ये प्रेम कहानी किसी वेलेंटाइन डे की मोहताज नहीं. इस कहानी में तो हर धड़कन उसकी दी हुई है जिसे जीवन साथी कहते हैं. कहानी है, नोएडा में रहने वाले पति पत्नी इंद्रपाल सिंह और सतबिंदर कौर की. एक ऐसी कहानी जिसमें खून के रिश्तों ने भी साथ छोड़ दिया. वो भी ऐसे कि सतबिंदर के जीने की डोर तक टूटने लगी. लेकिन जिस इंद्रपाल ने तकरीबन पांच साल पहले हाथ थामा था उसने ही जीवन की डोर इतनी मजबूती से थामी कि जीने की लौ और तेज़ जलने लगी. आज इंद्रपाल की एक किडनी सतबिंदर के अंदर मौजूद है और वो भी तब जब मां-बाप, भाई-बहन सबसे उसे नाउम्मीदी मिली. ये कहानी जितनी दिल को जीतने वाली है उतनी ही रुलाने वाली भी.
इंद्रपाल और सतबिंदर की कहानी
इंद्रपाल और सतबिंदर की कहानी साल 2019 से शुरु होती है, जब उनकी शादी हुई. इंद्रपाल झारखंड के धनबाद के रहने वाले हैं और सतबिंदर भी झारखंड में ही प्राइवेट नौकरी करतीं थीं. शादी एरेंज हुई और इंद्रपाल सतबिंदर को लेकर दिल्ली आ गए जहां वो नौकरी करते थे. सतबिंदर की दिल्ली आते ही तबीयत खराब रहने लगी और ऐसा लगा कि झारखंड के कम प्रदूषण वाले इलाके से दिल्ली में आने पर ये बदलाव हुआ.
जब परिवार ने भी छोड़ दिया साथ
साल 2020 आया लेकिन तबीयत ठीक होने की बजाए बिगड़ती चली गई. मार्च के महीने में जब कोरोना अपना पैर पसार रहा था तभी ये नया जोड़ा दिल्ली में परेशान था और वजह थी सतबिंदर की बिगड़ती हुई तबीयत. मार्च में लॉकडाउन लगने से ठीक पहले सतबिंदर की पूरी जांच शुरू हुई. जांच अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि कोरोना ने अपने पैर पसार लिए और मेडिकल इमरजेंसी को छोड़ सभी अस्पताल महामारी के इलाज में लग गए. इंद्रपाल और सतबिंदर भी इस दौरान झारखंड चले गए. वहां पहुंचकर भी जब तबीयत ठीक होने की बजाए बिगड़ने लगी तो इंद्रपाल कोलकाता पहुंच गए. कोलकाता में ही पहली बार उन्हें ये पता चला कि सतबिंदर की किडनी में ऐसी बीमारी है जिसकी वज़ह से वो मौजूदा किडनी के साथ लगभग एक साल ही चल सकती हैं और वो भी दवाई के साथ. जब अगस्त के महीने में लॉकडाउन खत्म हुआ तो दोनों दिल्ली आए और फिर दिल्ली के अपोलो अस्पताल में डॉ संदीप गुलेरिया की निगरानी में इलाज शुरू हुआ. इसी दौरान डॉक्टरों ने कहा कि सतबिंदर को अगर उनके खून के रिश्ते वाले किन्हीं से किडनी मिल जाए तो बेहतर होगा. सतबिंदर के पिता की जांच शुरू हुई और जब लगभग आधी जांच हो गई तो पिता घर वापस लौट गए. इंद्रपाल बताते हैं कि जब उन्होंने सतबिंदर के पिता को फिर कॉल किया तो कोई जवाब नहीं आया. और फिर सतबिंदर की बहन से पता चला कि उनका परिवार इस पक्ष में नहीं है कि सतबिंदर के पिता उन्हें किडनी डोनेट करें. परिवार ने ये कहा कि सतबिंदर के लिए बाहर से किसी की किडनी एरेंज करना बेहतर विकल्प होगा.
इसके बाद पति-पत्नी अहमदाबाद के एक सरकारी अस्पताल पहुंचे जो इस तरह की किडनी मिलान के लिए सबसे बेहतर माना जाता है. लगातार कोशिशों के बाद जब उन्हें एक मैचिंग किडनी डोनर मिला जो इंद्रपाल की किडनी के बदले अपनी किडनी देने के लिए तैयार हुआ. लेकिन तभी एक कानूनी पेंच फंस गया. अब बारी इंद्रपाल के परिवार के लोगों से इस बात की परमिशन लेने की थी कि क्या इंद्रपाल अपनी किडनी दान कर सकते हैं या नहीं. इस कार्रवाई में वक्त लग रहा था और दूसरी तरफ सतबिंदर की उम्मीद जवाब दे रही थी. किडनी अदला बदली की ये कोशिश भी नाकाम हो गई. दोनों वापस दिल्ली लौट आए और डॉ गुलेरिया से मिले. इंद्रपाल ने कहा कि वो अपनी किडनी सतबिंदर को देना चाहते हैं. लेकिन इंद्रपाल का ब्लड ग्रुप "ए" था जबकि सतबिंदर का "बी". डॉक्टरों ने साफ कह दिया ऐसा किडनी ट्रांसप्लांट काफी रिस्की हो सकता है. लेकिन इंद्रपाल डटे रहे और अपने तमाम टेस्ट करवाए. आखिरकार डॉक्टरों को उम्मीद दिखी जब इंद्रपाल के सबसे जरूरी पैरामीटर सतबिंदर से मैच कर गए. आखिरकार अगस्त 2022 में अपना इंद्रपाल ने किडनी दान किया और सतबिंदर को जीवनदान दिया.
सतबिंदर से जब आजतक ने बात की तो उन्होंने कहा कि इंद्रपाल ने उन्हें कभी मायूस नहीं होने दिया. मां-बाप का साथ न देना कष्टदायक तो था लेकिन इंद्रपाल ने लगातार कहा कि जब तक वो हैं तब तक उन्हें कुछ नहीं होगा और आज वो लगातार ठीक होती जा रहीं हैं. वहीं इंद्रपाल कहते हैं कि इस मुश्किल की घड़ी में उन्होंने जिंदगी के बारे में बहुत कुछ सीखा है और लोगों को संदेश भी देना चाहते हैं कि किडनी दान करने से पीछे ना हटें क्योंकि ऐसा करके कई सारी जिंदगियों को बचाया जा सकता है.