Bidri Craft: बिदरी कला के लिए इस मशहूर आर्टिस्ट को मिला पद्मश्री, जानिए 14वीं सदी में जन्मी इस अनोखी कला के बारे में

हाल ही में, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने पद्म पुरस्कार विजेताओं को सम्मानित किया. इन विजेताओं में पद्म श्री पाने वाले, बिदरी शिल्प कलाकार, शाह रशीद अहमद कादरी भी शामिल थे.

Bidri craft artist Shah Rashid Ahmed Quadari (Photo: Twitter)
निशा डागर तंवर
  • नई दिल्ली ,
  • 06 अप्रैल 2023,
  • अपडेटेड 4:15 PM IST
  • 14वीं शताब्दी में जन्मी थी बिदरी कला
  • बिदरी कला को आगे बढ़ा रहे हैं कादरी  

हाल ही में, राष्ट्रपति भवन में पद्म पुरस्कारों से विजेताओं को नवाजा गया. इस मौके पर महामहिम राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और भी कई बड़ी नामी हस्तियां मौजूद थीं. हालांकि, इस आयोजन का सबसे खास पल वह रहा जब कर्नाटक के एक अनुभवी शिल्पकार की मुलाकात पीएम मोदी से हुई. 

पद्म श्री से सम्मानित हुए बिदरी शिल्प कलाकार शाह रशीद अहमद कादरी ने पीएम मोदी से कहा, "आपने मुझे गलत साबित कर दिया." दरअसल, उन्हें विश्वास था कि भाजपा सरकार के शासन में उन्हें पद्म सम्मान नहीं मिलेगा. वह कई बार पद्म पुरस्कार के लिए आवेदन कर चुके थे. उन्हें यूपीए सरकार में भी पद्म पुरस्कार नहीं मिला. 

ऐसे में, बीजेपी सरकार के शासन में पद्म श्री मिलने की उन्हें कोई उम्मीद नहीं थी. लेकिन इस साल उन्हें पद्म श्री से नवाजा गया. इसलिए उन्होंने पीएम से कहा कि आपने मुझे गलत साबित कर दिया. प्रधानमंत्री ने उनकी इस बात का जवाब नमस्ते और मुस्कान के साथ दिया.

कौन हैं शाह रशीद अहमद कादरी
5 जून, 1955 को कर्नाटक के बीदर में जन्मे शाह राशिद अहमद कादरी बिदरी कारीगरों के परिवार से हैं. इस कारण कादरी छोटी उम्र से ही इस कला को जानने लगे थे और उन्होंने अपने पिता शाह मुस्तफा कादरी से प्रशिक्षण लिया. कादरी को कम उम्र से ही काम में अपने पिता की मदद करनी पड़ी क्योंकि उनके पिता घर में अकेले कमाने वाले थे. 

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, उनके पिता नहीं चाहते थे कि कादरी ये काम करें क्योंकि इसमें ज्यादा पैसा नहीं था. हालांकि, कादरी ने जब क्राफ्ट करना शुरू किया तो उन्होंने अपने पिता के पारंपरिक डिजाइनों में सुधार किया. इसके लिए उन्हें बहुत प्रोत्साहन मिला. प्रशिक्षण की लंबी अवधि के बाद, उन्होंने 1970 में स्वतंत्र रूप से काम करना शुरू किया और विभिन्न अनूठे पैटर्न पेश किए. 

कादरी ने अपने काम में विभिन्न बिदरीवेयर तकनीकों और पैटर्न के साथ प्रयोग किया है. उन्होंने फूलझड़ी डिजाइन की शुरुआत की और बहमनी साम्राज्य में दरबारी कलाकारों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली एक पुरानी तकनीक, शीट-वर्क को फिर से पेश किया.  उन्होंने दूसरे लोगों के प्रशिक्षण भी दिया है. 

14वीं शताब्दी में जन्मी थी बिदरी कला
बिदरीवेयर एक प्रसिद्ध धातु हस्तकला है जिसका नाम बीदर से लिया गया है, जो वर्तमान में कर्नाटक में है. ऐसा माना जाता है कि इसकी उत्पत्ति 14वीं शताब्दी ईस्वी में बहमनी सुल्तानों के शासनकाल के दौरान हुई थी. इसलिए 'बिदरीवेयर' शब्द एक मतलब एक अनोखे धातु के बर्तन के निर्माण से है जिस पर एक खास तरह की कारीगरी की जाती है. इस खास कारीगरी से बने बर्तन या दूसरे वेसल को बिदरीवेयर कहते हैं और यह नाम बीदर क्षेत्र के नाम पर रखा गया है. 

हालांकि, बताया जाता है कि बिदरी की सुंदर शिल्पकला का उद्गम फारस में हुआ था और इसका विकास बीदर में हुआ. बिदरी आर्ट फॉर्म को "कोफ्तागिरी" के रूप में जाना जाता है - यह अलंकरण की एक तकनीक है जिसमें लोहे की वस्तुओं पर सोने या चांदी की परत चढ़ी होती है. बिदरी में, जस्ता और तांबे के मिश्र धातु से बनी वस्तुओं को सजाने के लिए चांदी, सोना या पीतल को मढ़ा या जड़ा जाता है. 

दक्खन क्षेत्र में बहमनी (1347-1527 ई.) और बारिदी (1489-1619 ई.) सल्तनत शासन के दौरान इस कला का विकास हुआ. बीदर अलग-अलग समय में इन सल्तनतों का हिस्सा था जहां कला का विकास हुआ. फारस में अब्बासिद काल (750-1258 A.D) के दौरान, शाही सुल्तानों के महलों और व्यापारियों के घरों में तांबे की जड़ाई की वस्तुओं का उपयोग किया जाता था. यह तकनीक समय के साथ सोने और चांदी की जड़ाई के काम को शामिल करने के लिए बहुत लोकप्रिय हो गई 

क्या है बिदरीवेयर बनाने की प्रकिया
सबसे पहले जस्ता, तांबा और सीसा के एक मिश्र धातु से बर्तन या सजावट का कोई गुलदस्ता आदि बनाया जाता है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, इसमें जिंक और कॉपर का मिश्रण 16:1 के अनुपात में होता है. जिंक को बेहतर पॉलिश करने के लिए कॉपर मिलाया जाता है. बिदरीवेयर बनाने की प्रक्रिया में मिश्र धातु को ढालना, पॉलिश करना, उत्कीर्ण (एन्ग्रेविंग) करना, जड़ना और काला करना शामिल है. 

सबसे पहले धातुओं पर सुंदर डिजाइन उकेरे जाते हैं, और उसके बाद जस्ता आधारित धातु पर पतले चांदी के तारों को हाथ से उकेरा जाता है. इसके बाद इसे केवल बीदर किले के आसपास उपलब्ध मिट्टी से तैयार घोल में डुबोया जाता है. बीदर के किले में पाई जाने वाली मिट्टी में ऑक्सीडाइजिंग गुण होता है. यह जस्ता, एक सफेद धातु को काले बर्तन में बदल देता है, जबकि शुद्ध चांदी की जड़ाई अपने मूल रंग को बरकरार रखती है. और इस तरह फाइनल प्रोडक्ट किसी जादू से कम नहीं होता. हैदराबाद के सालार जंग संग्रहालय में आपको बिदरी कला का अद्भुत संग्रह देखने को मिलता है.

बिदरी कला को आगे बढ़ा रहे हैं कादरी  
कादरी को उनके काम के लिए 1984 में कर्नाटक राज्य पुरस्कार, 1988 में एक राष्ट्रीय पुरस्कार, 1996 में जिला राज्योत्सव पुरस्कार, 2004 में ग्रेट इंडियन अचीवर्स अवार्ड और 2006 में स्वर्ण कर्नाटक राज्योत्सव पुरस्कार सहित कई पुरस्कार मिले. हाल ही में, उन्हें शिल्प गुरु सम्मान से सम्मानित किया गया था.

कादरी ने कई देशों में अपने कार्यों का प्रदर्शन किया. इनमें 1987 में बोस्टन, यूएसए में विज्ञान संग्रहालय में आयोजित भारत का विज्ञान महोत्सव और 1992 में हॉलैंड में एक लाइव प्रदर्शन शामिल था. बिदरी कला को 2011 में गणतंत्र दिवस पर नई दिल्ली में राजपथ पर कर्नाटक का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना गया था. 

कादरी ने अपनी टीम के साथ झांकी में अपनी कृतियों के साथ आसन ग्रहण किया और सजीव प्रदर्शन किया. उस वर्ष कर्नाटक की झांकी को द्वितीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. कादरी लगातार इस कला को आगे बढ़ा रहे हैं ताकि आने वाली पीढ़ी भी इस विरासत सहेज सके.

 

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