Delhi Pollution and Stubble Burning: दिल्ली के लिए मुसीबत बनी पराली का इस्तेमाल करने के लिए वैज्ञानिकों ने ढूंढ निकाला एक नायाब तरीका!

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के वैज्ञानिकों ने पराली से बायो–थर्माकोल तैयार किया है. इसे पैकेजिंग और रूफ सीलिंग इस्तेमाल किया जाने लगा है. अब भवन निर्माण में भी पराली का इस्तेमाल करने के लिए प्रयोग जारी है. 

पराली
मनजीत सहगल
  • लुधियाना ,
  • 01 नवंबर 2023,
  • अपडेटेड 1:57 PM IST
  • पूरी तरह से इको-फ्रेंडली है 
  • पराली बन सकती है किसान की कमाई का साधन

पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के किसानों द्वारा जलाई गई पराली से उठते धुएं ने दिल्ली और एनसीआर क्षेत्र के लोगों का जीना दूभर कर दिया है. ऐसे में वैज्ञानिक अब पराली के सही उपयोग के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं.भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के लुधियाना स्थित केंद्रीय कटाई उपरांत अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी संस्थान के वैज्ञानिकों ने पराली से बायो थर्माकोल बनाने में सफलता हासिल की है. इस तकनीक के हस्तांतरण के लिए अब बाकायदा एक औद्योगिक इकाई से एमओयू भी हो चुका है.

पराली से ऐसे बनता है बायो थर्माकोल

आईसीआर के प्रमुख वैज्ञानिक डा रमेश चंद कसाना ने पराली से बायो थर्माकोल बनाने और उसके इस्तेमाल की जानकारी दी. डॉ कसाना ने बताया कि धान और गेहूं की पराली से आसानी से बायो थर्माकोल तैयार किया जा सकता है. इसे तैयार करने में 15 से 20 दिन का समय लगता है. सबसे पहले पराली को एक सेंटीमीटर के आकार में काटकर उसका भूसा तैयार किया जाता है. उसके बाद उसे जीवाणु रहित करके उसमें स्पॉन नामक पदार्थ मिलाया जाता है जो अनाज से बनता है. स्पॉन के पनपने से एक तरफ जहां पराली का रंग सफेद हो जाता है वहीं वह इसमें मौजूद तत्वों की वजह से अच्छी तरह से चिपक जाती है. उसके बाद उसे सांचे में डालकर कोई भी आकर दिया जा सकता है.

पूरी तरह से इको-फ्रेंडली है 

पराली से तैयार किया गया बायो थर्माकोल केमिकल से बनाए गए थर्माकोल की तरह ही हल्का होता है, लेकिन यह पूरी तरह से बायोडिग्रेडेबल यानी कुदरती तौर पर नष्ट हो सकता है. इसके इस्तेमाल से पर्यावरण को किसी भी तरह का कोई नुकसान नहीं होगा. केमिकल से बनाए गए थर्माकोल के इस्तेमाल से पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचता है क्योंकि यह कुदरती तौर पर नष्ट नहीं होता. 

वैज्ञानिक अब इसे छत की सीलिंग के रूप में इस्तेमाल करने के लिए भी प्रयोग कर रहे हैं. इसके अलावा भवन निर्माण में भी पराली को इंसुलिन के तौर पर इस्तेमाल करने के प्रयास किए जा रहे हैं.

पराली बन सकती है किसान की कमाई का साधन

किसान पराली को न जलाएं इसके लिए वैज्ञानिक और राज्य सरकारें पराली के इन–सीटू और एक्स –सीटू प्रबंधन यानी पराली को खेत में ही या फिर खेत के बाहर इस्तेमाल करने के तरीकों पर काम कर रही है. अकेले पंजाब में 7.5 मिलियन एकड़ क्षेत्रफल पर धान की फसल उगाई जाती है जिससे हर साल 22 मिलियन टन पराली पैदा होती है. सरकार का दावा है कि 60 फीसदी पराली यानी 12 मिलियन टन पराली को खेतों में ही नष्ट करने के प्रयास किए जा रहे हैं. एक अनुमान के मुताबिक पंजाब में हर साल 10 मिलियन टन पराली जला दी जाती है जिससे पर्यावरण को काफी नुकसान होता है.

हरियाणा सरकार के अधिकारियों के मुताबिक पराली का 34 फीसदी हिस्सा जानवरों के चारे के रूप में और 43 फीसदी हिस्सा खेतों में ही नष्ट किया जा रहा है. राज्य सरकार का दावा है कि राज्य में 23 फीसदी पराली का प्रबंधन एक्स सीटू तरीके से हो रहा है. राज्य के दो दर्जन के करीब उद्योग पराली को अब ईंधन के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं.

पराली जलाने में आई है गिरावट 

आंकड़ों के मुताबिक अबकी बार पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने के मामलों में 50 फीसदी से ज्यादा गिरावट आई है. राज्य सरकारों का दावा है कि पराली जलाने के मामलों में आई गिरावट कुशल पराली प्रबंधन का नतीजा है.

भारत के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक ने भी पराली जलाने के मामलों में 53 फीसदी तक गिरावट की पुष्टि की है. हालांकि नासा द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक इन राज्यों में अभी भी आधी से ज्यादा पराली आग के हवाले की जा रही है. लेकिन इस बीच आईसीआर के वैज्ञानिकों ने पराली का इस्तेमाल बायो थर्माकोल के रूप में करके एक तरफ जहां पर्यावरण को बचाने का प्रयास किया है वहीं किसानों को अपनी आय बढ़ाने का भी मौका दिया है.


 

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