न्यायपालिका के इतिहास में नए अध्याय का पहला पन्ना शनिवार चार फरवरी को लिखा जाएगा जब अपनी स्थापना के 73 वें साल में सुप्रीम कोर्ट अपना स्थापना दिवस सेलिब्रेट करेगा. चार फरवरी को होने वाले स्थापना दिवस समारोह में सिंगापुर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सुंदरेश मेनन मुख्य अतिथि के तौर पर भाषण देंगे. भाषण का विषय होगा - बदलती दुनिया में न्यायपालिका की भूमिका (The role of judiciary in a changing world).
इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज है कि ब्रिटिश राज में 1 अक्टूबर 1937 को फेडरल कोर्ट ऑफ इंडिया के तौर पर भारत में सबसे ऊंचे अपीलीय कोर्ट की नींव पड़ी. आजादी मिलने के बाद भारतीय गणतंत्र की घोषणा के दो दिन बाद 28 जनवरी 1950 को अस्तित्व में आया.
26 जनवरी 1950 को सुप्रीम कोर्ट की घोषणा और संविधान से मंजूरी मिली और दो दिन बाद 28 जनवरी 1950 को अस्तित्व में आया सुप्रीम कोर्ट. भारत के संघीय न्यायालय और प्रिविपर्स काउंसिल का विलय कर सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया यानी भारत का सर्वोच्च न्यायालय बना. संसद भवन के क्वींस कोर्ट में सुबह पौने दस बजे सुप्रीम कोर्ट का पहला इजलास हुआ. तो चलिए आपको सुप्रीम कोर्ट की शुरुआत से लेकर अब तक की पूरी कहानी विस्तार से बताते हैं.
कौन था सुप्रीम कोर्ट का पहला जज?
भारत में सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था साल 1744 में शुरू हुई. जब कोलकाता (तब के कलकत्ता) में सुप्रीम कोर्ट ऑफ ज्यूडिक्चर एट फोर्ट विलियम (Supreme Court of Judicature at Fort William) की स्थापना हुई. रेगुलेटिंग एक्ट 1773 के अंतर्गत ये कोर्ट उस वक्त ब्रिटिश इंडिया का सबसे बड़ा कोर्ट था. जिस वक्त Sir Elijah Impey को पहला चीफ जस्टिस बनाया गया.
कोलकाता में बना था था पहला हाईकोर्ट
उस दौर में फोर्ट विलियम कोर्ट ही सुप्रीम कोर्ट माना जा रहा था लेकिन तब इसका दर्जा इस्ट इंडिया कंपनी के कोर्ट के तौर पर ही किया जाता था. उस वक्त भारत में केवल दो ही कोर्ट हुआ करती थीं. पहली थीं कंपनी कोर्ट ओर दूसरी राजा कोर्ट. लेकिन साल 1861 में इंडियन हाई कोर्ट एक्ट के दस्तक देने के बाद ये खत्म हो गया. दरअसल 1857 की क्रांति से पहले भारत के अधिकतर भागों पर ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन था. लेकिन विद्रोह के बाद ब्रिटिश सरकार ने कंपनी को भंग कर दिया और भारत में महारानी का शासन शुरू कर दिया. अब महारानी के शासन के साथ कई चीजें बदली और इसका बड़ा असर न्यायिक प्रणाली पर भी पड़ा. सुप्रीम कोर्ट ऑफ ज्यूडिक्चर एट फोर्ट विलियम' को हटाकर देश का पहला हाईकोर्ट, कोलकता (तब के कलकत्ता) में स्थापित किया गया.
जब बॉम्बे और मद्रास में भी बना हाईकोर्ट
कलकत्ता हाईकोर्ट के साथ बॉम्बे और मद्रास में भी हाईकोर्ट की स्थापना की गई. कहा जाता है कि सर्वोच्च न्यायालय की अवधारणा भी यहां से शुरू हुई. हाईकोर्ट की स्थापना का विधेयक पेश करने के समय सर चार्ल्स वुड ने ब्रिटिश संसद में कहा था कि संपूर्ण देश में केवल एक सर्वोच्च न्यायालय होगा.
जब दिल्ली चला आया सुप्रीम कोर्ट
साल 1931 में जब राजधानी कलकत्ता से उठकर दिल्ली पहुंची और ब्रिटिश शासन में बदलाव हुआ, तो सुप्रीम कोर्ट भी दिल्ली पहुंच गया. फिर साल 1935 में गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट पारित हुआ. इसके बाद फेडरल कोर्ट ऑफ इंडिया की स्थापना की गई. असली सुप्रीम कोर्ट की रूपरेखा यहीं से तैयार हुई. आर्किटेक्ट सर हरबर्ट बेकर और सर एडविन लुटियंस की बनाई दिल्ली में इस कोर्ट की स्थापना 1937 में की गई. फेडरल कोर्ट ऑफ इंडिया का कामकाज संसद भवन के चेंबर ऑफ प्रिंसेस में किया जाता था. 1 अक्टूबर को जब कोर्ट ने काम शुरू किया, तब Sir Maurice Gwyer को पहला चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया चुना गया. उनके साथ सर मो. सुलेमान और एम.आर. जया कर को भी जज नियुक्त किया गया. हालांकि उस कोर्ट के फैसलों के खिलाफ लंदन के ज्यूडिशियल कमेटी ऑफ प्रिवी काउंसिल में अपील किया जा सकता था.
आजादी के बाद हुई कोर्ट का बंटवारा
पाकिस्तान के कराची में फेडरल कोर्ट की स्थापना की गई. आजादी के बाद कोर्ट का भी बंटवारा हुआ. इसके बाद कराची की फेडरल कोर्ट का नाम बदलकर सुप्रीम कोर्ट ऑफ पाकिस्तान कर दिया गया, और इसे कराची से हटाकर इस्लामाबाद में शिफ्ट कर दिया गया.
और ऐसे बना सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया...
26 जनवरी का 1950 को फेडरल कोर्ट बदलकर देश का सबसे बड़ा न्यायालय, सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया बन गया. अस्तित्व में आने के 2 दिन बाद यानी 28 जनवरी से सुप्रीम कोर्ट ने काम करना शुरू किया. हीरालाल जे कानिया देश के पहले चीफ जस्टिस बने. 1958 में सुप्रीम कोर्ट को शिफ्ट करके संसद भवन परिसर से नई दिल्ली के तिलक मार्ग पर लाया गया.