सिद्धू मूसेवाला के शूटरों का एनकाउंटर, जानें इस पर क्या कहता है भारत का कानून

सिंगर सिद्धू मूसेवाला के मर्डर में शामिल दो शूटर जगरूप सिंह रूपा और मनप्रीत सिंह उर्फ मन्नू कुस्सा को पुलिस ने अमृतसर में मार गिराया है.

सिद्धू मूसेवाला के शूटरों का एनकाउंटर
शताक्षी सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 20 जुलाई 2022,
  • अपडेटेड 5:43 PM IST
  • एनकाउंटर के बाद जांच जरूरी
  • मजिस्ट्रियल लेवल पर जांच होनी चाहिए

सिंगर सिद्धू मूसेवाला की हत्या में शामिल लोगों में दो गैंगस्टरों को आज अमृतसर के पास पुलिस ने मार गिराया. इस मुठभेड़ में तीन पुलिस वाले भी घायल हो गए. पुलिस सूत्रों ने बताया कि जगरूप सिंह रूपा को पहले मारा गया, जबकि दूसरा संदिग्ध मनप्रीत सिंह उर्फ मन्नू कुस्सा करीब एक घंटे तक गोलीबारी करता रहा और शाम करीब चार बजे उसे पुलिस ने मार गिराया. इस पूरे वाक्ये को पुलिस वाक्ये को पुलिस एनकाउंटर बता रही है. तो चलिए आज आपको बताते हैं कि भारत में एनकाउंटर के लिए किसी तरह के दिशा-निर्देश बनाए गए हैं?

एनकाउंटर के लिए भारत में कानून
भारतीय संविधान में एनकाउंटर शब्द का कहीं जिक्र ही नहीं है. पुलिस की भाषा में इसे तब इस्तेमाल किया जाता है जब पुलिस और अपराधियों के बीच हुई भिड़ंत में अपराधी की मौत हो जाती है. भारतीय कानून में एनकाउंटक को वैध ठहराने का कोई प्रावधान नहीं है. हालांकि कुछ नियम कानून जरूर ऐसे हैं, जो पुलिस को ये ताकत देते हैं कि वो अपराधियों पर हमला कर सकती है, ऐसे मामलों में अपराधियों की मौत को सही ठहराया जा सकता है. आमतौर पर लगभग सभी एनकाउंटर में पुलिस आत्मरक्षा के दौरान हुई कार्रवाई का ही जिक्र करती है. आपराधिक संहिता यानी सीआरपीसी की धारा 46 के तहत अगर कोई अपराधी खुद को बचाने की कोशिश करता है या पुलिस की गिरफ्त से भागने की कोशिश करता है या फिर पुलिस पर हमला करता है तो इन हालातों में पुलिस उस अपराधी पर जवाबी हमला कर सकती है. वहीं सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कुछ नियम भी बनाए हैं.

एनकाउंटर पर क्या है सुप्रीम कोर्ट के निर्देश
एनकाउंटर के दौरान हुई हत्याओं को एक्स्ट्रा-ज्यूडिशियल किलिंग भी कहते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने इसको लेकर कुछ नियम बनाए हैं, और कहा है कि पुलिस को तय किए गए नियमों का ही पालन करना होगा. 23 सितंबर 2014 को भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश आर एम लोढा और जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन की बेंच ने एक फैसले के दौरान एनकाउंटर का जिक्र किया था. 
उस बेंच ने अपने फैसले में लिखा था कि पुलिस एनकाउंटर के दौरान हुई मौत की निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच के लिए इन नियमों का पालन किया जाना चाहिए.

1. जब कभी भी पुलिस को किसी तरह की आपराधिक गतिविधि की सूचना मिलती है, तो वह या तो लिखित में हो या फिर किसी इलेक्ट्रॉनिक माध्यम के जरिए हो.

2. अगर किसी भी आपराधिक गतिविधि की सूचना मिलती है या फिर पुलिस की तरफ से किसी गोलीबारी की जानकारी मिलती है और उसमें किसी की मृत्यु की सूचना मिलती है तो इस पर तुरंत धारा 157 के तहत कोर्ट में एफआईआर दर्ज करनी चाहिए, जिसमें जरा सी भी देरी नहीं होनी चाहिए. 

3. एनकाउंटर के पूरे घटनाक्रम की एक स्वतंत्र जांच सीआईडी से या दूसरे पुलिस स्टेशन के टीम से करवानी ज़रूरी है, जिसकी निगरानी एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी करेगा. ये पुलिस अधिकारी उस एनकाउंटर में शामिल सबसे उच्च अधिकारी से एक रैंक ऊपर होना चाहिए.

4. धारा 176 के तहत पुलिस फायरिंग में हुई हर एक मौत की मजिस्ट्रियल लेवल पर जांच होनी चाहिए. जिसकी रिपोर्ट न्यायिक मजिस्ट्रेट के पास भेजना भी ज़रूरी है.

5. वहीं अगर जांच में किसी तरह का शक नहीं तो एनएचआरसी को जांच में शामिल करना जरूरी नहीं है. हालांकि घटनाक्रम की पूरी जानकारी बिना देरी किए एनएचआरसी या राज्य के मानवाधिकार आयोग के पास भेजना आवश्यक है. 

कोर्ट ने निर्देश दिया है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत किसी भी तरह के एनकाउंटर में इन तमाम नियमों का पालन किया जाना बेहद जरूरी है. 

 

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