Lok Sabha Speaker: 26 जून को लोकसभा अध्यक्ष का होगा चुनाव, जानिए अब तक कौन-कौन हुए हैं स्पीकर

Lok Sabha Speaker Election: 18वीं लोकसभा का पहला सत्र 24 जून से शुरू होगा और 3 जुलाई तक चलेगा. अध्यक्ष का चुनाव 26 जून को होगा. लोकसभा के पहले स्पीकर गणेश वासुदेव मावलंकर थे. जबकि लोकसभा की पहली महिला स्पीकर मीरा कुमार रहीं. साल 1998 में लोकसभा के स्पीकर के पद पर पहली बार जीएमसी बालयोगी के तौर पर दलित समुदाय का अध्यक्ष मिला.

Lok Sabha
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 14 जून 2024,
  • अपडेटेड 1:10 PM IST

लोकसभा चुनाव 2024 के खत्म होने के बाद नरेंद्र मोदी तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बन गए हैं. मंत्रियों को मंत्रालय भी बांट दिए गए हैं. अब सबकी नजर लोकसभा स्पीकर के चुनाव पर टिकी हैं. 26 जून को लोकसभा को नया स्पीकर मिल जाएगा. लोकसभा स्पीकर से दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सदन के संचालन की अपेक्षा की जाती है. माना जाता है कि जो भी स्पीकर चुना जाता है, वो पार्टी के हित-अहित की जगह संसद की मर्यादा का रक्षक बन जाता है. चलिए आपको बताते हैं कि कब कौन स्पीकर रहा और उनका कार्यकाल कैसा रहा?

देश के पहले लोकसभा स्पीकर-
साल 1952 आम चुनाव के बाद पहली लोकसभा के स्पीकर के लिए कांग्रेस के लीडर गणेश वासुदेव मावलंकर को चुना गया था. उनका चुनाव निर्विरोध हुआ था. लेकिन 4 साल बाद साल 1956 में  उनका निधन हो गया. मावलंकर की जगह अनंतशयनम अयंगार को स्पीकर चुना गया. साल 1957 आम चुनाव में फिर से कांग्रेस सत्ता में आई और अयंगार को फिर से लोकसभा का अध्यक्ष निर्विरोध चुना गया.

सरदार हुकुम सिंह-
साल 1962 आम चुनाव के बाद लोकसभा में सरदार हुकुम सिंह को स्पीकर चुना गया. हुकुम सिंह 17 मार्च 1962 से 16 मार्च 1967 तक स्पीकर रहे. उन्होंने एलएलबी की पढ़ाई की. उनका जन्म पाकिस्तान के हिस्से वाले सहिवाल जिले के मोंटगोमरी में हुआ था. लोकसभा स्पीकर के तौर पर हुकुम सिंह ने हमेशा सुनिश्चित किया कि सदन में मर्यादा और अनुशासन बना रहे. साल 1962 में चीनी आक्रमण के बाद सदन में बहसों के दौरान मर्यादा बनाए रखी.

नीलम संजीव रेड्डी-
साल 1977 में चौथी लोकसभा चुनाव के बाद नीलम संजीव रेड्डी को लोकसभा का स्पीकर निर्विरोध चुना गया. रेड्डी 17 मार्च 1967 से 19 जुलाई 1969 तक स्पीकर रहे. इस दौरान लोकसभा में विपक्ष भी मजबूत था. साल 1969 में रेड्डी को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया गया. इसके बाद उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया.

नीलम संजीव रेड्डी छठी लोकसभा चुनाव के बाद भी लोकसभा के स्पीकर चुने गए थे. जनता पार्टी की तरफ रेड्डी का नाम प्रस्तावित किया गया था और वो निर्विरोध चुने गए थे. लेकिन इस बार भी वो सिर्फ 4 महीने इस पद पर रहे. इसके बाद जुलाई 1977 में वो राष्ट्रपति चुने गए. इस बार रेड्डी 26 मार्च 1977 से 13 जुलाई 1977 तक स्पीकर रहे.

गुरुदयाल सिंह ढिल्लों-
नीलम संजीव रेड्डी की जगह गुरुदयाल सिंह ढिल्लों को स्पीकर चुना गया. ढिल्लों 5वीं लोकसभा में भी स्पीकर रहे. वो 8 अगस्त 1969 से एक दिसंबर 1975 तक स्पीकर रहे. हालांकि जब उनको केंद्रीय कैबिनेट में शामिल किया गया तो उन्होंने स्पीकर का पद छोड़ दिया.

बलिराम भगत-
स्पीकर के पद से जीएस ढिल्लों के इस्तीफे के बाद उनकी जगह बलिराम भगत को लोकसभा का स्पीकर चुना गया. वो 15 जनवरी 1976 से 25 मार्च 1977 तक स्पीकर रहे. बलिराम भगत विदेश मंत्री भी रहे और राजस्थान के राज्यपाल भी रहे.

केएस हेगड़े-
छठी लोकसभा चुनाव के बाद नीलम संजीव रेड्डी को स्पीकर चुना गया था. लेकिन जब वो राष्ट्रपति चुने गए तो उनकी जगह केएस हेगड़े को लोकसभा अध्यक्ष बनाया गया. हेगड़े सुप्रीम कोर्ट के न्यायादीश रहे थे. उनका कार्यकाल काफई चुनौती भरा रहा. लेकिन उनकी भूमिका निर्विवाद रही. छठी लोकसभा समय से पहले ही भंग हो गई और साल 1980 में मध्यावधि चुनाव हुए.

10 साल तक बलराम जाखड़ रहे स्पीकर-
7वीं लोकसभा चुनाव के बाद साल 1980 में बलराम जाखड़ को लोकसभा का अध्यक्ष चुना गया. जाखड़ इस पद पर 8वीं लोकसभा में भी बने रहे. वो 10 साल से स्पीकर रहे. उनका कार्यकाल 22 जनवरी 1980 से 18 दिसंबर 1989 तक रहा. इस दौरान कई बार उनपर पक्षपात के आरोप लगे.

रवि राय-
साल 1989 में 9वीं लोकसभा अस्तित्व में आई. ये समय गठबंधन की सियासी का दौर था. केंद्र में गठबंधन की सरकार बनी और समाजवादी लीडर रवि राय का नाम स्पीकर के लिए जनता दल की तरफ से आगे बढ़ाया. इसके बाद उनका निर्विरोध चुनाव हुआ. उनका कार्यकाल काफी छोटा रहा. लेकिन काफी चुनौतीपूर्ण था. उनका कार्यकाल 19 दिसंबर 1989 से 9 जुलाई 1991 तक रहा.

शिवराज पाटिल-
साल 1991 में देश में फिर से मध्यावधि चुनाव हुए और 10वीं लोकसभा का गठन हुआ. इसके बाद कांग्रेस की तरफ से शिवराज पाटिल का नाम स्पीकर के लिए आगे बढ़ाया गया और उनका चुनाव निर्विरोध हुआ. पाटिल का कार्यकाल 10 जुलाई 1991 से 22 मई 1996 तक रहा. पाटिल पंजाब के राज्यपाल और देश के गृहमंत्री रहे.

पीए संगमा-
साल 1996 में 11वीं लोकसभा चुनाव के बाद केंद्र में गठबंधन की सरकार बनी. कांग्रेस ने सरकार को बाहर से समर्थन दिया था. इस बार लोकसभा स्पीकर का पद कांग्रेस के खाते में चला गया. कांग्रेस के आदिवासी लीडर पीए संगमा लोकसभा के अध्यक्ष चुने गए. वो 2 साल तक इस पद पर रहे. उसके बाद लोकसभा भंग हो गई. उनका कार्यकाल 25 मई 1996 से 23 मार्च 1998 तक रहा.

पहले दलित स्पीकर जीएमसी बालयोगी-
साल 1998 में 12वीं लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी की सरकार बनी. बीजेपी ने स्पीकर का पद सहयोगी पार्टी टीडीपी को दे दिया. जीएमसी बालयोगी निर्विरोध स्पीकर चुने गए. बालयोगी दलित समुदाय से आते थे और पहली बार इस समुदाय का स्पीकर बना था.

एक साल के बाद अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार एक वोट से गिर गई. इस दौरान बालयोगी अपने वोट का इस्तेमाल करके सरकार बचा सकते थे. लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. साल 1999 में मध्यावधि चुनाव के बाद 13वीं लोकसभा के लिए एक बार फिर बालयोगी को स्पीकर चुना गया. लेकिन इस बार भी वो अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए. मार्च 2002 में प्लेन हादसे में उनकी मृत्यु हो गई.

शिवसेना के मनोहर जोशी बने स्पीकर-
जीएमसी बालयोगी की जगह शिवसेना से आने वाले मनोहर जोशी को लोकसभा का अध्यक्ष चुना गया. जोशी का कार्यकाल 10 मई 2002 से 2 जून 2004 तक रहा. जोशी साल 1995 से 1999 तक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री भी रहे.

वामपंथी लीडर सोमनाथ चटर्जी-
साल 2004 में 14वीं लोकसभा के चुनाव हुए और कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए की सरकार बनी. कांग्रेस ने स्पीकर का पद सहयोगी पार्टी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) को सौंप दिया. सोमनाथ चटर्जी स्पीकर चुने गए. संसदीय इतिहास में पहली बार कोई वामपंथी लीडर स्पीकर बना था. उनका कार्यकाल 4 जून 2004 से 30 मई 2009 तक रहा. उनका कार्यकाल गरिमामयी रहा.

मीरा कुमार-
साल 2009 में 15वीं लोकसभा में फिर से कांग्रेस को जीत मिली. मीरा कुमार के तौर पर लोकसभा को पहली महिला स्पीकर मिली. उनका कार्यकाल काफी चुनौती भरा रहा. विपक्ष ने उनपर पक्षपात के आरोप लगाए. उनका कार्यकाल 4 जून 2009 से 4 जून 204 तक रहा.

सुमित्रा महाजन-
साल 2014 आम चुनाव के बाद 16वीं लोकसभा के लिए सुमित्रा महाजन को स्पीकर चुना गया. उनका कार्यकाल 6 जून 2014 से 17 जून 2019 तक रहा. इस दौरान विपक्ष ने सुमित्रा महाजन पर कई बार पक्षपात के आरोप लगाए. सुमित्रा महाजन 8 बार लोकसभा सदस्य चुनी गईं.

ओम बिरला-
 साल 2019 में आम चुनाव के बाद 17वीं लोकसभा के लिए ओम बिरला को अध्यक्ष चुना गया. उनका कार्यकाल 19 जून 2019 से अब तक है. ओम बिरला राजस्थान के रहने वाले हैं. वो सांसद के साथ विधायक भी रह चुके हैं.

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