आरएलडी (Rashtriya Lok Dal) के नेता और जयंत चौधरी (Jayant Chaudhary) के करीबी शाहिद सिद्दीकी ने आरएलडी से इस्तीफा दे दिया है. शाहिद सिद्दीकी ने यह कहते हुए इस्तीफा दिया कि "मैंने अपना त्यागपत्र राष्ट्रीय लोक दल के अध्यक्ष मानिए जयंत जी को भेज दिया है. मैं ख़ामोशी से देश के लोकतांत्रिक ढांचे को समाप्त होते नहीं देख सकता. मैं जयंत सिंह जी और आरएलडी मैं अपने साथियों का आभारी हूं. धन्यवाद".
आखिर ऐसा क्या हुआ कि प्रधानमंत्री की मेरठ रैली के तुरंत बाद शाहिद सिद्दीकी ने जयंत चौधरी को अपना इस्तीफा भेज दिया. क्या बीजेपी से असहज होने की वजह से शाहिद सिद्दकी ने आरएलडी को अलविदा कह दिया या बीजेपी के साथ जाने के बाद जो आरएलडी को मिलनी चाहिए थी वह नहीं मिलता दिख रहा था.
मेरठ की रैली में मंच पर नहीं दिखे थे सिद्दीकी
शाहिद सिद्दीकी का कहना है कि लोकतंत्र की ढांचे का विध्वंस देख उन्होंने यह फैसला किया. लेकिन प्रधानमंत्री से उनके संबंध अच्छे बताए जाते रहे हैं. कुछ महीने पहले उन्होंने मुस्लिम इंटेलेक्चुअल को लेकर प्रधानमंत्री से मुलाकात भी की थी. यहां तक कि जब चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न से सम्मानित किया गया तो उन्होंने इसकी प्रशंसा की थी लेकिन रविवार को मेरठ की रैली में मंच पर नहीं दिखे.
राज्यसभा की थी उम्मीद
मुस्लिम बुद्धिजीवियों में शाहिद सिद्दीकी का नाम बड़ा माना जाता है. वह नई दुनिया और उसके उर्दू संस्करण नई जमीन के संपादक भी रह चुके हैं. चौधरी अजीत सिंह के बेहद करीबी रहे शाहिद सिद्दीकी ने अब जयंत का साथ छोड़ दिया है. माना जा रहा है कि पार्टी में उन्हें वो तवज्जो नहीं मिल रही थी जिसकी उन्हें उम्मीद थी. यहां तक कि मेरठ में पीएम के मंच पर भी उन्हें जगह नहीं मिली और राज्यसभा की उम्मीदें भी धूमिल होती जा रही थी.
RLD-BJP गठबंधन में नहीं दिख रहा था अपना भविष्य
बताया जा रहा है कि हाल के दिनों मे जयंत के साथ कोई दूसरा मुस्लिम चेहरा लगातार नजदीक बना हुआ है. यही नहीं बीजेपी के साथ गठबंधन के वक्त भी शाहिद सिद्दीकी समझौता करने वालों में शामिल नहीं थे. इसके अलावा माना जा रहा है की आरएलडी को राज्यसभा में कोई सीट गठबंधन में आने के बाद नहीं मिली, इससे उन्हें अपना भविष्य इस गठबंधन में नहीं दिखाई दे रहा.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुसलमान RLD-BJP गठबंधन को लेकर नहीं थे सहज
दूसरी ओर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुसलमान इस गठबंधन को लेकर सहज नहीं थे. उन्हें लग रहा था कि 2013 के दंगों का जख्म जो कि सपा और आरएलडी के गठबंधन के बाद से जाटों और मुसलमान के बीच भरने लगा था वह फिर हरा हो सकता है. शाहिद अब किस पार्टी का रुख करेंगे यह कहना मुश्किल है,लेकिन कांग्रेस से भी उनके रिश्ते अच्छे रहे हैं.