Constitution Right of Bail: पीड़ित से लेकर आरोपी तक… भारतीय कानून में हैं सभी के अधिकार, जानें बेल बॉन्ड, पर्सनल बॉन्ड और जमानत के सभी नियम 

जमानत बॉन्ड या बेल बॉन्ड एक तरह का आर्थिक साधन है, जिसका इस्तेमाल किसी आरोपी व्यक्ति की हिरासत से अस्थायी रिहाई के लिए किया जाता है. यानी अगर कोई आरोपी है और वह कुछ समय के लिए जेल से बाहर जाना चाहता है तो कानून में इसका प्रावधान है.

Laws and Bail (Photo: Social Media)
अपूर्वा सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 21 जून 2024,
  • अपडेटेड 12:00 PM IST
  • जमानत का है संवैधानिक अधिकार
  • भारतीय कानून में हैं सभी के अधिकार

भारत की न्याय प्रणाली में सभी को अपने अधिकार दिए गए हैं. फिर चाहे वह आपराधिक मामला ही क्यों न हो. आपराधिक न्याय प्रणाली में जमानत बॉन्ड (Bail Bond), व्यक्तिगत बॉन्ड (Personal bond) और जमानत (sureties) का अधिकार दिया गया है. ये अधिकार यह सुनिश्चित करते हैं कि मुकदमे की प्रक्रिया से गुजर रहे व्यक्तियों को उनकी स्वतंत्रता से वंचित न रखा जाए. साथ ही अदालत को यह आश्वासन भी दिया जाता है कि वे कानूनी कार्यवाही का पालन करेंगे.   

जमानत का संवैधानिक अधिकार

भारतीय संविधान, अनुच्छेद 21 के तहत, जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है. यह मौलिक अधिकार जमानत से जुड़े प्रावधानों का ही आधार बनता है. यह सुनिश्चित करता है कि कानून के अनुसार हर व्यक्ति को उसकी आजादी मिल सके. इसके लिए दंड प्रक्रिया संहिता है, जिसमें जमानत को लेकर कई सारे सिद्धांत दिए गए हैं. ये जमानत देने के लिए एक विस्तृत कानूनी ढांचा देता है. इसमें जमानत बॉन्ड, व्यक्तिगत बॉन्ड और जमानत के लिए आवश्यकताएं और शर्तें शामिल हैं.

जमानत बॉन्ड को समझना

जमानत बॉन्ड या बेल बॉन्ड एक तरह का आर्थिक साधन है, जिसका इस्तेमाल किसी आरोपी व्यक्ति की हिरासत से अस्थायी रिहाई सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है. यानी अगर कोई आरोपी है और वह कुछ समय के लिए जेल से बाहर जाना चाहता है तो कानून में इसका प्रावधान है. व्यक्ति बेल लेकर बाहर जा सकता है. हालांकि, इसमें बेल बॉन्ड जरूरी होता है,  यह अदालत के लिए एक तरह की गारंटी के रूप में काम करता है कि आरोपी न्यायिक कार्यवाही का पालन करेंगे और अपने मुकदमे के लिए मौजूद रहेंगे. जमानत बॉन्ड आमतौर पर उन मामलों में जरुरी होते हैं जहां अपराध गंभीर होता है, और अदालत को अलग से और आश्वासन की जरूरत होती है कि आरोपी भागेगा नहीं और कोर्ट उसे जब बुलाएगा वह मौजूद रहेगा.

बेल बॉन्ड में क्या होता है?

1. मौद्रिक गारंटी (Monetary Guarantee): आरोपी या तीसरे पक्ष को बॉन्ड के रूप में एक राशि जमा करनी होती है या संपत्ति गिरवी रखनी होती है. 

2. रिहाई की शर्तें: राशि जमा करवाने के साथ, अदालत आरोपी पर शर्तें लगा सकती है, जैसे अपना पासपोर्ट सरेंडर करना या नियमित रूप से पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट करना.

3. जब्ती: अगर अभियुक्त अदालत में उपस्थित नहीं होता है, या जमानत की शर्तों का पालन नहीं करता है, तो बॉन्ड जब्त किया जा सकता है, और जमा पैसे या संपत्ति अदालत द्वारा रख ली जाती है. यह व्यक्ति को फरार होने से रोकने का काम करता है.

व्यक्तिगत बॉन्ड या पर्सनल बॉन्ड क्या है?

जमानत बॉन्ड से अलग व्यक्तिगत बॉन्ड या जिसे पर्सनल बॉन्ड भी कहा जाता है, के लिए किसी तरह के पैसे जमा नहीं करवाने होते हैं. इसके बजाय, यह अभियुक्त द्वारा अदालत में उपस्थित होने और अदालत द्वारा निर्धारित किसी भी शर्त का पालन करने का लिखित वादा होता है. व्यक्तिगत बॉन्ड आम तौर पर उन मामलों में दिए जाते हैं जहां अपराध छोटा होता है, और अदालत का मानना होता ​​है कि आरोपी के भागने का जोखिम कम है.

कैसे होता है पर्सनल बॉन्ड?

1. गैर-मौद्रिक (Non-Monetary Assurance): अभियुक्त अदालत को एक लिखित वादा करता है कि वह सभी सुनवाई में भाग लेगा और अदालत की लगाई गई किसी भी शर्त का पालन करेगा.

2. रिहाई की शर्तें: जमानत बॉन्ड की तरह, अदालत रिहाई पर शर्तें लगा सकती है, जैसे यात्रा प्रतिबंध या कानून प्रवर्तन (law enforcement) के साथ नियमित चेक-इन. 

3. विश्वास और जिम्मेदारी: व्यक्तिगत बॉन्ड इस भरोसे पर बहुत ज्यादा निर्भर करते हैं कि अभियुक्त अदालत का सम्मान करेगा. अगर वह ऐसा नहीं करता है तो जुर्माना या आगे की कानूनी कार्रवाई हो सकती है.

व्यक्तिगत बॉन्ड यह सुनिश्चित करने में विशेष रूप से उपयोगी होते हैं कि जिन व्यक्तियों के पास जमानत देने के लिए पैसे नहीं हैं, उन्हें गलत तरीके से हिरासत में नहीं लिया जाए.

जमानत में क्या होता है? 

जमानतकर्ता वह व्यक्ति होता है जो यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी लेने के लिए सहमत होता है कि अभियुक्त अपनी जमानत की शर्तों का पालन करेगा. अगर अभियुक्त ऐसा करने में विफल रहता है या जमानत की शर्तों को नहीं मानता है, तो जमानतदार अदालत को कुछ पैसों का भुगतान करने का वचन देता है. ये एक तरह की वित्तीय गारंटी होती है. 

कैसे मिलती है जमानत?

1. तीसरे पक्ष की जिम्मेदारी: एक जमानतदार, अक्सर आरोपी का दोस्त या परिवार का सदस्य, अदालत को पैसे देने का एक तरह का वचन देता है. ये एक तरह की गारंटी होती है कि अभियुक्त अपने कानूनी दायित्वों को पूरा करेगा. 

2. वित्तीय दायित्व: अगर अभियुक्त अदालत में उपस्थित नहीं होता है या जमानत की शर्तों का पालन नहीं करता है, तो जमानतदार को गिरवी रखी गई राशि का भुगतान करना होता है. 

3. अदालत की मंजूरी: इसमें अदालत को जमानतदार को मंजूरी देनी होती है. ये मंजूरी तब दी जाती है जब जमानतदार इन सभी शर्तों को पूरा करने की क्षमता रखता है. 

जमानत देने में कोर्ट की होती है बड़ी भूमिका

जमानत दी जानी चाहिए या नहीं और किन शर्तों पर दी जानी चाहिए, यह निर्धारित करने में न्यायपालिका सबसे बड़ी भूमिका निभाती है. जज अपराध की गंभीरता, आरोपी का आपराधिक इतिहास, फरार होने की संभावना और समुदाय के लिए संभावित खतरे जैसे सभी कारकों का आकलन करते हैं. साथ ही उसी के हिसाब से जमानत को लेकर फैसला दिया जाया है. 


 

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