18,000 फीट की ऊंचाई......स्पंगुर गैप से 11 किलोमीटर दक्षिण में एक सुनसान जगह......दिन 18 नवंबर, 1962…सुबह के 4 बजे लगभग दो हजार चीनी सैनिकों ने मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में 13 कुमाऊं की चार्ली कंपनी के 114 आदमियों पर हमला किया, जिसके बदले में देश के सपूतों ने लगभग 2000 चीनी सैनिकों को मार गिराया. ये जगह है रेजांग ला (Rezang La).
गुरुवार को, रेजांग ला युद्ध की 59वीं वर्षगांठ पर केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह शहीदों की याद में वॉर मेमोरियल का उद्घाटन करेंगे. उनके साथ, डिफेंस प्रमुख जनरल बिपिन रावत, थल सेनाध्यक्ष लेफ्टिनेंट जनरल चंडी प्रसाद मोहंती और उत्तरी सेना कमांडर वाईके जोशी भी मौजूद रहेंगे.
क्या है रेजांग ला युद्ध की कहानी?
दरअसल, 1962 में 18 नवंबर को सुबह 4 चीनी सैनिकों ने भारतीय सैनिकों पर हमला कर दिया था. हमला डूंगती के रास्ते लेह और चुशुल के बीच सड़क संपर्क को रोकने के इरादे से शुरू किया गया था ताकि चुशुल की चौकी को अलग-थलग कर दिया जाए और भारतीय सैनिकों को आपूर्ति की कमी हो जाए.
ऐसे में मेजर शैतान सिंह और उनकी कंपनी मेजर ने पहले तीन इंच के मोर्टार, फिर राइफल, बायोनेट्स और बिना किसी तोपखाने या हवाई समर्थन के चीनी सैनिको से लड़ाई लड़ी. इस युद्ध में भारत के 120 सपूतों ने चीन के 2000 सैनिकों को मार गिराया था.
रेजांग ला में ये युद्ध स्मारक उन्हीं साहसी सैनिकों की याद में बनवाया जा रहा है. आपको बता दें, उन वीर सपूतों की याद में रेजांग ला के चुशूल में “अहीर धाम” स्मारक भी बना हुआ है.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, सेना के एक वरिष्ठ कमांडर ने कहा है कि ये नया वॉर मेमोरियल उन सैनिकों के लिए पूजा स्थल और सच्ची श्रद्धांजलि की तरह है.
भारत के लिए रेजांग ला क्यों जरूरी है?
रेजांग ला और रेचिन ला, चुशुल घाटी से सटे हुए हैं, ये वो क्षेत्र है जिसे चीन अपनी सीमा के रूप में दावा करता है. जब चार्ली सी कंपनी ने बहादुरी से अपने इस क्षेत्र का बचाव किया, तब उन्होंने न केवल चीन को इस जगह को कब्जाने से रोका गया बल्कि चुशूल हवाई अड्डे को भी बचा लिया गया था. ये जगह पूरे तिब्बत और आस पास क क्षेत्र को प्रभावित करती है.
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