संविधान की प्रस्तावना से दो शब्द 'धर्मनिरपेक्ष' और 'समाजवादी' हटाने की मांग की गई है. इन दो शब्दों को हटाने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है. इस याचिका पर आज यानी 13 अगस्त को होने वाली सुनवाई टल गई है. कोर्ट ने कहा कि अगली तारीख पर कोई स्थगन नहीं दिया जाएगा और मामले की सुनवाई की जाएगी.
याचिकाकर्ता का तर्क है कि ये शब्द संविधान से मूल सिद्धांतों को नहीं दर्शाते हैं. याचिकाकर्ता ने स्पष्टता और व्यावहारिकता बढ़ाने के लिए इन शब्दों को हटाने का सुझाव दिया है. हालांकि इस सुझाव का विरोध करने वालों का कहना है कि ये शब्द भारतीय संविधान की पहचान हैं. सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता ने 42वें संविधान संशोधन की चुनौती दी है. इसी संशोधन के जरिए संविधान की प्रस्तावना में ये दोनों शब्द जोड़े गए थे.
दायर याचिका में क्या है-
पूर्व राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने संविधान की प्रस्तावना से धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्द हटाने की मांग की है. स्वामी ने संविधान की प्रस्ताव में धर्मनिरेपक्ष और समाजवादी शब्द जोड़ने की वैधता को चुनौती दी है. उनका तर्क है कि 42 वां संशोधन संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत संसद की शक्ति से परे है. संसद इस तरह का संशोधन नहीं कर सकती है. याचिकाकर्ता का दावा है कि संविधान निर्माताओं का कभी भी लोकतांत्रिक शासन में इन दोनों शब्दों को रखने का इरादा नहीं था.
कैसे जोड़ा गया था धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्द-
साल 1976 में संविधान के 42वें संशोधन के जरिए संविधान की प्रस्तावना में बदलाव किया गया था. इस संशोधन के जरिए प्रस्तावना में धर्मनिरेपक्ष और समाजवादी शब्द जोड़ा गया था. संशोधन के बाद प्रस्तावना में भारत के विवरण को संप्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्य से बदलकर संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य कर दिया गया था.
क्या था 42वां संविधान संशोधन-
संविधान की प्रस्तावना को उसकी आत्मा कहा जाता है. इसे मिनी कॉन्टीट्यूशन भी कहा जाता है. आपातकाल के दौरान साल 1976 में इंदिरा गांधी की सरकार ने 42वां संविधान संवैधानिक किया. इस संविधान संशोधन के जरिए प्रस्तावना में 3 नए शब्द जोड़े गए थे. इसमें धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी और अखंडता जोड़ा गया था. इसके साथ ही संविधान में 10 मौलिक कर्तव्यों को भी शामिल किया गया था.
समाजवादी शब्द जोड़ने के पीछे संविधान की मूल भावना को आधार बनाया गया. क्योंकि भारत ने लोकतांत्रिक समाजवाद को अपनाया है. धर्मनिरपेक्ष शब्द जोड़ने के पीछे तर्क था कि देश का कोई धर्म नहीं है, यह देश सभी धर्मों का समान तौर पर आदर करता है. 42वें संविधान संशोधन की सबसे अहम बात ये थी कि किसी भी आधार पर संसद के फैसले को कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती थी.
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