यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई सस्ती होने के कारण ज्यादातर देशों से बच्चे वहां पढ़ाई करने जाते हैं. इसके चलते उन्हें कई तरह के दस्तावेज भी जमा करने होते हैं. कई बार मां-बाप बच्चों की उम्र वगैरह भी कम करवाकर लिखवाते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि ऐसा करना कानूनी जुर्म है. हाल ही में एक ऐसा वाक्या भी सामने आया था. कम फीस की वजह से अपने बेटे को मेडिकल शिक्षा के लिए यूक्रेन भेजने वाले एक पिता पर सुप्रीम कोर्ट ने दस लाख का जुर्माना लगाया था. हालांकि अब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर नरमी बरतते हुए जुर्माने की रकम को 80 फीसद कम कर दिया है.
बेटे की पढ़ाई के लिए छिपाई थी निजी जानकारी
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एलएन राव और जस्टिस बीआर गवई की बेंच के सामने एक आदमी के फर्जी दस्तावेज लगाकर योग्यता प्रमाण पत्र हासिल करने के आरोप में मुकदमा दर्ज था. इस मामले में आठ फरवरी को हुई पिछली सुनवाई के दौरान उस पर दस लाख रुपए जुर्माना लगाया गया था. लेकिन जब पता चला कि बेटे की मेडिकल शिक्षा के लिए प्रमाणपत्र बनवाने के लिए उसने अपनी कुछ निजी जानकारी छिपाई है, तो कोर्ट का रुख थोड़ा नरम हुआ.
नेशनल मेडिकल काउंसिल के वकील ने की सिफारिश
नेशनल मेडिकल काउंसिल के वकील को कोर्ट ने कहा कि देखिए अभी यूक्रेन में करीब 20 हजार छात्र उच्च व्यावसायिक शिक्षा के लिए गए हुए हैं. वो युद्धग्रस्त यूक्रेन में फंसे हुए हैं. लड़ाई कब तक चलेगी इसका कोई पता नहीं. ये भारतीय छात्र वहां जाकर इसलिए पढ़ाई कर रहे हैं क्योंकि वहां मेडिकल शिक्षा की फीस भारत में निजी मेडिकल कॉलेजों के मुकाबले काफी कम है. अभी युद्ध में छात्रों और उनके अभिभावकों की दशा को देखते हुए हमने अपने पुराने आदेश में सुधार करते हुए जुर्माना घटाने का फैसला किया है.
उम्र कम दिखाने के कारण दर्ज हुआ था मुकदमा
नेशनल मेडिकल कमीशन के मुताबिक छात्र ने 2014 में हायर सेकेंडरी पास की थी. फिर मेडिकल में अंडर ग्रेजुएट यानी यूजी के लिए अप्लाई किया. दाखिला भी हो गया. लेकिन इसके लिए उसने जो एलिजिबिलिटी सर्टिफिकेट कमीशन के पास जमा किया, उसमें बताई गई उम्र उसकी जन्म तिथि से मेल नहीं खा रही थी. सर्टिफिकेट के मुताबिक 31.12.2014 को उसकी उम्र 17 साल चार महीने होती है. लेकिन उसकी जन्म तिथि के सबूतों के मुताबिक उम्र 16 साल एक महीने ही होती है. विवाद इसी पर था.
2019 में मिला था कारण बताओ नोटिस
आयोग ने 11 अक्टूबर, 2019 को छात्र के नाम कारण बताओ नोटिस दिया था, क्योंकि तब योग्यता के मानदंडों के मुताबिक छात्र की न्यूनतम उम्र 17 साल नहीं हुई थी. छात्र ने हाईकोर्ट के आदेश पर आयोग के सामने अपनी बात रखी थी. लेकिन तब आयोग ने उसे खारिज कर दिया था. फिर छात्र के पिता ने सुप्रीम कोर्ट में रिट दाखिल कर गुहार लगाई. तब कोर्ट ने फर्जीवाड़ा का गुनहगार मानते हुए पहले दस लाख रुपए जुर्माना किया फिर अदालत का दिल पसीज गया और जुर्माना दो लाख रुपए कर दिया गया.