अब जब भी कोई भारतीय बड़ी उपलब्धि हासिल करता है या कोई राष्ट्रीय स्तर का इवेंट होता है तो देश के हर कोने में कोई तिरंगा फहरा रहा होता है. लेकिन क्या आपको पता है एक समय था जब भारतीय तिरंगा सिर्फ खास मौकों पर ही फहराया जा सकता था और वह भी सिर्फ खास लोग ही इसे फहरा सकते थे. जी हां, सुनकर शायद अजीब लगे लेकिन साल 2004 से पहले तक Flag Code of India के तहत इसी तरह के नियम थे.
लेकिन एक बिजनेसमैन ने इस नियम को बदलने के लिए एक दशक लंबी लड़ाई लड़ी और आज उन्हीं की वजह से हर एक भारतीय को तिरंगा फहराने का अधिकार है. इस लड़ाई के हीरो थे मशहूर इंडस्ट्रियलिस्ट नवीन जिंदल. नवीन जिंदल ने एक दशक लंबी अदालती लड़ाई जीती, जिससे सभी भारतीयों को कभी भी अपने घरों, कार्यालयों और कारखानों पर राष्ट्रीय ध्वज प्रदर्शित करने का अधिकार मिला. साल 2004 में, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि प्रत्येक नागरिक साल के सभी दिनों में राष्ट्रीय ध्वज का प्रदर्शन कर सकते हैं और यह उनका मौलिक अधिकार है.
नवीन जिंदल ने क्यों फाइल की पेटीशन
जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड कंपनी की चेयरमैन नवीन जिंदल भारत के मशहूर उद्योगपतियों में से एक हैं. वह हरियाणा में कुरुक्षेत्र से लोक सभा के सदस्य भी रह चुके हैं. इस सबके साथ नवीन जिंदल को उस व्यक्ति के रूप में जाना जाता है जिन्होंने सभी भारतीयों के लिए तिरंगा फहराने का अधिकार जीता था. इस घटना के बारे में बात करें तो जिंदल ने अपनी कई इंटरव्यूज में बताया है कि राष्ट्रीय ध्वज, तिरंगे के प्रति उनका जुनून, अमेरिका के डलास में टेक्सास विश्वविद्यालय में अपने छात्र जीवन के दौरान शुरू हुआ. यहां पर उन्होंने देखा कि अमेरिका के लोग अपने झंडे को फहराकर अपनी देशभक्ति का प्रदर्शन करते हैं.
इससे प्रेरित होकर उन्होंने अपने कमरे में तिरंगा रख लिया और यूनिवर्सिटी में छात्र सीनेट के अध्यक्ष के रूप में, वह गर्व से भारतीय राष्ट्रीय ध्वज प्रदर्शित करते थे. साल 1992 में वह भारत वापस आए. इसके सालभर बाद, नवीन ने छत्तीसगढ़ (तत्कालीन मध्य प्रदेश) के रायगढ़ में अपने कारखाने के परिसर में सम्मानजनक तरीके से भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराया. लेकिन इसके अगले ही दिन यह तिरंगा परिसर से उतार दिया गया.
दरअसल, बिलासपुर के तत्कालीन आयुक्त ने इस आधार पर इस पर आपत्ति जताई कि भारतीय ध्वज संहिता के अनुसार, किसी निजी नागरिक को कुछ दिनों को छोड़कर भारतीय ध्वज फहराने की अनुमति नहीं है. जिंदल को इस बात का बहुत बुरा लगा क्योंकि वह सिर्फ अपने देश के प्रति अपनी प्रेम दर्शा रहे थे.
लड़ी एक दशक लंबी लड़ाई
नवीन जिंदल ने इस बात को इग्नोर करने की बजाय इस बारे में कुछ करने की ठानी. उन्होंने शांति भूषण सहित प्रतिष्ठित वकीलों से कानूनी सलाह मांगी. उन्हें जो सलाह मिली वह यह थी कि इस विषय पर दो स्पष्ट कानून मौजूद हैं. पहला, झंडे का अपमान या अनादर नहीं किया जा सकता और दूसरा, इसका इस्तेमाल व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए नहीं किया जा सकता. लेकिन ऐसा कोई कानून नहीं है जो नागरिकों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज को सम्मानपूर्वक फहराने पर रोक लगा सके.
जिंदल ने सरकारी अधिकारियों द्वारा उन्हें राष्ट्रीय ध्वज फहराने से रोकने की कार्रवाई के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत एक रिट याचिका दायर की. याचिका इस आधार पर दायर की गई थी कि निजी व्यक्तियों के राष्ट्रीय ध्वज फहराने पर रोक लगाने वाला कोई कानून नहीं है, यह रोक केवल ध्वज संहिता के तहत लगाई जा रही है.
इस ध्वज संहिता में भारत सरकार के कार्यकारी निर्देश शामिल थे और इसे किसी कानून के तहत जारी नहीं किया गया था. ध्वज संहिता के आधार पर लगाया गया निषेध संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकार का उल्लंघन है जो सभी नागरिकों को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है. जिंदल की याचिका को स्वीकार किया गया. हालांकि, इस पर कोर्ट में लंबी लड़ाई चली.
और आखिरकार, माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने 23 जनवरी, 2004 को फैसला सुनाया कि राष्ट्रीय ध्वज फहराना भारतीय नागरिकों का मौलिक अधिकार है.