलाम को हवाई जहाज और अंतरिक्ष में गहरी रुचि थी. उन्होंने रामेश्वरम में अपनी शुरुआती शिक्षा पूरी करने के बाद रामनाथपुरम में श्वार्ट्ज हायर सेकेंडरी स्कूल में एडमिशन लिया. हमेशा सीखने की लालसा के साथ उन्होंने सेंट जोसेफ कॉलेज से फिजिक्स में दाखिला ले लिया और 1954 में ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की. एयरोस्पेस इंजीनियरिंग को समझने के लिए उन्होंने मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) से अपनी अपनी पढ़ाई शुरू की.
प्रारंभिक कैरियर और डीआरडीओ
अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद, डॉ. अब्दुल कलाम 1958 में दिल्ली में एक सीनियर साइंटिफिक असिस्टेंट के रूप में डायरेक्टरेट जनरल ऑफ एरोनॉटिकल क्वालिटी अश्योरेंस (DGAQA) में शामिल हो गए. उन्होंने अपने पहले बड़े प्रोजेक्ट के रूप में एक छोटा होवरक्राफ्ट डिजाइन किया था. हालांकि, इस प्रोजेक्ट को सफलता नहीं मिल पाई. लेकिन इससे उन्हें काफी कुछ सीखने को मिला.
1958 के आखिर तक, डॉ. अब्दुल कलाम DRDO में चले गए, जहां उन्होंने एरोनॉटिक्स पर अपना काम जारी रखा. हालांकि, तब तक स्पेस की दुनिया में उनका नाम जाना जाने लगा था.
इसरो में दिया बड़ा योगदान
1969 में, डॉ. अब्दुल कलाम के करियर में एक जरूरी मोड़ आया जब वह इसरो में शामिल हुए. यहां, उन्हें सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल-III (SLV-III) के प्रोजेक्ट डायरेक्टर के रूप में नियुक्त किया गया. SLV-III भारत का पहला स्वदेशी रूप से डिजाइन सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल था. 1980 में धरती की ऑर्बिट में रोहिणी सैटेलाइट को बड़ी सफलता मिली.
भारत के मिसाइल मैन: डॉ. कलाम
इसरो में डॉ. कलाम के काम की वजह से ही भारत के स्पेस प्रोग्राम की नींव रखी गई. हालांकि, उनका योगदान यहीं तक नहीं था. उन्होंने 1980 के दशक की शुरुआत में इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम (IGMDP) का नेतृत्व किया. इसकी वजह से ही अग्नि, पृथ्वी, आकाश, त्रिशूल और नाग सहित कई सफल मिसाइलें देश को मिली. इस कार्यक्रम ने भारत की मिलिट्री क्षमताओं को बढ़ाने का काम किया और इसी ने डॉ कलाम को 'भारत के मिसाइल मैन' की उपाधि दिलाई.
पोखरण में भारत के परमाणु परीक्षण
डॉ कलाम की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक 1998 में पोखरण में भारत के परमाणु परीक्षण हैं. प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में, डॉ अब्दुल कलाम ने इन न्यूक्लियर टेस्ट को किया. ये वो समय था जब दुनिया के सामने भारत ने अपनी न्यूक्लियर क्षमताओं का प्रदर्शन किया था.
भारत के 11वें राष्ट्रपति बनें
2002 में, डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को भारत के 11वें राष्ट्रपति के रूप में चुना गया. उन्हें 'पीपुल्स प्रेसिडेंट' के रूप में जाना जाने लगा. अपने राष्ट्रपति पद के दौरान वे लगातार युवाओं और शिक्षा क्षेत्र से जुड़े रहे. डॉ कलाम अक्सर कहा करते थे, "मैं चाहूंगा कि मुझे एक शिक्षक के रूप में याद किया जाए."
पूरे जीवनकाल में मिले कई पुरस्कार
विज्ञान, प्रौद्योगिकी और शिक्षा में डॉ. कलाम के योगदान ने उन्हें कई पुरस्कार और प्रशंसा दिलाई. उन्हें 1981 में पद्म भूषण, 1990 में पद्म विभूषण और 1997 में भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, भारत रत्न से सम्मानित किया गया.
27 जुलाई 2015 को, डॉ. कलाम की कार्डियक अरेस्ट के कारण मृत्यु हो गई. 83 साल की उम्र में उनका निधन हो गया और वे अपने पीछे एक ऐसी विरासत छोड़ गए जो कई पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी. उन्होंने एक बार कहा था, ''सपना वह नहीं है जो आप सोते समय देखते हैं, बल्कि वह है जो आपको सोने नहीं देता.''
उनकी किताबें, जिनमें "विंग्स ऑफ फायर," "इग्नाइटेड माइंड्स," और "इंडिया 2020" शामिल हैं, जो आज भी बेस्टसेलर बनी हुई हैं. डॉ कलाम को आज केवल एक क वैज्ञानिक और राष्ट्रपति के रूप में ही नहीं, बल्कि एक शिक्षक, संरक्षक और दूरदर्शी के रूप में याद किया जाता है.