सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति कैटेगरी के भीतर सब-कैटेगरी की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट ने मुहर लगा दी है. राज्य सरकारें अब अनुसूचित जाति के आरक्षण में कोटे में कोटा दे सकेंगी. संविधान पीठ ने सुप्रीम कोर्ट का 20 साल पुराना फैसला पलट दिया. सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया कि राज्य सरकार SC/ST कैटेगरी में सब-कैटेगरी बना सकती है, जिससे मूल और जरूरतमंद कैटेगरी को आरक्षण का अधिक फायदा मिलेगा.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 15, 16 में ऐसा कुछ नहीं है, जो राज्य को किसी जाति को उपवर्गीकृत करने से रोकता हो. इसके साथ ही कोर्ट ने हिदायत दी है कि राज्य सरकारें मनमर्जी से फैसला नहीं कर सकती हैं. उन्हें जातियों की हिस्सेदारी उनकी संख्या के पुख्ता डेटा के आधार पर ही तय करनी होगी.
मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट के सामने भारत में दलित वर्गों के लिए आरक्षण का पुरजोर बचाव करते हुए कहा था सरकार SC-ST आरक्षण के बीच उप-वर्गीकरण के पक्ष में है.
7 जजों की संविधान पीठ में बहुमत से फैसला-
इस मामले में 7 जजों की संविधान पीठ ने बहुमत से फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने 6-1 के बहुमत से कहा कि हम मानते हैं कि उप वर्गीकरण की अनुमति है. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पंकज मिथल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने एससी/एसटी कैटेगरी के भीतर सब-कैटेगरी बनाने पर सहमति जताई. जबकि जस्टिस बेला माधुर्य त्रिवेदी ने इससे असहमति जताई.
साल 2004 में क्या था फैसला-
संविधान पीठ ने साल 2004 में ईवी चिन्नैया मामले में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया है. साल 2004 में 5 जजों की पीठ ने फैसला सुनाया था. उस समय सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की पीठ ने फैसला दिया था कि एससी/एसटी कैटेगरी में सब-कैटेगरी नहीं बनाई जा सकती. 5 जजों ने उप वर्गीकरण की इजाजत नहीं दी थी.
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