सेंट्रल विस्टा परियोजना को चुनौती वाली याचिका खारिज, सुप्रीम कोर्ट ने कहा-कोई प्राइवेट प्रॉपर्टी नहीं बन रही

सेंट्रल विस्टा परियोजना को सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को फिर हरी झंडी दे दी. जज ने कहा कि वहां कोई प्राइवेट प्रॉपर्टी नहीं बनाई जा रही है. वहां उपराष्ट्रपति का आवास बनाया जा रहा है. क्या अब हम आम आदमी से पूछना शुरू करेंगे कि उपराष्ट्रपति का आवास कहां बने.

सुप्रीम कोर्ट
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 23 नवंबर 2021,
  • अपडेटेड 3:26 PM IST
  • सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की याचिका
  • लैंड यूज बदले जाने को दी गई थी चुनौती

सेंट्रल विस्टा परियोजना को सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को फिर हरी झंडी दे दी. परियोजना को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा वहां कोई प्राइवेट प्रॉपर्टी नहीं बनाई जा रही है. कोर्ट ने चिल्ड्रन पार्क और हरित क्षेत्र के लैंड यूज बदलने के खिलाफ याचिका को खारिज कर दिया.

क्या आम आदमी से पूछें कि उपराष्ट्रपति का आवास कहां बनेगा?
जज ने कहा कि वहां उपराष्ट्रपति का आवास बनाया जा रहा है. चारों ओर हरियाली होना तय है. उपराष्टपति का आवास कहीं और कैसे हो सकता है. जज ने पूछा कि क्या अब हम आम आदमी से पूछना शुरू करेंगे कि उपराष्ट्रपति का आवास कहां बने. योजना को पहले ही प्राधिकरण द्वारा मंजूरी दी गई है. जस्टिस एएम खानविलकर ने कहा कि ये नीतिगत मामला है. हर चीज की आलोचना की जा सकती है लेकिन रचनात्मक आलोचना होनी चाहिए. 

केंद्र ने की थी याचिका खारिज करने की मांग
जज ने कहा कि केंद्र के हलफनामे में पहले ही कहा गया है कि वे पहले ही मुआवजे के तौर पर ज्यादा हरित क्षेत्र दे रहे हैं. तब किस सिद्धांत पर चुनौती दिया जा रहा है. इससे पहले केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से सेंट्रल विस्टा के खिलाफ दायर नई याचिका को खारिज करने की मांग की थी और कोर्ट से आग्रह किया था कि याचिका को जुर्माने के साथ खारिज किया जाए.

दरअसल, सरकार ने हलफनामा  उस याचिका के  जवाब में दाखिल किया जिसमे प्लॉट नंबर 1 के लैंड यूज बदले जाने के नोटिफिकेशन चुनौती दी गई. याचिकाकर्ता का कहना है कि ये नोटिफिकेशन जमीन को रिक्रिएशनल से रेसिडेंशियल में बदले जाने को की इजाजत देता है. जवाब में केंद्र सरकार ने कहा कि याचिकाकर्ता ने गलत जानकारी कोर्ट को दी है.  जिस प्लॉट पर सवाल उठाया है, वो कभी पब्लिक के लिए के लिए खुला नहीं रहा और करीब 90 सालों से रक्षा मंत्रालय के सरकारी दफ्तरों के लिए इस्तेमाल होता रहा है.

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