भारतीय मेडिकल एसोसिएशन (IMA) द्वारा भ्रामक मेडिकल विज्ञापनों के खिलाफ दायर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा बयान दिया है. अदालत ने Drugs and Magic Remedies (Objectionable Advertisements) Act को "सबसे महत्वपूर्ण कानूनों में से एक" करार देते हुए कहा कि इसमें नागरिकों को शिकायत करने का स्पष्ट मैकेनिज्म होना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि इस कानून के तहत एक पूरी शिकायत निवारण प्रणाली (Grievance Redressal Mechanism) बनाई जाए. जस्टिस अभय एस. ओका और उज्जल भूयान की पीठ ने टिप्पणी की, “अगर कोई नागरिक शिकायत करना चाहता है, तो वह कैसे करेगा? हमें इसपर दिशा-निर्देश जारी करने होंगे. हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई हेल्पलाइन नंबर या ऑनलाइन पोर्टल हो, जहां लोग अपनी शिकायत दर्ज करा सकें.”
सरकार और राज्यों को कोर्ट की चेतावनी
सुप्रीम कोर्ट ने सीनियर एडवोकेट शादन फरासत (Amicus Curiae) से इस कानून के क्रियान्वयन पर विस्तृत रिपोर्ट मांगी है और साफ कहा है कि इस मामले में ठोस कार्रवाई होनी चाहिए. अदालत ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को भी आदेश दिया है कि वे 2018 से अब तक झूठे मेडिकल विज्ञापनों पर की गई कार्रवाई की रिपोर्ट सौंपें.
क्या है ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज एक्ट?
1954 में बने इस कानून के तहत ऐसे किसी भी उत्पाद के विज्ञापन पर प्रतिबंध है जो झूठे दावे करता हो, जैसे -
इस कानून का पालन न करने पर जुर्माना और जेल की सजा दोनों हो सकती है, लेकिन आज तक इसे सख्ती से लागू नहीं किया गया है. अब सुप्रीम कोर्ट के सख्त रुख से उम्मीद है कि यह कानून प्रभावी तरीके से लागू होगा.
किन राज्यों को सुप्रीम कोर्ट ने किया तलब?
सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, पुडुचेरी और पंजाब से पूछा कि उन्होंने अब तक इस कानून के उल्लंघन पर क्या कदम उठाए हैं.
आंध्र प्रदेश पर कोर्ट ने दिखाई सख्ती!
आंध्र प्रदेश सरकार ने कोर्ट से "थोड़ी नरमी" बरतने की अपील की, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा, “हम नरमी तभी दिखाते जब आपने कानून का पालन किया होता! 10 फरवरी को आदेश दिया गया था, लेकिन अब तक कोई रिपोर्ट दाखिल नहीं हुई.”
अगर आपको कोई भ्रामक मेडिकल विज्ञापन दिखे, तो इसे नजरअंदाज न करें! जल्दी ही सरकार एक हेल्पलाइन नंबर जारी कर सकती है, जहां आप ऐसे मामलों की शिकायत कर सकेंगे.