Unemployment Rate: देश के किस राज्य में कितनी बेरोजगारी है, इसको लेकर आंकड़े सामने आ चुके हैं. इसमे कुछ राज्यों का रोजगार देने के मामले में स्थिति बेहतर हुई है तो वहीं कई स्टेट (State) का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा है. दरअसल, रोजगार के आंकड़ों पर पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) की नई रिपोर्ट आई है. इसमें जुलाई 2023 से जून 2024 तक के रोजगार के आंकड़ों को शामिल किया गया है.
इस रिपोर्ट में कई चौंकाने वाली बातें दिखीं हैं जैसे जिस राज्य में सबसे ज्यादा टूरिस्ट जाते हैं, उस राज्य में बेरोजगारी सबसे अधिक है. जी हां, हम बात कर रहे गोवा राज्य की. आइए जानते हैं कैसे होता है पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे, क्या होता है पैरामीटर और बिहार-यूपी सहित किस राज्य की क्या है स्थिति.
कब हुई थी पीरियोडिक लेबर फोर्स की शुरुआत
नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (National Sample Survey Office) ने रोजगार और बेरोजगारी की स्थिति का अनुमान लगाने के लिए अप्रैल 2017 में पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे (Periodic Labour Force Survey) की शुरुआत की थी. पीएलएफएस को रोजगार और बेरोजगारी के सभी पहलुओं को कवर करते हुए समय पर नौकरी संबंधी आंकड़े उपलब्ध कराने के लिए बनाया गया है. पीएलएफएस की त्रैमासिक रिपोर्ट शहरी क्षेत्रों को कवर करती है जबकि वार्षिक रिपोर्ट शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों के लिए होती है.
बेरोजगारी आंकने का क्या है पैमाना
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के मुताबिक यदि कोई व्यक्ति सप्ताह में कम से कम एक घंटे के लिए भी नौकरी, दिहाड़ी मजदूरी या फिर कुछ भी ऐसा करता है, जिससे उसकी कमाई हो तो उसे बेरोजगार नहीं माना जाता. भारत सहित अधिकतर देश रोजगार की इसी परिभाषा को अपनाते हैं. ILO की तरफ से बनाई गई रोजगार की इस परिभाषा के आधार पर बेरोजगारी के आंकड़ें निकाले जाते हैं. इसमें पता लगाया जाता है कि कितनी आबादी के पास रोजगार है.
आखिर कैसे होता है सर्वे और क्या होता है पैरामीटर
अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर कैसे बेरोजगारी को लेकर सर्वे किया जाता है. आपको मालूम हो कि बेरोजगारी की स्थिति को तीन आंकड़ों से समझा जाता है. पहला लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट (Labour Force Participation Rate) यानी एलएफपीआर (LFPR). इसमें आबादी के उन लोगों को देखा जाता है, जो काम करने लायक या काम कर रहे होते हैं. दूसरा वर्कर पॉपुलेशन रेशो यानी WPR है. इसमें यह देखा जाता है कि कुल आबादी में से कितनों के पास रोजगार है. तीसरा बेरोजगारी दर यानी UR है.
इसमें देखा जाता है कि लेबर फोर्स में शामिल कितने लोग बेरोजगार हैं. लेबर फोर्स व वर्कर पॉपुलेशन का बढ़ना और बेरोजगारी दर का घटना अच्छा माना जाता है. अभी जारी एलएफपीआर के आंकड़े के मुताबिक 6 साल में लेबर फोर्स 10 फीसदी से ज्यादा बढ़ी है. 2017-18 में ये करीब 50 फीसदी थी, जो 2023-24 में बढ़कर 60 फीसदी हो गई. लेबर फोर्स में 78.8% पुरुष और 41.7% महिलाएं हैं. वर्कर पॉपुलेशन रेशो के मुताबिक देश की कुल आबादी में से 58.2% के पास रोजगार है. इनमें 76.3 प्रतिशत पुरुष और 40.3 प्रतिशत महिलाएं कामकाजी हैं.
एमपी में सबसे कम और गोवा में सबसे अधिक युवा बेरोजगारी दर
पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे की नई रिपोर्ट के मुताबिक मध्य प्रदेश में बेरोजगारी दर सबसे कम है. मध्य प्रदेश में बेरोजगारी दर 1 प्रतिशत से भी कम 0.9 प्रतिशत है. इस लिस्ट में दूसरे नंबर पर गुजरात 1.1 प्रतिशत और तीसरे स्थान पर झारखंड 1.3 प्रतिशत है. साल 2023-24 में गोवा में बेरोजगारी दर देश में सबसे ज्यादा 8.5 प्रतिशत है. गोवा में महिलाओं की स्थिति और भी ज्यादा गंभीर है. उनकी बेरोजगारी दर 16.8 प्रतिशत तक पहुंच गई है, जबकि देश का औसत 4.9 फीसदी है.
इसके साथ ही गोवा में काम करने वालों की भागीदारी भी राष्ट्रीय औसत से कम है. जहां गोवा में यह 39 फीसदी है तो वहीं पूरे देश में यह 42.3 प्रतिशत है.पीरियोडिक लेबर फोर्स का सर्वे 2023-24 के मुताबिक एक साल के अंदर देश में सबसे ज्यादा बेरोजगारी हरियाणा में घटी है. साल 2022-23 के बीच हरियाणा में बेरोजगारी दर 6.1 प्रतिशत थी, जो इस साल घटकर 3.4 फीसदी पहुंच गई. सर्वे के मुताबिक इसमें एक साल में 2.7 फीसदी की गिरावट आई है, जो किसी भी राज्य से सबसे ज्यादा है.देश की औसत बेरोजगारी दर 3.2 प्रतिशत है.
बिहार और यूपी का क्या है हाल
यूपी में बेरोजगारी दर 23 से 24 उम्र वालों में 3.0 प्रतिशत है. 22 से 23 उम्र वालों में 2.4 प्रतिशत है. 17 से 18 उम्र वालों में सबसे अधिक 6.4 प्रतिशत बेरोजगारी दर है. वर्कर पॉपुलेशन रेश्यो में 23 से 24 उम्र वालों में 32.4 प्रतिशत है. 22 से 23 उम्र वालों में 32.2 प्रतिशत है. 17 से 18 उम्र वालों में 28.7 प्रतिशत बेरोजगारी दर है. उधर, बिहार में बेरोजगारी दर 23 से 24 उम्र वालों में 3.0 प्रतिशत है.
22 से 23 उम्र वालों में 3.9 प्रतिशत है. 17 से 18 उम्र वालों में सबसे अधिक 7.2 प्रतिशत बेरोजगारी दर है. वर्कर पॉपुलेशन रेश्यो में 23 से 24 उम्र वालों में 28.0 प्रतिशत है. 22 से 23 उम्र वालों में 27.1 प्रतिशत है. 17 से 18 उम्र वालों में 23.6 प्रतिशत बेरोजगारी दर है. लेबर पार्टिसिपेशन रेट में बिहार 29% के साथ सबसे नीचे है. इसके बाद यूपी 33.8% है. कामकाजी आबादी को तीन वर्गों में बांटा गया है. स्वरोजगार, नौकरीपेशा और दिहाड़ी मजदूर. यूपी में स्वरोजगार वाले सबसे ज्यादा 72.7% हैं.दिहाड़ी मजदूरों में बिहार 23.8% के साथ सबसे ऊपर.
राज्य 23-24 उम्र में बेरोजगारी दर
1. यूपी- 3.0 प्रतिशत
2. बिहार- 3.0 प्रतिशत
3. छत्तीसगढ़- 2.5 प्रतिशत
4. दिल्ली- 2.1 प्रतिशत
5. झारखंड- 1.3 प्रतिशत
6. गुजरात- 1.1 प्रतिशत
7. मध्य प्रदेश- 0.9 प्रतिशत
क्या है देश में बेरोजगारी का हाल
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2017-2018 से 2023-2024 के बीच 7 साल में बेरोजगारी दर 6% से घटकर 3.2% रह गई. यदि 2022-2023 से 2023-2024 के बीच बेरोजगारी दर को देखें तो वह 3.2 फीसदी की रेट पर स्थिर है. पुरुषों में बेरोजगारी दर जुलाई, 2022 से जून, 2023 के दौरान 3.3 फीसदी से मामूली कम होकर जुलाई, 2023 से जून, 2024 के दौरान 3.2 फीसदी हो गई है. उधर, महिलाओं के बीच इसमें इजाफा आया और यह 2.9 फीसदी से बढ़कर 3.2 फीसदी हो गई है. लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट (LFPR) जुलाई, 2023 से जून, 2024 के दौरान 60.1 फीसदी थी.
यह पिछले साल के 57.9 फीसदी से ज्यादा है. पुरुषों में LFPR 78.8 फीसदी और महिलाओं में 41.7 फीसदी रहा है. केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप 15-29 वर्ष आयु वर्ग में सबसे अधिक बेरोजगारी दर के साथ सूची में सबसे ऊपर है, जहां महिलाओं में बेरोज़गारी दर 79.7% और पुरुषों में 26.2% दर्ज की गई है. अंडमान और निकोबार द्वीप में बेरोज़गारी दर 33.6% है. महिलाओं में बेरोज़गारी दर 49.5% और पुरुषों में 24% थी. उधर, पूर्वोत्तर राज्य नागालैंड, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश में भी युवा बेरोज़गारी दर उच्च दर्ज की गई.
किस धर्म में है सबसे अधिक बेरोजगारी
देश में सबसे ज्यादा बेरोजगारी दर सिख धर्म को मानने वाले लोगों में है. 2023-24 में हिंदुओं में बेरोजगारी दर 3.1%, मुस्लिमों में 3.2%, सिखों में 5.8% और ईसाइयों में 4.7% थी. वहीं, हिंदुओं की 45%, मुस्लिमों की 37%, सिखों की 42% और ईसाइयों की 45% आबादी कामकाजी है.
रिपोर्ट बताती है कि जितनी आबादी के पास काम था, उसमें से 58.4% के पास खुद का कोई काम था जबकि 21.7% ही ऐसे थे जिन्हें रेगुलर सैलरी मिलती थी. दिहाड़ी मजदूरी करने वाले 19.8% थे. जितनों के पास काम है, उनमें से 46% के खेती-बाड़ी से जुड़े हैं. इसके बाद 12.2% लोग ट्रेड, होटल या रेस्टोरेंट से जुड़े थे. 12% लोग कंस्ट्रक्शन से और 11.4% मैनुफैक्चरिंग सेक्टर में काम कर रहे हैं.