प्रसिद्ध समाज सुधारक और सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन के संस्थापक बिंदेश्वर पाठक का 80 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. उन्होंने देश भर में 10,000 से ज्यादा सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण करवाया था.
साल 1970 में शुरू किया सुलभ अभियान
बिहार के वैशाली जिले के रामपुर बाघेल गांव में जन्मे पाठक ने 1970 में सुलभ अभियान शुरू किया और अपना जीवन मैला ढोने की प्रथा को खत्म करने और स्वच्छता पर जागरूकता फैलाने के लिए समर्पित कर दिया. उन्हें व्यापक रूप से निर्मित कम लागत वाले ट्विन-पिट फ्लश शौचालयों को डिजाइन करने और लोकप्रिय बनाने का श्रेय दिया जाता है. केंद्र सरकार के स्वच्छ अभियान शुरू करने के बहुत समय पहले से ही उन्हें स्वच्छता की दिशा में काम करने के लिए जाना जाता है.
पाठक ने अपना पहला सार्वजनिक शौचालय साल 1973 में बिहार के आरा में एक नगर पालिका अधिकारी की मदद से बनाया था. नगर पालिका परिसर में दो शौचालय बनाने के लिए उन्हें 500 रुपये दिए गए थे. इस पहल की सफलता के बाद, अधिकारियों ने इस प्रोजेक्ट को मंजूरी दी. साल 1974 में, पहला सुलभ पब्लिक टॉयलेट - 48 सीटों, 20 बाथरूम, यूरिनल्स और वॉशबेसिन के साथ - पटना में जनता के लिए खोल दिया गया था.
दलित समुदाय के लिए किया काम
अपने गांव में स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद, पाठक ने बीएन कॉलेज, पटना से समाजशास्त्र में स्नातक की उपाधि प्राप्त की. वह मध्य प्रदेश के सागर विश्वविद्यालय से क्रिमिनोलॉजी की पढ़ाई करना चाहते थे, लेकिन इससे पहले वह एक स्वयंसेवक के रूप में पटना में गांधी शताब्दी समिति में शामिल हो गए. इस समिति ने उन्हें बिहार के बेतिया में दलित समुदाय के लोगों के मानवाधिकारों और सम्मान की बहाली के लिए काम करने के लिए भेजा.
वहां से, उन्होंने हाथ से मैला ढोने की प्रथा और खुले में शौच को खत्म करने के लिए एक मिशन शुरू करने का संकल्प लिया. साल 1974 में, बिहार सरकार ने बाल्टी शौचालयों को दो-गड्ढे वाले फ्लश शौचालयों में बदलने के लिए सभी स्थानीय निकायों को एक परिपत्र भेजा और कहा कि इस काम को सुलभ की मदद से किया जाए. साल 1980 तक, अकेले पटना में 25,000 लोग सुलभ पब्लिक सर्विसेज का उपयोग कर रहे थे.
विधवाओं के लिए भी किया काम
पाठक के प्रयासों को अंतर्राष्ट्रीय प्रेस में भी सम्मान मिलने लगा. साल 1991 में, उन्हें हाथ से मैला ढोने वालों की मुक्ति और पुनर्वास पर उनके काम के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया गया और अगले वर्ष पर्यावरण के लिए अंतर्राष्ट्रीय सेंट फ्रांसिस पुरस्कार प्राप्त हुआ. 2009 में, पाठक ने रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज का स्टॉकहोम वॉटर पुरस्कार जीता.
साल 2012 में, उन्होंने वृन्दावन की विधवाओं के कल्याण की दिशा में काम करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर एक परोपकारी मिशन शुरू किया. उन्होंने हर एक विधवा को 2,000 रुपये का मासिक वजीफा देने की शुरुआत की. साल 2016 में, सुलभ को सरकार के प्रमुख स्वच्छ भारत मिशन में योगदान के लिए गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.