टीपू सुल्तान पर आने वाली मूवी को लेकर लगातार कॉन्ट्रोवर्सी हो रही है. इसको लेकर राजनीति भी तूल पकड़ रही है. टीपू सुल्तान को मैसूर का शेर कहा जाता था. टीपू को ये खिताब उनके पिता हैदर अली ने दिया था. चलिए आपको टीपू सुल्तान के बारे में विस्तार से बताते हैं.
18वीं सदी में मैसूर ने दक्षिण भारत में ब्रिटिश साम्राज्य को सबसे कठिन चुनौती दी थी. पहले पिता हैदर अली फिर बेटे टीपू सुल्तान ने ने मद्रास में ब्रिटिश सेना को बार-बार हराया था. टीपू का नाम अंग्रेजों के सबसे बड़े 10 दुश्मनों की फेहरिस्त में शामिल था. टीपू सुल्तान को मिसाइल मैन भी कहा जाता है. बताया जाता है कि टीपू ने भारत में सबसे पहले लोहे से बने रॉकेट्स का इस्तेमाल युद्ध में किया था. इनमें से कुछ रॉकेट आज भी लंदन म्यूजियम में रखे हुए हैं, जिन्हें अंग्रेज अपने साथ ले गए थे.
हालांकि कई इतिहासकारों का कहना है कि विस्फोटकों से भरे रॉकेट का पहला प्रोटोटाइप टीपू के पिता हैदर अली ने विकसित किया था. जिसे बाद में टीपू ने आगे बढ़ाया. इनमें गनपाउडर भरने के लिए लोहे की नलियों का इस्तेमाल होता था. ये ट्यूब तलवारों से जुड़ी होती थी.
दो किलोमीटर तक वार करती थीं ये रॉकेट
टीपू के रॉकेट के प्रोटोटाइप को आधुनिक रॉकेट का पूर्वज कहा जा सकता है. किसी भी दूसरी रॉकेट की तुलना में इसमें बेहतर सटीकता और कहीं अधिक विनाशकारी धमाका करने की क्षमता थी. टीपू ने इसे स्थिरता प्रदान करने के लिए इनमें बांस का भी इस्तेमाल किया था. इन्हीं फीचर्स की वजह से इसे दुनिया का सर्वश्रेष्ठ हथियार माना जाने लगा.
पोल्लिलोर की लड़ाई में इन रॉकेट ने बदला खेल
इतिहासकार बताते हैं कि पोल्लिलोर की लड़ाई में इन्हीं मिसाइलों ने खेल बदलकर रख दिया था. शायद ये अंग्रेजों की भारत में सबसे बुरी हार थी. अंग्रेज चकित और हैरान थे कि आखिर कैसे टीपू ने यह रॉकेट बनाया. टीपू की रॉकेट टेक्नोलॉजी पर और अधिक शोध करने के लिए श्रीरंगपटनम, बेंगलुरु, चित्रदुर्ग और बिदानूर में चार तारामंडलपेट की स्थापना की गई.
टीपू सुल्तान से प्रभावित थे अब्दुल कलाम
भारत में 18वीं सदी में ही मिसाइल प्रोग्राम की नींव रखी जा चुकी थी. इस मिसाइल प्रोग्राम के जनक एपीजे अब्दुल कलाम भी टीपू से काफी प्रभावित थे. अब्दुल कलाम, टीपू सुल्तान के रॉकेट कोर्ट के संरक्षण के पक्ष में थे और वो इसे म्यूजियम की शक्ल देना चाहते थे. उनके इस विचार का उल्लेख उनकी पुस्तक ‘विंग्स ऑफ फायर’ में भी है. हालांकि, आज श्रीरंगपटनम में बहुत कुछ नहीं बचा है, जो टीपू सुल्तान और उनके बनाए रॉकेट के बारे में बता सके लेकिन विश्व सैन्य इतिहास पर मैसूरियन रॉकेट की छाप हमेशा मौजूद रहेगी.