ज़हन में जब भी वकील शब्द आता है तो खुद-ब-खुद काले कोट की तस्वीर आ जाती है. अब इसी काले कोट पर बहस चल पड़ी है. यहां तक कि मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंच गया है. दरअसल, भारत में वकीलों के लिए ड्रेस कोड कानूनी पेशे का सबसे जरूरी हिस्सा है. यह गरिमा, औपचारिकता और न्यायिक प्रक्रिया के प्रति सम्मान का प्रतीक माना जाता है. वकील जिन कपड़ों को पहनते हैं उन्हें आमतौर पर "कोर्ट ड्रेस" (Court Dress) कहा जाता है. ये केवल उनकी पेशेवर पहचान का प्रतीक नहीं है, बल्कि इसे कानून द्वारा भी निर्धारित किया गया है.
हालांकि, यह ड्रेस कोड खासकर गर्मी के मौसम में, जब काले रोब्स, कोट और गाउन पहनने की बात आती है, तो एक विवाद का विषय बन जाता है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में एक याचिका में इन मुद्दों को उठाया गया, लेकिन उसे खारिज कर दिया गया.
ड्रेस कोड में छूट के लिए सुप्रीम कोर्ट ने की याचिका खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने वकीलों के लिए गर्मी के मौसम में ड्रेस कोड में छूट की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया है. यह याचिका एडवोकेट शैलेन्द्र त्रिपाठी (Shailendra Tripathi v. Union of India and ors) ने दायर की थी. उन्होंने तर्क दिया था कि उत्तर भारत की तेज गर्मी में ब्लैक रोब्स, कोट और गाउन पहनना न केवल असुविधाजनक है बल्कि बार-बार ड्राई-क्लीनिंग की जरूरत के कारण आर्थिक बोझ भी पड़ता है.
इस याचिका को चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ (Chief Justice of India) की अध्यक्षता वाली 3 जजों बेंच ने ख़ारिज कर दिया है. बेंच में जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा भी शामिल थे. बेंच ने याचिका को लेकर सहानुभूति तो जाहिर की, लेकिन स्पष्ट रूप से कहा कि देश में हर जगह जलवायु अलग है. इसे देखते हुए, यह मामला बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) और केंद्र सरकार के विवेक पर छोड़ दिया जाना चाहिए. पीठ ने कहा कि राजस्थान में गर्मी की स्थिति बेंगलुरु जैसी नहीं है, इसलिए BCI इस पर निर्णय ले.
कुर्ता-पायजामा में बहस नहीं कर सकते: SC
SC ने कोर्ट में शालीनता बनाए रखने की भी जरूरत पर जोर दिया. चीफ जस्टिस ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में शालीनता जरूरी है. आपको सही कपड़े पहनकर आना होगा.
साथ ही CJI ने ये भी कहा कि गाउन को लेकर पहले से ही छूट दी गई है, लेकिन मर्यादा का न्यूनतम मानक बनाए रखा जाना चाहिए. कोर्ट ने कहा, "गाउन पर पहले से ही छूट है. आपको कुछ तो पहनना ही होगा. आप कुर्ता-पायजामा या शॉर्ट्स और टी-शर्ट में भी बहस नहीं कर सकते. कुछ मर्यादा भी होनी चाहिए."
दरअसल, याचिकाकर्ता ने काले कोट और गाउन की छूट या दूसरे रंगों की अनुमति की मांग की थी, लेकिन बेंच ने ड्रेस कोड को बनाए रखने की जरूरत पर जोर देते हुए याचिका को खारिज कर दिया.
ब्रिटिश काल से है यही ड्रेस कोड
भारत में वकीलों के लिए ड्रेस कोड ब्रिटिश काल से ही है. ब्रिटिश शासन के दौरान ही इसे पेश किया गया था. आज जो ब्लैक रोब्स, कोट और गाउन वकील पहनते हैं, उनकी जड़ें ब्रिटिश लीगल सिस्टम (British Legal System) में हैं. हालांकि, ब्रिटिश लीगल ड्रेस कोड इंग्लैंड की ठंडी जलवायु के लिए डिजाइन किया गया था, इसे भारत में अपनाना, जहां गर्मी और ह्यूमिडिटी ज्यादा होती है, कई वकीलों के लिए ये असुविधाजनक रहा है.
काले कपड़े और कोट को औपचारिकता, अधिकार और न्याय की भावना से जोड़ा गया है. काला रंग गुमनामी (Anonymity) का प्रतीक होता है, जो वकील को बिना किसी व्यक्तिगत पूर्वाग्रह या पहचान के अपने मुवक्किल का प्रतिनिधित्व करने की बात कहता है. हालांकि, ये ड्रेस कोड भारत की जलवायु में कितनी सही है, इसपर सालों से बहस होती रही है. कई वकीलों का मानना है कि यह सिस्टम काफी पुराना है और इतनी गर्मी में इसे पहनना मुश्किल भरा है.
वकीलों के ड्रेस कोड के लिए है कानून
वकीलों के लिए ड्रेस कोड को कंट्रोल करने वाला कानून 1961 का एडवोकेट एक्ट (Advocates Act) है. बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) इसे हैंडल करता है. 1975 के बीसीआई नियम (BCI Rules) में ड्रेस कोड के बारे में डिटेल में गाइडलाइन दी गई है, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वकील शालीन और गरिमामयी दिखें.
पुरुषों के लिए:
-एक काला गाउन, जिसे एडवोकेट गाउन कहा जाता है, काले कोट के ऊपर पहनना जरूरी है. इंटर्न्स को इसमें नहीं जोड़ा गया है.
-पुरुष वकील को सफेद, काले धारीदार या ग्रे पैंट या धोती पहननी होती है.
- उन्हें काले बटन वाले कोट, चपकन, अचकन, काली शेरवानी और सफेद बैंड या काला ओपन ब्रेस्ट कोट, सफेद शर्ट, सफेद कॉलर और सफेद बैंड पहनना चाहिए.
महिलाओं के लिए:
-महिला वकीलों को या तो ब्लैक फुल-स्लीव जैकेट या ब्लाउज, सफेद कॉलर और सफेद बैंड के साथ, और एडवोकेट गाउन पहनना जरूरी है.
-इसके अलावा, वे साड़ी या लॉन्ग स्कर्ट (सफेद, काले, या हल्के रंगों में) के साथ काला ओपन ब्रेस्ट कोट और बैंड पहन सकती हैं.
-महिलाएं चूड़ीदार-कुर्ता या सलवार-कुर्ता के साथ काला कोट और बैंड पहनने का विकल्प भी चुन सकती हैं.
गर्मी के महीनों में ड्रेस कोड में छूट
बीसीआई के नियमों में गर्मी के महीनों के दौरान ड्रेस कोड में कुछ छूट दी गई है. लोअर कोर्ट्स में गर्मी के मौसम में काले कोट को पहनना जरूरी नहीं है. हालांकि, यह छूट सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट पर लागू नहीं होती है.
देश भर में अलग-अलग हाई कोर्ट, गर्मी के मौसम में नोटिफिकेशन और सर्कुलर जारी करते हैं. इसमें गर्म महीनों के दौरान वकीलों को काला कोट या गाउन पहनने से छूट को लेकर जानकारी दी जाती हैं. उदाहरण के लिए:
-आंध्र प्रदेश बार काउंसिल ने 2023 में एक सर्कुलर जारी किया था, जिसमें कहा गया कि 15 मार्च से 15 जुलाई तक लोअर कोर्ट में काले कोट पहनना जरूरी नहीं है.
-इसी तरह, केरल, पंजाब एवं हरियाणा, जम्मू एवं कश्मीर और कलकत्ता हाई कोर्ट्स ने भी गर्मियों के दौरान वकीलों को उनके गाउन के बिना पेश होने की अनुमति दी थी.
-मई 2020 में, दिल्ली हाई कोर्ट ने COVID-19 महामारी के कारण गाउन पहनने से छूट दी थी. इसके बाद के सर्कुलर में, अदालत ने गर्मी के महीनों के कारण इस छूट को जारी रखा था.
ड्रेस कोड को लेकर कब छूट दी जाती है?
जबकि बीसीआई ड्रेस कोड को कंट्रोल करता है, कुछ परिस्थितियों के आधार पर इसमें छूट दी जाती है, जैसे:
1. मौसमी परिस्थितियां: ड्रेस कोड में छूट का प्राथमिक कारण भारत के कुछ हिस्सों में होने वाली तेज गर्मी है. BCI लोअर कोर्ट्स में गर्मियों के दौरान काले कोट को ऑप्शनल रखता है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट्स में ऐसी कोई छूट नहीं है.
2. महामारी में: COVID-19 महामारी के दौरान, देश भर के कोर्ट्स, जिनमें सुप्रीम कोर्ट भी शामिल था, ने वकीलों के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में पेश होने के दौरान ड्रेस कोड में छूट दी थी. उन्होंने गाउन और दूसरे भारी कपड़ों को पहनने की अनिवार्यता हटा दी थी.
ड्रेस कोड को आधुनिक बनाने पर बहस
ड्रेस कोड को आधुनिक बनाने की बहस लगातार जारी है. कुछ वकीलों का मानना है कि काले कोट और गाउन ब्रिटिश शासन की धरोहर हैं और भारत की जलवायु के लिए सही नहीं हैं. वे तर्क देते हैं कि ड्रेस कोड में सुधार किया जाना चाहिए ताकि हल्के कपड़े या गर्मियों में हल्के रंगों की अनुमति दी जा सके. दूसरी ओर, कुछ का मानना है कि ड्रेस कोड न्यायिक गरिमा और सम्मान का प्रतीक है.