उत्तर प्रदेश में धार्मिक कानूनी लड़ाई के तीन प्रमुख मामले राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद, काशी विश्वनाथ-ज्ञावापी और कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद मामले हैं. इन मामलों में कोर्ट में हिंदू पक्ष का प्रतिनिधित्व एक पिता-पुत्र की जोड़ी कर रही है. ये जोड़ी 78 साल के हरिंशकर जैन और 38 साल के विष्णुशंकर जैन की है. दोनों ने हिंदू पूजा स्थलों से जुड़े 100 से अधिक मामलों में कानूनी सलाह दी है.
फ्री में लड़ते हैं धार्मिक कानूनी लड़ाई-
हरिशंकर जैन ने साल 1978-79 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में कानूनी प्रैक्टिस शुरू की थी. हालांकि बाद में वे सुप्रीम कोर्ट में शिफ्ट हो गए. हरिशंकर जैन मूल रूप से प्रयागराज के रहने वाले हैं. अब उनकी फैमिली दिल्ली में रहती है. हरिशंकर जैन को हिंदू समुदाय के हित में काम करने की प्रेरणा अपनी मां से मिली.
पिता ने 2 दिन तक नहीं खाया था खाना-
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक हरिशंकर जैन बताते हैं कि मेरे पिता नेम चंद्र जैन जुडिशियल सर्विस में थे. लेकिन वो इसके खिलाफ थे. वो चाहते थे कि मैं हाई कोर्ट में जज बनूं. उन्होंने बताया कि जब मैंने राम जन्मभूमि मामले में पैरवी करने का फैसला किया तो मेरे पिता ने दो दिन तक खाना नहीं खाया. लेकिन भाग्य को जैसा मंजूर था, मैंने अपनी मां के दिखाए रास्ते को चुना.
साल 1989 में जब हरिशंकर जैन अयोध्या विवाद में हिंदू महासभा के वकील बने तब उनको राष्ट्रीय पहचान मिली. उसके बाद से अब तक पिता-पुत्र की जोड़ी ने हिंदू धर्म से जुड़े 100 से अधिक मामलों में कानूनी सलाह दी है.
साल 2016 में विष्णु शंकर ने शुरू की थी वकालत-
हरिशंकर जैन के बेटे विष्णु शंकर जैन ने साल 2016 में वकालत शुरू की. उन्होंने अपने कानूनी करियर की शुरुआत अयोध्या विवाद से की. हरिशंकर जैन के मुताबिक उनके बेटे ने समुदाय से जुड़े मामलों को नतीजों तक पहुंचाने का वादा किया है, भले ही ये उसके पिता के जीवन के बाद हो. पिता-पुत्र की ये जोड़ी हिंदू हितों से जुड़े मामलों में अपनी सेवाएं देने के लिए कोई भी फीस नहीं लेते हैं. दूसरे कानूनी मामलों की कमाई से अपनी जरूरतों को पूरा करते हैं. हरिशंकर जैन का कहना है कि जिस दिन हम अपनी सेवाओं के बदले पैसे लेने या किसी पद की लालसा रखेंगे, उस दिन हिंदू कल्याण का मूल मकसद विफल हो जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले का समाधान कर दिया है. अब पिता-पुत्र की जोड़ी ने वाराणसी काशी विश्वनाथ-ज्ञावापी विवाद और मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद पर अपना ध्यान केंद्रित किया है.
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