तेलंगाना का एक किसान, अपने दो एकड़ के खेत में एप्पल बेर यानी थाई एप्पल की फसल उगाकर अच्छा पैसा कमा रहा है. यह कहानी है बी चंद्रमौली मायावी की. खेती शुरु करने से पहले चंद्रमौली एक छोटा-सा बिजनेस करते थे लेकिन जब इसमें उन्होंने ज्यादा सफलता नहीं मिली तो उन्होंने कृषि में हाथ आजमाने का फैसला किया.
पहले उन्होंने मकई के साथ प्रयोग किया लेकिन ज्यादा पैसा नहीं कमा सके. इसके बाद उन्हें एक कृषि प्रोग्राम से थाई एप्पल की खेती करने की प्रेरणा मिली. चंद्रमौली जो हसनाबाद और सिद्दीपेट से आते हैं, आश्वस्त थे कि यह वह फसल है जिसकी उन्हें तलाश थी और उन्होंने ज्यादा समय बर्बाद नहीं किया. उन्होंने थाई एप्पल के पौधे खरीदने के लिए रिसर्च शुरु की.
डेढ लाख लगाकर कमाए 4 लाख रुपए
उनकी खोज उन्हें खम्मम जिले तक ले गई. उन्होंने 1,000 रुपये के हिसाब से करीब 2,000 पौधे खरीदे और उन्हें अपने खेत में लगाया. वह कहते हैं कि उन्हें अपने खेत में पौधों को लगाने के लिए परिवहन और गड्ढे खोदने के लिए प्रति पौधे लगभग 150 रुपये खर्च करने पड़ते थे.
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, उन्होंने लगभग 1.5 लाख रुपये खर्च किए और इस फसल से उन्हें 4 लाख रुपये का रिटर्न मिला. वह बताते हैं कि जब वे सेब लेकर बाजार गए तो उन्हें 100 रुपये प्रति किलो कीमत मिली. चंद्रमौली कहते हैं कि थाई एप्पल स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है क्योंकि इसमें विटामिन सी होता है. ऊपर से फल का स्वाद अच्छा होता है.
एक पेड़ पर आता है 15-30 किलो फल
चंद्रमौली का कहना है कि जिन लोगों ने उनसे थाई एप्पल खरीदा है, वे उन्हें ऑर्डर के लिए बार-बार फोन कर रहे हैं. वह कहते हैं और सुझाव देते हैं कि किसानों को पारंपरिक फसलों की खेती करने की बजाय वैकल्पिक फसलों पर अधिक ध्यान केंद्रित करना चाहिए.
उन्होंने आगे कहा कि वह थाई एप्पल के पेड़ों की टॉप पर से नियमित कटाई करते रहते हैं ताकि पेड़ बहुत लंबे न हों और फलों को आसानी से हार्वेस्ट करना आसान हो. हर साल दिसंबर से फरवरी के अंत तक फलों को तोड़कर बेचा जाता है. एक पौधे में करीब 15 से 30 किलो फल लगते हैं। इस तरह उपज 30 क्विंटल प्रति एकड़ होती है. कटाई के बाद, पौधों को
टॉप पर से काटा जाता है, ताकि वे फिर से बढ़ें और फल दें.
बागवानी है अच्छा विकल्प
चंद्रमौली कहते हैं कि एक बार पौधे लगाने के बाद किसान को सालों तक पौधों की देखभाल करनी होती है क्योंकि उन्हें बदलने की कोई जरूरत नहीं होती है. जैसे ही उन्होंने जैविक खेती पद्धति का उपयोग करके फसल लगाई, ग्राहक उनके खेत में आकर उनसे फल खरीदने लगे. उनका कहना है कि उनके अनुभव ने यह साबित कर दिया है कि पारंपरिक फसलों की तुलना में बेहतर रिटर्न पाने के लिए बागवानी बेहतर है.