थर्मल पावर प्लांट दिल्ली की हवा में जहर घोल रहे हैं. सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट ने एक स्टडी में पाया कि एनसीआर के 11 थर्मल पावर प्लांट्स दिल्ली-एनसीआर में 8 फीसदी पॉल्यूशन के लिए जिम्मेदार हैं. इस स्टडी को कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांट्स से निकलने वाले नाइट्रोजन, ऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड पर फोकस किया गया था.
पॉल्यूशन के लिए थर्मल पावर प्लांट भी जिम्मेदार-
स्टडी के मुताबिक दिल्ली-एनसीआर में पीएम 2.5 पॉल्यूशन में थर्मल पावर प्लांट का हिस्सा 8 फीसदी है. यह स्टडी सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी की वेबसाइट से मिले प्लांट्स की एनवायरमेंट स्टेटस रिपोर्ट पर आधारित है. इस स्टडी में अप्रैल 2022 से अगस्त 2023 तक का डेटा लिया गया था. रिपोर्ट के मुताबिक ये प्लांट्स मानदंडों पालन नहीं कर रहे थे और दिल्ली-एनसीआर में पॉल्यूशन को खराब कर रहे थे. सीएसई में रिसर्च एंड एडवोकेसी की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉय चौधरीने कहा कि अगर थर्मल पावर प्लांट जैसे प्रदूषक के स्रोत इतने उच्च स्तर पर पॉल्यूशन फैलाएंगे तो दिल्ली-एनसीआर स्वच्छ वायु के मानदंड और जन स्वास्थ्य की रक्षा के अपने टारगेट को हासिल नहीं कर पाएंगे.
बार-बार बढ़ाई गई समय सीमा-
स्टडी में बताया गया है कि मानदंडों को पूरा करने की समय सीमा को बार-बार बढ़ाने और उत्सर्जन मानकों में ढील देने से इलाके में एयर क्वालिटी पर असर पड़ा है. दिल्ली-एनसीआर के 300 किलोमीटर के दायरे में 33 इकाइयों वाले 11 कोयला आधारित प्लांट हैं. मंत्रालय ने दिसंबर 2015 में कोयला आधारित प्लांट के लिए सख्त मानक लागू किए गए थे. लेकिन इसकी समय सीमा में बदलाव किया गया. पिछले साल इसकी तिथि दिसंबर 2024 से बढ़ाकर दिसंबर 2026 कर दी गई थी. नई समय सीमा के मुताबिक 4 प्लांट्स को छोड़कर 7 को दिसंबर 2026 तक मानदंडों का पालन करना है.
जरूरत से ज्यादा उत्सर्जन कर रहे प्लांट्स-
रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्सर्जन मानदंडों को लेकर नोटिफिकेशन जारी होने के 8 साल और पहली डेडलाइन के 6 साल बाद एनसीआर के 3 प्लांट अभी भी सस्पेंडेंड पर्टिकुलेट मैटर का उत्सर्जन कर रहे हैं. इसमें हरदुआगंज, पानीपत और गुरु हरगोबिंद थर्मल पावर प्लांट शामिल हैं.
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