महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक जगह खुद उनका घर है. जी हां, ये हम नहीं बल्कि यूनाइटेड नेशन की रिपोर्ट कह रही है. घरेलू हिंसा एक ऐसा छिपा हुआ अत्याचार है, जिसके बारे में लोग बेहद कम बात करते हैं. यूनाइटेड नेशन वीमेन (UN Women) और यूएन ऑफिस ऑन ड्रग्स एंड क्राइम (UNODC) की एक रिपोर्ट के अनुसार, हर दिन करीब 140 महिलाएं और लड़कियां अपने पार्टनर या परिवार के सदस्यों द्वारा मारी जाती हैं. 2023 में 51,100 महिलाओं को घर में ही मार दिया गया.
यह रिपोर्ट बताती है कि महिलाएं और लड़कियां अपने घरों में हिंसा का शिकार होती हैं. 2023 में लगभग 60% महिलाओं की हत्या उनके अपने पार्टनर या परिवार के सदस्य ने की.
भारत, जो अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और सामाजिक ताना-बाना के लिए जाना जाता है, इस वैश्विक संकट से अछूता नहीं है. हालांकि कानून और जागरूकता के क्षेत्र में प्रगति हुई है, लेकिन घरेलू हिंसा आज भी एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है. इस हिंसा का सामना करने वाली महिलाओं के पास कानून और समाज से सहायता लेने के कई तरीके मौजूद हैं. आज हम उन्हीं तरीकों की बात करेंगे.
घरेलू हिंसा का सामना कर रही महिलाओं के अधिकार
भारत में घरेलू हिंसा से निपटने के लिए एक मजबूत कानूनी ढांचा है, जिसमें महिलाओं को दुर्व्यवहार से बचाने और उन्हें न्याय दिलाने के कई प्रावधान हैं.
1. महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा से संरक्षण अधिनियम, 2005 (PWDVA)
PWDVA महिलाओं को घरेलू हिंसा से राहत और सुरक्षा देता है. इसमें शारीरिक, यौन, भावनात्मक, मौखिक, और आर्थिक दुर्व्यवहार शामिल हैं. इसके तहत महिला को अपने साझा घर से बेदखल नहीं किया जा सकता, भले ही वह संपत्ति की मालिक न हो. अदालतें अपराधी को हिंसा करने या कुछ क्षेत्रों में प्रवेश करने से रोक सकती हैं. साथ ही महिलाएं मेडिकल खर्च, पैसे, या भावनात्मक तनाव के लिए मुआवजा मांग सकती हैं. इतना ही नहीं कोर्ट बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए महिलाओं को उनकी कस्टडी दे सकती हैं.
2. भारतीय दंड संहिता (IPC) प्रावधान
-धारा 498ए: पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता को अपराध मानता है, जिसमें शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न शामिल है.
-धारा 304बी: इसमें दहेज के कारण की गई हत्या शामिल है. अगर शादी के सात साल के भीतर संदिग्ध परिस्थितियों में महिला की मौत हुई है तो इसमें अपराधी को सजा मिलती है.
-धारा 376: 18 साल से कम उम्र की पत्नी के मामलों में मैरिटल रेप के लिए कड़ी सजा का प्रावधान है.
3. दहेज निषेध अधिनियम, 1961
दहेज निषेध अधिनियम, 1961 दहेज के देने और लेने पर रोक लगाता है, जो अक्सर भारत में घरेलू हिंसा का मुख्य कारण होता है.
4. दूसरी कानूनी सुरक्षा
महिलाएं मुफ्त कानूनी सहायता ले सकती हैं. साथ ही महिला और बाल विकास मंत्रालय 181 जैसी हेल्पलाइन चलाते हैं, जिससे मदद मिल सकती है.
आप कैसे मदद कर सकते हैं?
अगर आपके सामने किसी के साथ घरेलू हिंसा हो रही है तो आप पीड़ितों की जान बचा सकते हैं.
-महिलाओं में दिखाई देने वाली चोटों, डर के संकेत, या सामाजिक संपर्क से दूरी पर ध्यान दें. साथ ही, अगर कोई महिला अपने पति या ससुराल वालों से बार-बार माफी मांगती दिख रही है और परेशान लग रही है तो आप उससे बात करने की कोशिश करें.
-सबसे जरूरी है कि आप पीड़ित के पास सहानुभूति और खुले दिल से पहुंचें. “तुमने अपने पति को छोड़ क्यों नहीं दिया?” जैसे आरोपित सवालों से बचें. इसके अलावा, पीड़ित को हेल्पलाइन, महिलाओं के रहने की जगह, या कानूनी सहायता जैसे संसाधनों तक पहुंचने में मदद करें. जरूरत पड़ने पर पुलिस स्टेशन या वकील के पास साथ जाएं.
-अगर स्थिति शारीरिक हिंसा तक बढ़ती है, तो तुरंत पुलिस (112 डायल करें) या हेल्पलाइन (181) को कॉल करें. पीड़ित की सहमति से PWDVA के तहत शिकायत दर्ज करें. सुनिश्चित करें कि आपका हस्तक्षेप पीड़ित को और जोखिम में न डाले. उसकी प्राइवेसी का सम्मान करके उसका विश्वास बनाए रखें.
-ऐसा माहौल बनाएं जहां पीड़िता अपनी कहानी साझा करने में सुरक्षित महसूस करे. उसे विश्वास दिलाएं कि मदद मांगना ताकत का संकेत है, कमजोरी का नहीं.
-खुद को और दूसरों को महिलाओं के कानूनी अधिकारों और उपलब्ध संसाधनों के बारे में जागरूक करें. घरेलू हिंसा को सामान्य बनाने वाले चीजों को चुनौती दें.
समझें कि घरेलू हिंसा केवल एक व्यक्तिगत समस्या नहीं है. यह एक सामाजिक समस्या है जिसे सामूहिक प्रयासों की जरूरत है. एक ऐसा भविष्य बनाने के लिए काम करें जहां कोई भी महिला अपने घर की दीवारों से न डरे. महिलाओं की सुरक्षा के लिए 181 हेल्पलाइन और राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) जैसे संसाधन उपलब्ध हैं. साथ मिलकर एक ऐसा समाज बनाएं, जहां हर महिला सुरक्षित, सम्मानित और सशक्त महसूस करे.