18 की उम्र में बने थे पैरा कमांडो, 26 मोर्चों पर लगाई जान की बाजी, अब 200 युवाओं को ट्रेन कर पहुंचाया आर्मी में

यह कहानी है रिटायर्ड पैरा-कमांडो पुरुषोत्तम चंद्रा की जो रिटायरमेंट के बाद से लगातार युवाओं को आर्मी के लिए तैयार कर रहे हैं. वह युवाओं को मुफ्त में ट्रेनिंग देते हैं.

Representational Image (Photo: PTI)
निशा डागर तंवर
  • नई दिल्ली ,
  • 07 जून 2022,
  • अपडेटेड 12:32 PM IST
  • पुरुषोत्तम ने साल 1990 में आर्मी जॉइन की थी
  • 1000 से ज्यादा युवाओं को दे चुके हैं ट्रेनिंग

देश का हर युवा किसी न किसी तरीके से अपने देश की तरक्की में भागीदार बनना चाहता है. यह देश की सेवा का जुनून ही है जो आज भी बच्चों को सभी ऐशो-आराम छोड़कर भारतीय सेना में शामिल होने के लिए प्रेरित कर रहा है. खासकर कि गांव-देहात के बच्चे आर्मी जॉइन करना चाहते हैं ताकि उनका भविष्य भी संवर जाए. 

हालांकि, भारतीय सेना में शामिल होना इतना आसान नहीं है बल्कि इसके लिए आपको पूरी मेहनत करनी होती है. परीक्षा के साथ-साथ आपका फिजीकल टेस्ट भी पास होना चाहिए. इसलिए सेना से रिटायर एक जवान अपने गांव के बच्चों को लगातार तैयारी करा रहा है ताकि वे भी सेना में शामिल होकर कुछ कर सकें. 

यह कहानी है छत्तीसगढ़ में बिलासपुर में जांजगीर-चांपा के जैजैपुर ब्लॉक के छोटे से गांव जाटा में रहने वाले पुरुषोत्तम चंद्रा की. 

युवाओं को दे रहे हैं मुफ्त ट्रेनिंग

पुरुषोत्तम ने साल 1990 में आर्मी जॉइन की थी. नौकरी के दौरान कई बड़े काम करने के बाद साल 2008 में वह रिटायर हुए. रिटायरमेंट के बाद वह अपने इलाके में लौटे और यहां आकर बच्चों को सेना के लिए तैयार करना शुरू कर दिया. आज भी वह मुफ्त में युवाओं को आर्मी की ट्रेनिंग दे रहे हैं. 

अब तक उन्होंने 1000 से ज्यादा युवाओं को तैयारी कराई है. जिनमें से 200 से ज्यादा छात्रों का चयन भारतीय सेना में हो चुका है. दूसरे बच्चे भी अलग-अलग क्षेत्रों में अच्छा काम कर रहे हैं. 

साधारण परिवार का बेटा बना अफसर 

अपने एक मीडिया इंटरव्यू में पुरुषोत्तम ने बताया कि वह साधारण परिवार से संबंध रखते हैं. गांव में पढ़ाई हुई औ रेडियो के जरिए सेना की भर्ती के बारे में पता चला. जैसे-तैसे फॉर्म भर दिया. टेस्ट के लिए बिलासपुर गए तो पहली बार ट्रेन में बैठे थे. इसके बाद रेलवे स्टेशन से लेकर पुलिस अकेडमी तक पैदल चलकर गए क्योंकि रिक्शा के लिए एक रुपया भी जेब में नहीं था. 

हालांकि, जब उनका सेना में चयन हुआ तो पूरे गांव का सीना गर्व से चौड़ा हो गया था. अपने गांव से सेना में चयनित होने वाले वह पहले छात्र थे. परिवार का इकलौता बेटा होने के कारण उनके घरवालों को थोड़ी हिचक थी कि कैसे पुरुषोत्तम को सेना में भेज दें, लेकिन वह नहीं रुके और ड्यूटी जॉइन की. 

देश के लिए दांव पर लगाई जान भी 

पुरुषोत्तम ने सेना में बतौर पैरा-कमांडो अपनी सेवाएं दी. उन्होंने 17 साल की नौकरी में 26 बार दुश्मन का सामना किया. कई बार घायल भी हुए लेकिन देश की सेवा का जुनून कम नहीं हुआ. साल 2000 में पुरुषोत्तम की पोस्टिंग जम्मू-कश्मीर में थी और उन्हें मैसेज मिला कि पाकिस्तानी उग्रवादी कश्मीर में घुस आए हैं. 

खबर मिलते ही पुरुषोत्तम चंद्रा ने एक टुकड़ी को तैयार किया और कारगिल के लिए निकल पड़े. रात में ही उनके औप दुश्मन के बीच गोलीबारी शुरू हो गई. दूसरे दिन भी लड़ाई जारी रही. इस दौरान उनकी टीम ने 4 आतंकियों को मार गिराया. लेकिन लड़ाई के दौरान पुरुषोत्तम घायल हो गए और उन्हें दाईं जांघ में गोली लगी. 

पर पुरुषोत्तम के दिल से देश सेवा का जुनून कभी नहीं गया. आज वह अपने इलाके के हर एक इंसान के लिए मिसाल बने हुए हैं. 

 

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